वेश्यावृत्ति उन्मूलन की दिशा में उठाए गए कदम (Steps taken towards the elimination of prostitution)

Posted on March 26th, 2020 | Create PDF File

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वेश्यावृत्ति उन्मूलन की दिशा में उठाए गए कदम (Steps taken towards the elimination of prostitution)

 

 

अंतर्राष्ट्रीय पहल (International Initiative)-

 

वेश्यावृत्ति के विरुद्ध विश्वव्यापी आन्दोलन चलाने का श्रेय जोसेफाइन एलिज़ाबेथ बटलर (Josephine Elizabeth Butler) को जाता है, जिन्होंने 1875 में दि इंटरनेशनल एबोलिशनिस्ट फेडरेशन (International Abolitionist Federation) की नींव जेनेवा में डाली। इनके प्रयत्नों से प्रभावित होकर 'लीग ऑफ नेशंस' ने उन सभी सिद्धान्तों एवं कार्यक्रमों का अनुमोदन किया जो इंटरनेशनल एबोलिशनिस्ट फेडरेशन के द्वारा कार्यान्वित किए जा रहे थे। इसके बाद कई देशों ने वेश्यावृत्ति के खिलाफ कानून बनाए। सन्‌ 1949 में संयुक्त राष्ट्र संघ ने वेश्याओं के शोषण एवं व्यक्तियों के दुर्व्यापार रोकने सम्बन्धित संधिपत्र (Convention) की संस्तुति प्रदान कर दी।

 

भारत सरकार द्वारा वेश्यावृत्ति उन्मूलन की दिशा में उठाए गए कदम- 

(Steps Taken by Government of India to Eliminate Prostitution)

 

सन्‌ 1950 में भारत ने मानव दुर्व्यापार एवं वेश्यावृत्ति को रोकने हेतु अंतर्राष्ट्रीय संधिपत्र (International Convention for the Suppression of Immoral Traffic in Persons and the Exploitation of the Prostitution of others) की अभिपुष्टि की थी।इस अंतर्राष्ट्रीय वचनबद्धता को पूरा करने के लिए भारत ने 1956 में मानव दुर्व्यापार दमन अधिनियम (Suppression of Immoral Traffic Act-SITA) पारित किया। यह मई 1957 से सम्पूर्ण देश में लागू हुआ। इसकी विसंगतियों को दूर करने एवं नई चुनौतियों का सामना करने के उद्देश्य से 1986 में इस अधिनियम में संशोधन किया गया और यह अनैतिक व्यापार (रोकथाम) अधिनियम (Immoral Traffic (Prevention) Act) कहलाया। इस अधिनियम में यौनकर्मियों के अधिकारों को न केवल संरक्षित करने बल्कि उनके पुनर्वास का भी प्रावधान किया गया। इसके अलावा 1993 में उच्चतम न्यायालय के एक दूरगामी महत्व के फैसले में यौनकर्मियों के बच्चों को स्कूलों में प्रवेश देने का आदेश दिया गया तथा साथ ही यह निर्देश दिया गया ऐसे बच्चों को पिता का नाम देना बाध्यकारी नहीं होगा। दिसम्बर, 2007 में महिला एवं बाल विकास मंत्रालय द्वारा यौन कर्मियों के हित संरक्षण, महिलाओं एवं बच्चों के अवैध व्यापार रोकने एवं वेश्यावृत्ति में लिप्त महिलाओं के पुनर्वास के लिए 'उज्जवला' नामक योजना लागू की गई है।

 

अनैतिक व्यापार रोकथाम संशोधन अधिनियम, 2006 (Immoral Traffic (Prevention) Amendment Act, 2006) के माध्यम से अनैतिक व्यापार (रोकथाम) अधिनियम, 1956 को संशोधित किया गया है। इसके माध्यम से कुछ नए प्रावधान जोड़े गए हैं।

 

