शिक्षा क्षेत्र में महिलाओं की भूमिका (Role of Women in Education sector)

Posted on March 20th, 2020 | Create PDF File

ऐतिहासिक रूप से महिलाएँ जीवन के सभी क्षेत्रों में साहस और उत्साह से भाग लेती रही हैं। भारत की शिक्षा व्यवस्था भी इसका अपवाद नहीं है। भारत के पौराणिक ग्रंथों में उच्च शिक्षित महिलाओं का वृहद उल्लेख आता है। यहाँ तक की भारत में शिक्षा की देवी के रूप में एक महिला ही पूजनीय मानी जाती है। प्राचीन भारतीय शिक्षा के ऐतिहासिक प्रमाण तीसरी शताब्दी ईसा पूर्व से देखे जा सकते हैं। उस समय शिक्षा मौखिक दी जाती थी और महिलाओं का उसमें प्रतिनिधित्व होता था। जब भारत में बौद्ध धर्म का प्रसार हुआतब नालंदा, विक्रमशिला और तक्षशिला जैसे विश्व प्रसिद्ध शिक्षण संस्थान स्थापित हुए। शोध से विदित होता है कि महिलाएँ भी इन संस्थानों में शिक्षा ग्रहण करती थीं। ये शिक्षण संस्थान पाँचवी शताब्दी से तेरहवीं शताब्दी तक खूब फले-फूले। धर्मशास्त्र, दर्शन, ललित कला, खगोल विज्ञान इत्यादि में महिलाओं की सहभागिता थी।लेकिन उस काल में शिक्षा समाज के एक वर्ग विशेष तक ही सीमित थी, सभी की पहुँच शिक्षा तक नहीं थी।

 

20वीं शताब्दी की शुरूआत में महिलाओं के लिए शिक्षा पर जोर दिया गया ताकि वे अपनी संतान को शिक्षित कर राष्ट्र निर्माण में अपना सहयोग दे सकें।1906 में सरोजिनी नायडू ने एक सभा को संबोधित करते हुए महिला शिक्षा के महत्व को रेखांकित किया। इस मसय तक महिलाएँ काफी बड़ी संख्या में सार्वजनिक जीवन में भाग लेने लगी थीं। रमाबाई रानाडे, सरोजनी नायडू, एनी बेसेंट, रामेश्वरी नेहरू, राजकुमारी अमृत कौर, अरूणा आसफ अली, सुचेता कृपलानी, उषा मेहता और वैष्णवी देवी जैसी महिलाओं ने महत्वपूर्ण राजनीतिक और सामाजिक भूमिकाओं का निर्वहन किया।

 

स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद महिलाओं की शिक्षा, विशेष रूप से उच्च शिक्षा की नई शुरूआत हुई। देश के प्रथम प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू का कह्दना था कि आप महिलाओं की स्थिति को देखकर किसी राष्ट्र की स्थिति का आकलन कर सकते हैं। उनका मानना था कि महिलाओं के लिए उच्च शिक्षा समय की मांग है। उच्च शिक्षा के क्षेत्र में आज भारतीय महिलाओं की भागीदारी काफी अधिक है और इसमें उतरोत्तर वृद्धि हो रही है। इसका कारण नौकरी की उच्च आकांक्षा और माता-पिता का समर्थन है। आज महिलाओं की भूमिकाओं ने विद्यालयों, कॉलेजों, कार्यालयों, न्यायालयों, पुलिस स्टेशनों, अस्पतालों, होटलों और व्यावसायिक प्रतिष्ठनों का लिंग परिदृश्य बदल दिया है। महिलाएँ हर जगह हैं और प्रत्येक क्षेत्र में अपनी छाप छोड़ रही हैं। देश में बिना किसी संगठित महिला आन्दोलन के यह क्रांति चुपचाप आश्चर्यजनक रूप से आई है। महिलाएँ अब अपने भविष्य की संभावनाएँ तलाशने लगी हैं। माता-पिता द्वारा अपनी ब्रेटियों के प्रति विश्वास और उनकों दी गई स्वतंत्रता यह बताती है कि समय कितनी तेजी से बदला है।

 

बाहरी दुनिया के साथ संपर्क ने महिलाओं के दैनिक जीवन में उपलब्ध संभावनाओं का निर्धारण करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। आज घर में और घर के बाहर निर्णय करने के लिए महिलाओं की स्थिति या
उनको दी जाने वाली स्वयत्तता उनकी क्षमता पर निर्भर है।

 

जब महिलाएँ अधिक शिक्षा और प्रशिक्षण प्राप्त करती हैं तो अधिक धनार्जन भी करेंगी। जब महिलाएँ अधिक धनार्जन करेंगी तो वे इसे अपनी संतान की शिक्षा और स्वास्थ्य पर खर्च करेंगी। जब महिलाओं का
आर्थिक स्तर बढ़ेगा तो उन्हें घर में अधिक सामाजिक प्रतिष्ठा प्राप्त होनी और उनकी आवाज को दबाया नहीं जा सकेगा। जब महिलाओं के प्रभाव में वृद्धि होगी तो वे और प्रशिक्षण तथा अधिक आय प्राप्त करने जैसे अपने अधिकारों की मांग के प्रति अधिक मुखर हो सकेगी। जब महिलाओं की आर्थिक शक्ति में वृद्धि होगी तो उन्हें पुत्र उत्पन्न करने जैसी पारंपरिक रूढ़ियों से मुक्ति मिल सकेगी और दहेज जैसी कुरीति पर लगाम  कसने में सहायता मिलेगी। जब पुत्र की आकांक्षा में कमी होगी तो परिवार में लड़कियों की शिक्षा पर जोर दिया जाएगा और विवाह्ठ की आयु भी बढ़ जाएगी। जब स्वस्थ महिला का समय पर विवाह होगा तो उनकी संतान भी स्वस्थ होगी।

 

आने वाले दशकों में महिलाओं के जीवन में नए अभूतपूर्व अवसरों की सभावना है। नए माहौल से लाभ उठाने के लिए उन्हें सक्षम बनाने हेतु मानव संसाधन विकास के नए प्रारूपों की आवश्यकता पड़ेगी। आने वाली पीढ़ी में निरंतर और रचनात्मक नए विचारों को आत्मात करने की क्षमता होनी चाहिए। उनमें मानवीय मूल्यों और सामाजिक न्याय के प्रति मजबूत प्रतिबद्धता होनी चाहिए। इन सभी के लिए यह अपरिहार्य है कि महिलाओं को बेहतर शिक्षा के अवसर मिलें।