नियमित अभ्यास क्विज़ (Daily Pre Quiz) - 135
Posted on May 3rd, 2019 | Create PDF File
प्रश्न-1 : ‘पवित्र उपवनों’ (Sacred Groves) के संदर्भ में निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये -
- पवित्र उपवन स्थानीय लोक देवताओं को समर्पित क्षेत्र हैं।
- ये पश्चिमी घाट के आसपास पाए जाते हैं लेकिन देश के पूर्वी हिस्से में नदारद हैं।
- ये जैव विविधता संरक्षण, जल स्तर रिचार्ज और मृदा संरक्षण में मदद करते हैं।
उपर्युक्त कथनों में से कौन-से सही हैं ?
(a) केवल II
(b) केवल I और III
(c) केवल II और III
(d) I, II और III
उत्तर - ()
प्रश्न-2 : भारत के निम्नलिखित में से किस क्षेत्र में इस बात की सर्वाधिक संभावना है कि आपको वहाँ ज़मीन पर रहने वाले गंभीर संकटापन्न रात्रिचर पक्षी ‘जेरडॉन कोर्सर’ अपने प्राकृतिक अधिवास में मिल सकते हैं ?
(a) प्रायद्वीपीय भारत के झाड़दार जंगल (आंध्र प्रदेश)
(b) उत्तर-पश्चिम भारत का रेतीला मरुस्थल (राजस्थान)
(c) जंगली मैदान और सदाबहार वर्षावनों के पहाड़ी ढाल (केरल)
(d) ऊँची घाटियाँ और पर्वत (जम्मू-कश्मीर और हिमाचल)
उत्तर - ()
प्रश्न-3 : भारत में प्रमुख प्रवाल भित्ति क्षेत्र हैं -
- मन्नार की खाड़ी
- अंडमान और निकोबार द्वीपसमूह
- लक्षद्वीप द्वीपसमूह
- कच्छ की खाड़ी
नीचे दिये गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिये :
(a) केवल I और II
(b) केवल I और III
(c) केवल I, III और IV
(d) I, II, III और IV
उत्तर - ()
प्रश्न-4 : जलीय जीवों (Aquatic organisms) के संदर्भ में निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये -
- तरणक (Nektons) असंबद्ध जीव होते हैं जो वायु-जल अंतराफलक, जैसे कि तैरते हुए पादपों पर रहते हैं।
- पटलक (Neustons) ऐसे जंतु हैं जो स्वाभाविक तैराक होते हैं।
- नितलस्थ (Benthos) ऐसे जीवों का समुदाय है जो गहरे सागरीय क्षेत्रों में पाए जाते हैं।
उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं ?
(a) केवल I
(b) केवल II
(c) केवल III
(d) I, II और III
उत्तर - ()
प्रश्न-5 : यदि आप मध्य भारत से होकर यात्रा करते हैं तो आप निम्नलिखित में से किन पादपों को प्राकृतिक रूप से उगते हुए देखेंगे ?