नए प्रावधानों के अंतर्गत यदि कोई भी व्यक्ति किसी चकलाघर (Brothel) का प्रबंधन, देख-रेख या देख-रेख में सहायता करने का कार्य करता है तो उसे पहली बार दोषी पाए जाने पर दो से तीन साल तक की सश्रम (Rigorous) कारावास की सजा तथा 40 हजार रुपए तक जुर्माना लगाया जा सकता है। दूसरी बार दोषी पाए जाने पर तीन से सात साल की सश्रम कारावास की सजा तथा दो लाख रुपए तक का जुर्माना लगाया जा सकता है। यदि यह अपराध किसी बच्चे के विरुद्ध किया गया हो तो उसे सात साल से आजीवन तक सश्रम कारावास की सजा हो सकती है।

 

यह भी प्रावधान किया गया है कि यदि कोई व्यक्ति वेश्यावृत्ति के उद्देश्य से किसी महिला को लाने, ले जाने, ढोने या आश्रय देने का कार्य करता हैं या इस कार्य के लिए व्यक्ति की नियुक्ति करता है तथा इन कार्यों के लिए उसने धमकी, बल प्रयोग, उत्पीड़न, बहलाना-फ़ुसलाना, धोखा, छल-कपट, या अपनी शक्ति एवं सत्ता का दुरुपयोग करता है या पैसे का लेन-देन करता है, तो उसे मानव दुर्व्यापार का दोषी माना जाएगा। ऐसे किसी अपराध में शामिल होने पर पहली बार सात साल की जबकि दूसरी बार दोषी पाए जाने पर आजीवन कारावास (Imprisonment For Life) तक की सजा दी जा सकती है। यदि कोई व्यक्ति मानव दुर्व्यापार के प्रति वचनबद्धता दिखाता या उकसाता है तो उसे भी उपरोक्त सजा ही दी जाती है।

 

यह भी प्रावधान किया गया है कि यदि कोई व्यक्ति वेश्यालय में मानव दुर्व्यापार से पीड़ित के पास यौन उत्पीड़न (Sexual Exploitation) के उद्देश्य से जाता है तो इसके द्वारा ऐसा पहली बार गलती करने पर तीन माह की कारावास की सजा या बीस हजार रुपए तक जुर्माना या दोनों एक साथ लगाया जा सकता है और उसके द्वारा दूसरी बार ऐसा अपराध करने पर छट्ट माह तक की कारावास की सजा के साथ पचास हजार रुपए तक का जुर्माना लगाया जा सकता है। मानव दुर्व्यापार को प्रभावशाली तरीके से रोकने के लिए केन्द्र सरकार द्वारा एक प्राधिकरण के गठन का भी प्रावधान इस संशोधन अधिनियम में किया गया है।

 

2009 में सर्वोच्च न्यायालय ने सरकार से पूछा था कि यदि वेश्यावृत्ति को समाप्त नहीं किया जा सकता है तो क्या इसे कानूनी मान्यता दी जानी चाहिए।वेश्यावृत्ति को कानूनी मान्यता प्राप्त हो जाने से इस पेशे पर निगरानी की जा सकेगी, इसमें शामिल महिलाओं का पुनर्वास किया जा सकेगा उपयुक्त चिकित्सा सुविधा उपलबध कराई जा सकेगी। न्यायालय का कहना था कि कानून के माध्यम से इसे विश्व में कहीं भी समाप्त नहीं किया जा सका है। कानूनी प्रतिबंध के बावजूद भे वेश्यावृत्ति किसी न किसी रूप में जारी रहती है।

 

फरवरी 2011 में सर्वोच्च न्यायालय ने अपने एक आदेश में सभी राज्यों एवं केन्द्रशासित प्रदेशों से देश के सभी शहरों में यौन कर्मियों को तकनीकी एवं व्यावसायिक प्रशिक्षण देकर पुनर्वास योजना तैयार करने को कहा था। सर्वोच्च न्यायालय ने एक पैनल का भी गठन किया है, जो यौन कर्मियों के पुनर्वास से सम्बन्धित विभिन्‍न पहलुओं पर न्यायालय को सुझाव देने का कार्य करेगा।