भारतीय समाज की मुख्य विशेषताएं (भाग -8) - धार्मिक विविधता (Salient features of Indian Society Part-8-Religious Diversity)
Posted on March 20th, 2020
भारत के विभिन्न भागों में अलग-अलग धर्म यथा-हिन्दू मुस्लिम, सिख, ईसाई, बौद्ध, पारसी तथा जैन धर्म के अनुयायी रहते हैं। भारत की जनगणना 2011 के अनुसार देश की कुल जनसंख्या में हिन्दू 79.8 प्रतिशत, मुसलमान 14.2 प्रतिशत, ईसाई 2.3 प्रतिशत, सिख 1.7 प्रतिशत, बौद्ध 0.70 %, जैन 0.37, और अन्य धर्मों को मानने वाले का प्रतिशत 0.6 है। इनमें से प्रत्येक धर्म भी कई मतों में बंटा हुआ है, जैसे हिन्दू धर्म वैष्णव शैव, शाक्त जैसे सम्प्रदायों में बंटा हुआ है। इन सम्प्रदायों के भी उनके उपसम्प्रदाय हैं। जैसे शैव सम्प्रदाय के लोग वीरशैव, कालामुख आदि उपसम्प्रदायों में विभाजित हैं। हिन्दू धर्म में कई सुधार आन्दोलन चले जिसके कारण इसके और उपविभाजनक सामने आए। इनमें से एक विभाजन सनातन और आर्य समाज में हुआ। इसके अलावा हिन्दू धर्म में रामभक्ति, कृष्ण भक्ति, कबीर पंथी और नाथ पंथी आदि की भी विशद परम्परा है। विचारधारा के स्तर पर भी कई मत सामने आए जिनमें रामानुजाचार्य के विशिष्टाद्वैतवाद और शंकराचार्य के अद्वैतवाद को ज्यादा स्वीकार्यता मिली। हिन्दू धर्म के तहत पनपी जाति और वर्ण सम्बन्धी सामाजिक व्यवस्था भी हिन्दू धर्म में सामाजिक विविधता को दर्शाती है। हिन्दू धर्म में चार वर्ण-ब्राहमण, क्षत्रिय, वैश्य और शूद्र स्वीकार किए गए हैं।इन वर्णों में कई क्रमागत उपविभाजन हैं। प्रायः यही माना जाता है कि जाति इन्हीं उपविभाजनों को प्रदर्शित करती है। हालांकि विद्वानों का एक समूह जिनमें एम. एन. श्रीनिवास प्रमुख हैं, मानता है कि जातियों के उपविभाजन को भारतीय स्तर पर समझने के लिए वर्ण का विचार सामने आया।
भारत में मुसलमानों का संकेंद्रण उत्तर प्रदेश, बिहार, पश्चिम बंगाल, गुजरात आदि राज्यों में ज़्यादा है। यहाँ के मुसलमान भी शेष दुनिया की तरह मोटेतौर पर सुन्नी और शिया सग्प्रदायों में विभक्त हैं। भारत में रहने वाले दो-तिहाई मुसलमान सुन्नी मत को मानते हैं। इन दोनों मतों के अपने कई उपसम्प्रदाय भी हैं। सुन्नी सम्प्रदाय हनफी, शफी, मालिकी आदि उपसम्प्रदायों में तथा शिया मुसलमान इस्माइली, जाफरी आदि उपशाखाओं में बंटे हुए हैं। भारत में विकसित हुए इस्लाम धर्म में सूफियों का बहुत बड़ा योगदान रहा है।भारत में सूफियों को जो सम्मान हासिल है वह अन्य कहीं देखने को नहीं मिलता।
