महिलाओं से छेड़छाड़ एवं यौन उत्पीड़न रोकने सम्बन्धी कानून (Laws related to women molestation and sexual harassment)

Posted on March 25th, 2020 | Create PDF File

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महिलाओं से छेड़छाड़ एवं यौन उत्पीड़न रोकने सम्बन्धी कानून (Laws related to women molestation and sexual harassment)-

 

* छेड़छाड़ एवं यौन उत्पीड़न के कारण महिलाओं के समानता एवं गरिमापूर्ण जीवन जीने का अधिकार का उल्लंघन होने के बावजूद यौन उत्पीड़न जैसी घटनाओं से निपटने के लिए भारत में अभी तक कोई विशिष्ट कानून नहीं है। यद्यपि भारतीय दण्ड संहिता में ऐसे प्रावधान हैं जिनसे महिलाओं के साथ होने वाले यौन उत्पीड़न की घटनाओं को रोका जा सकता है।

 

* भारतीय दण्ड संहिता की धारा 294 सार्वजनिक स्थलों पर अश्लील (Obscene) गतिविधियों एवं गानों को रोकती है।

 

* धारा 354 महिलाओं के विरुद्ध किए गए आपराधिक बल प्रयोग से निपटने के लिए है।

 

* धारा 376 बलात्कार जैसी घटनाओं से निपटने के लिए है।

 

* धारा 510 अपशब्दों एवं ऐसे संकेतों से निपटने के लिए है जिनके प्रयोग से महिलाओं के सतीत्व (Modesty) को चोट पहुंचा हो।

 

* इसके अलावा महिलाओं का अश्लील चित्रण (प्रतिषेध) अधिनियम, 1986 [Indecent Representation of Women (Prohibition) Act, 1986] के कुछ प्रावधानों का प्रयोग यौन उत्पीड़न सम्बन्धी अपराधों को रोकने के लिए किया जाता है। इसके अंतर्गत यदि कोई व्यक्ति महिलाओं का उत्पीड़न अश्लील चित्रण जो पुस्तक, फोटोग्राफ, पेंटिंग, फिल्‍म इत्यादि के रूप में हो सकता है, के माध्यम से करता है तो ऐसी स्थिति में उसे दो वर्ष तक का कारावास की सजा दी जा सकती है।

 

* सामान्य रूप से यह देखा जाता है कि कार्यस्थलों पर यौन उत्पीड़न प्रोन्नति व वेतन वृद्धि के बदले में किया जाता है। महिलाओं द्वारा इसका विरोध करने पर उन्हें पदावनति या कार्य वातावरण कठिन बनाए जाने के रूप में प्रत्युत्तर प्राप्त होता है। साथ ही, महिला कर्मचारी के कार्यों में विभिन्‍न प्रकार के अवरोध उत्पन्न किए जाते हैं।

 

* भारत में यौन उत्पीड़न से सम्बन्धित अनेक मामले सर्वोच्च न्यायालय के समक्ष आते रहे हैं। न्यायालय सम्बन्धित मामलों में दिए गए निर्देशों से महिलाओं को यौन उत्पीड़न एवं छेडछाड़ के विरुद्ध जागरूक करने तथा ऐसे मामलों को रिपोर्ट करने छेतु प्रोत्साहित करता रहा है।

 

* वत्त्र निर्यात प्रोत्साहन बोर्ड (Apparel Export Promotion Board) बनाम ए.के. चोपड़ा मामले में सर्वोच्च न्यायालय ने यह स्पष्ट किया कि यौन उत्पीड़न महिलाओं के विरुद्ध लैंगिग भेदभाव है। किसी
भी वरिष्ठ सत्ता (Superior Will) द्वारा की गई छेड़छाड़ या इसका प्रवास यौन उत्पीड़न है।

 

* रूपन देओल बजाज बनाम कंवर पाल सिंह गिल मामले में सर्वोच्च न्यायालय ने यौन उत्पीड़न को व्यापक स्वरूप प्रदान किया। इसके अन्तर्गत सर्वोच्च न्यायालय ने किसी महिला के निजी या सार्वजनिक जीवन को पहुंचाई गई असुविधा या उत्पीड़न को आपराधिक मामला माना।

 

* विशाखा व अन्य बनाम राजस्थान राज्य मामले में यौन उत्पीड़न रोकने हेतु सर्वोच्च न्यायालय द्वारा विस्तृत दिशा-निर्देश दिए गए। ये दिशा-निर्देश काफी महत्वपूर्ण थे क्योंकि इसमें यौन उत्पीड़न को विधिक रूप से वर्जित व्यवहार माना गया। इन दिशा-निर्देशों को तब तक के लिए सभी कार्यस्थलों के लिए अनिवार्य माना गया जब तक कि इस सन्दर्भ में संसद द्वारा कोई विशिष्ट कानून न बनाया जाए। विशाखा मामले में सर्वोच्च न्यायालय ने यौन उत्पीड़न को केवल निजी तौर पर पहुंचाई गई चोट ही नहीं माना, बल्कि इसे मूल अधिकारों का हनन भी माना।

 

* सर्वोच्च न्यायालय द्वारा विशाखा मामले में दिए गए दिशा-निर्देशों में शिकायत समिति के गठन की बात कही गई थी, लेकिन निजी संगठन शायद ही ऐसी समिति का गठन करते हैं। सरकारी संगठन भी ज्यादातर कागजों पर ही शिकायत समितियों का गठन करते हैं। जिन संगठनों में ऐसी समितियों का गठन कर भी दिया जाता है तो उनके सदस्यों को अपने अधिकारों, कर्तव्यों एवं उत्तरदायित्वों की जानकारी नहीं होती है। इन सब कारणों से शायद ही पीड़ित को न्याय मिल पाता हो। नियोक्ताओं की मनोव॒त्ति भी कुछ इस तरह की होती है कि वे यह मानने को तैयार ही नहीं होते कि उनके संगठन या कार्यालय में यौन उत्पीड़न जैसी घटनाएं घटती हैं। इस तरह शिकायत करने का कोई परिणाम नहीं निकल पाता है। उल्टे लोग पीड़िता का ही उपहास उड़ाते हैं। अतः: आवश्यकता इस बात की है कि महिलाओं का यौन उत्पीड़न रोकने हेतु किसी प्रभावी कानून का निर्माण किया जाए और ठीक ढंग से उसका कार्यान्वयन हो।