भारत में ईसाई धर्म की उपस्थिति पूरे देश में है लेकिन उनका संकेंद्रण केरल, तमिलनाडु, गोवा और पूर्वोत्तर राज्यों में ज्यादा है। यहाँ के ईसाई मुख्य तौर पर कैथोलिक और प्रोटेस्टेंट मतों में विभाजित हैं।कैथोलिक चर्च को ज्यादा महत्व प्रदान करते हैं जबकि प्रोटेस्टैंट कम। कैथोलिकों में मूर्तिपूजा का प्रचलन है जबकि प्रोटेस्टैंट में मूर्तिपूजा को स्वीकार नहीं किया गया है। भारत के ईसाई हिन्दू और मुसलमानों की तरह सामाजिक विविधता को दर्शाते हैं। जैसे केरल का ईसाई समुदाय उच्च और निम्न हैसियत वालों दो वर्गों में बंटा हुआ है। उच्च सामाजिक प्रस्थिति वाले सीरियन ईसाई समुदाय कहलाते हैं जबकि दूसरी तरफ न्यू राईट ईसाई या लैटिन ईसाई हैं, जिन्हें हिन्दू धर्म के दलितों की तरह समझा जा सकता है।
सिख धर्म के अनुयायियों का संकेंद्रण पंजाब, हरियाणा, पश्चिमी उत्तर प्रदेश और जम्मू के क्षेत्रों में ज्यादा है। मूल तौर पर सिख धर्म में जाति प्रथा को अस्वीकार्य कर दिया गया और प्रत्येक पुरुष को अपने नाम के आगे 'सिंह' और प्रत्येक महिला को “कौर लिखने को कहा गया। लेकिन समय बीतने के साथ सिखों में भी जाति व्यवस्था के अवगुण दिखने लगे। सामाजिक पदानुक्रम में निचले स्थान पर रहने वाले को मजहबी सिख कहा गया और पंजाब के ग्रामीण इलाकों में उनके लिए अलग गुरुद्वारे बनाए गए। सिख धर्म से विकसित हुई डेरा परम्परा का भी धार्मिक विविधता को बढ़ाने में योगदान रहा है।
बौद्ध धर्म भारत में कभी बेहद शक्तिशाली धर्म बन गया था और उसे अनेक प्रतापी वंशों और राजाओं का संरक्षण हासिल था। बाद में महात्मा बुद्ध की शिक्षाओं की व्याख्या पर उभरे मतमभेदों के कारण इनके तीन उपसम्प्रदाय हीनयान, महायान और वज्रयान अस्तित्व में आए। समय बीतने के साथ ही बौद्ध धर्म विलुप्त होने की हालत में आ गया। सन् 1953 में संविधान निर्माता डॉ. भीमराव अम्बेडकर की हिन्दू धर्म त्याग कर बौद्ध धर्म स्वीकार करने की घोषणा के साथ बौद्ध धर्म में एक नई हलचल देखी गई। डॉ. अम्बेडकर ने हीनयान या महायान शाखाओं को अस्वीकार करते हुए कहा कि हमारा बौद्ध धर्म नया बौद्ध धर्म 'नवयान (Navayana) है। इन्हें नवबौद्ध या पश्चिमी बौद्धवाद की संज्ञा दी जाती है। नवबौद्धों का संकेंद्रण महाराष्ट्र और उत्तर प्रदेश में सर्वाधिक है।
जैन धर्म बौद्ध धर्म के समकालीन ही विकसित हुआ। इस धर्म के अनुयायी भी श्वेताम्बरों और दिगम्बरों में बंटे हुए हैं। इनमें दिगम्बर सम्प्रदाय के लोग धर्म सम्बन्धी मान्यताओं का कठोरता से पालन करते हैं। जैन धर्म के लोगों का संकेंद्रण महाराष्ट्र राजस्थान और गुजरात में ज्यादा है।
देश में इन प्रमुख धर्मों के अलावा पारसी, यहूदी और आदिवासियों के धर्म सरना को मानने वाले भी बड़ी संख्या में रहते हैं। पारसी धर्म के लोग मूल रूप से ईरान से भारत आए और यहीं बस गए। यहूदी धर्म के अनुयायी बहुत कम संख्या में हैं। देश के अधिकांश यहूदी कोचीन और महाराष्ट्र में संकेंद्रित हैं। झारखंड व ओडिशा क्षेत्र में रहने वाले कुछ आदिवासी समुदाय सरना धर्म में विश्वास व्यक्त करते हैं। इस तरह भारत को धार्मिक विविधिताओं का देश कहा जा सकता है।
भारतीय समाज की मुख्य विशेषताएं (भाग -8) - धार्मिक विविधता (Salient features of Indian Society Part-8-Religious Diversity)
भारत के विभिन्न भागों में अलग-अलग धर्म यथा-हिन्दू मुस्लिम, सिख, ईसाई, बौद्ध, पारसी तथा जैन धर्म के अनुयायी रहते हैं। भारत की जनगणना 2011 के अनुसार देश की कुल जनसंख्या में हिन्दू 79.8 प्रतिशत, मुसलमान 14.2 प्रतिशत, ईसाई 2.3 प्रतिशत, सिख 1.7 प्रतिशत, बौद्ध 0.70 %, जैन 0.37, और अन्य धर्मों को मानने वाले का प्रतिशत 0.6 है। इनमें से प्रत्येक धर्म भी कई मतों में बंटा हुआ है, जैसे हिन्दू धर्म वैष्णव शैव, शाक्त जैसे सम्प्रदायों में बंटा हुआ है। इन सम्प्रदायों के भी उनके उपसम्प्रदाय हैं। जैसे शैव सम्प्रदाय के लोग वीरशैव, कालामुख आदि उपसम्प्रदायों में विभाजित हैं। हिन्दू धर्म में कई सुधार आन्दोलन चले जिसके कारण इसके और उपविभाजनक सामने आए। इनमें से एक विभाजन सनातन और आर्य समाज में हुआ। इसके अलावा हिन्दू धर्म में रामभक्ति, कृष्ण भक्ति, कबीर पंथी और नाथ पंथी आदि की भी विशद परम्परा है। विचारधारा के स्तर पर भी कई मत सामने आए जिनमें रामानुजाचार्य के विशिष्टाद्वैतवाद और शंकराचार्य के अद्वैतवाद को ज्यादा स्वीकार्यता मिली। हिन्दू धर्म के तहत पनपी जाति और वर्ण सम्बन्धी सामाजिक व्यवस्था भी हिन्दू धर्म में सामाजिक विविधता को दर्शाती है। हिन्दू धर्म में चार वर्ण-ब्राहमण, क्षत्रिय, वैश्य और शूद्र स्वीकार किए गए हैं।इन वर्णों में कई क्रमागत उपविभाजन हैं। प्रायः यही माना जाता है कि जाति इन्हीं उपविभाजनों को प्रदर्शित करती है। हालांकि विद्वानों का एक समूह जिनमें एम. एन. श्रीनिवास प्रमुख हैं, मानता है कि जातियों के उपविभाजन को भारतीय स्तर पर समझने के लिए वर्ण का विचार सामने आया।
भारत में मुसलमानों का संकेंद्रण उत्तर प्रदेश, बिहार, पश्चिम बंगाल, गुजरात आदि राज्यों में ज़्यादा है। यहाँ के मुसलमान भी शेष दुनिया की तरह मोटेतौर पर सुन्नी और शिया सग्प्रदायों में विभक्त हैं। भारत में रहने वाले दो-तिहाई मुसलमान सुन्नी मत को मानते हैं। इन दोनों मतों के अपने कई उपसम्प्रदाय भी हैं। सुन्नी सम्प्रदाय हनफी, शफी, मालिकी आदि उपसम्प्रदायों में तथा शिया मुसलमान इस्माइली, जाफरी आदि उपशाखाओं में बंटे हुए हैं। भारत में विकसित हुए इस्लाम धर्म में सूफियों का बहुत बड़ा योगदान रहा है।भारत में सूफियों को जो सम्मान हासिल है वह अन्य कहीं देखने को नहीं मिलता।
भारत में ईसाई धर्म की उपस्थिति पूरे देश में है लेकिन उनका संकेंद्रण केरल, तमिलनाडु, गोवा और पूर्वोत्तर राज्यों में ज्यादा है। यहाँ के ईसाई मुख्य तौर पर कैथोलिक और प्रोटेस्टेंट मतों में विभाजित हैं।कैथोलिक चर्च को ज्यादा महत्व प्रदान करते हैं जबकि प्रोटेस्टैंट कम। कैथोलिकों में मूर्तिपूजा का प्रचलन है जबकि प्रोटेस्टैंट में मूर्तिपूजा को स्वीकार नहीं किया गया है। भारत के ईसाई हिन्दू और मुसलमानों की तरह सामाजिक विविधता को दर्शाते हैं। जैसे केरल का ईसाई समुदाय उच्च और निम्न हैसियत वालों दो वर्गों में बंटा हुआ है। उच्च सामाजिक प्रस्थिति वाले सीरियन ईसाई समुदाय कहलाते हैं जबकि दूसरी तरफ न्यू राईट ईसाई या लैटिन ईसाई हैं, जिन्हें हिन्दू धर्म के दलितों की तरह समझा जा सकता है।
सिख धर्म के अनुयायियों का संकेंद्रण पंजाब, हरियाणा, पश्चिमी उत्तर प्रदेश और जम्मू के क्षेत्रों में ज्यादा है। मूल तौर पर सिख धर्म में जाति प्रथा को अस्वीकार्य कर दिया गया और प्रत्येक पुरुष को अपने नाम के आगे 'सिंह' और प्रत्येक महिला को “कौर लिखने को कहा गया। लेकिन समय बीतने के साथ सिखों में भी जाति व्यवस्था के अवगुण दिखने लगे। सामाजिक पदानुक्रम में निचले स्थान पर रहने वाले को मजहबी सिख कहा गया और पंजाब के ग्रामीण इलाकों में उनके लिए अलग गुरुद्वारे बनाए गए। सिख धर्म से विकसित हुई डेरा परम्परा का भी धार्मिक विविधता को बढ़ाने में योगदान रहा है।
बौद्ध धर्म भारत में कभी बेहद शक्तिशाली धर्म बन गया था और उसे अनेक प्रतापी वंशों और राजाओं का संरक्षण हासिल था। बाद में महात्मा बुद्ध की शिक्षाओं की व्याख्या पर उभरे मतमभेदों के कारण इनके तीन उपसम्प्रदाय हीनयान, महायान और वज्रयान अस्तित्व में आए। समय बीतने के साथ ही बौद्ध धर्म विलुप्त होने की हालत में आ गया। सन् 1953 में संविधान निर्माता डॉ. भीमराव अम्बेडकर की हिन्दू धर्म त्याग कर बौद्ध धर्म स्वीकार करने की घोषणा के साथ बौद्ध धर्म में एक नई हलचल देखी गई। डॉ. अम्बेडकर ने हीनयान या महायान शाखाओं को अस्वीकार करते हुए कहा कि हमारा बौद्ध धर्म नया बौद्ध धर्म 'नवयान (Navayana) है। इन्हें नवबौद्ध या पश्चिमी बौद्धवाद की संज्ञा दी जाती है। नवबौद्धों का संकेंद्रण महाराष्ट्र और उत्तर प्रदेश में सर्वाधिक है।
जैन धर्म बौद्ध धर्म के समकालीन ही विकसित हुआ। इस धर्म के अनुयायी भी श्वेताम्बरों और दिगम्बरों में बंटे हुए हैं। इनमें दिगम्बर सम्प्रदाय के लोग धर्म सम्बन्धी मान्यताओं का कठोरता से पालन करते हैं। जैन धर्म के लोगों का संकेंद्रण महाराष्ट्र राजस्थान और गुजरात में ज्यादा है।
देश में इन प्रमुख धर्मों के अलावा पारसी, यहूदी और आदिवासियों के धर्म सरना को मानने वाले भी बड़ी संख्या में रहते हैं। पारसी धर्म के लोग मूल रूप से ईरान से भारत आए और यहीं बस गए। यहूदी धर्म के अनुयायी बहुत कम संख्या में हैं। देश के अधिकांश यहूदी कोचीन और महाराष्ट्र में संकेंद्रित हैं। झारखंड व ओडिशा क्षेत्र में रहने वाले कुछ आदिवासी समुदाय सरना धर्म में विश्वास व्यक्त करते हैं। इस तरह भारत को धार्मिक विविधिताओं का देश कहा जा सकता है।