- सागवान
- साल
- ओक
नीचे दिये गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिये :
(a) केवल I और II
(b) केवल II और III
(c) केवल I और III
(d) I, II और III
उत्तर - ()
उत्तरमाला
उत्तर-1 : (b)
व्याख्या : भारत के पवित्र उपवन: पवित्र उपवनों (Sacred Groves) में वनों के अंश या प्राकृतिक वनस्पति के हिस्से शामिल हैं, जिनमें कुछ वृक्षों से लेकर कई एकड़ में फैले वन होते हैं, जो सामान्यतया स्थानीय लोक देवताओं को समर्पित होते हैं। जैव विविधता संरक्षण का एक पारंपरिक माध्यम इन उपवनों को प्राकृतिक अभयारण्यों के समकक्ष प्राचीन माना जा सकता है, जहाँ सभी जीवित प्राणियों को किसी देवता द्वारा संरक्षण दिया जाता है। पवित्र उपवन की पवित्रता एक से दूसरे उपवन तक भिन्न होती है। यहाँ तक कि कुछ वनों में नीचे गिरे सूखे पत्तों और और गिरे हुए फलों को भी नहीं छुआ जाता। लोगों का मानना है कि किसी तरह का व्यवधान स्थानीय देवता को अप्रसन्न करेगा, जिसकी वजह से बीमारियों, प्राकृतिक आपदाओं या फसलों के नष्ट होने जैसी घटनाएँ हो सकती हैं। अत: कथन 1 सही है।
वर्तमान में केवल लगभग 1000 वर्ग किलोमीटर के ऐसे उपवन हैं, जो टुकड़ों में देश भर में फैले हैं। केरल और कर्नाटक में पश्चिमी घाट में प्रचुर मात्रा में पाए जाने वाले ये उपवन पूर्वी भारत में भी पाए जाते हैं। उदाहरणार्थ- देश के कुछ सबसे घने ऐसे उपवन मेघालय की खासी पर्वतश्रेणी में पाए जाते हैं, जिन्हें स्थानीय रूप से लॉकिनटैंग्स (Lawkyntangs) के रूप में जाना जाता है।
पारिस्थितिकीय महत्त्व
जैव विविधता का संरक्षण- वनस्पतियों और जीवों की विविधता के भंडार ये उपवन संबंधित भौगोलिक क्षेत्र में स्थानिक प्रजातियों के अंतिम आश्रय स्थल होते हैं।
जलभृत (Aqifier) की रिचार्जिंग- प्राय: तालाबों, धाराओं या झरनों के साथ जुड़े होने के कारण स्थानीय लोगों की जल आवश्यकताओं को पूरा करने में सहायता करते हैं। वनस्पति आच्छादन जलभृत (Aquifer) की रिचार्जिंग में मदद करता है। अतःकथन 3 सही है।
मृदा संरक्षण- उपवनों में वनस्पति आच्छादन होने से क्षेत्र में मृदा की स्थिरता बढ़ती है और मृदा अपरदन को रोकने में भी सहायता मिलती है।
उत्तर-2 : (a)
व्याख्या : आई.यू.सी.एन. की रेड लिस्ट में गंभीर रूप से संकटापन्न पक्षी के रूप में शामिल जेरडॉन कोर्सर ज़मीन पर रहने वाला रात्रिचर पक्षी है, यह अब कडप्पा ज़िले और संभवत: आंध्र प्रदेश के कुछ आसपास के क्षेत्रों तक ही सीमित हो गया है। इसका प्राकृतिक अधिवास खुले स्थानों वाले प्रायद्वीपीय भारत के झाड़ीदार जंगलों में है। प्रत्यक्ष तौर पर अधिकांशत: इसका अधिवास घने जंगलों और घासभूमियों या कृषि क्षेत्र के बीच की पतली पट्टी है। अतीत में इसे पूरे आंध्र प्रदेश के कई स्थानों में और यहाँ तक कि महाराष्ट्र के पूर्वी भाग के एक स्थान में भी देखा गया था। यह वन्यजीव (संरक्षण) अधिनियम, 1972 की अनुसूची-1 में शामिल है।
बॉम्बे नेचुरल हिस्ट्री सोसाइटी द्वारा 1986 में पुन: खोजे जाने से पहले तक इसे विलुप्त माना जाता था। कालांतर में इस क्षेत्र को सरकार द्वारा श्रीलंकामलेस्वर वन्यजीव अभयारण्य के रूप में चिह्नित किया गया था। वर्तमान में यह पक्षी और इसका अधिवास स्थान परिवर्तन, नई सिंचाई सुविधाओं से हो रहे अनियंत्रित कृषि विस्तार, पशुओं द्वारा अनियंत्रित चराई और पक्षी पकड़ने के कारण काफी दबाव में है।
उत्तर-3 : (d)
व्याख्या : भारत में पाई जाने वाली प्रवाल चट्टानों के प्रकार: भारत में कुल प्रवाल भित्ति क्षेत्र लगभग 5,790 वर्ग किलोमीटर है, जो चार प्रमुख क्षेत्रों में विभाजित है- मन्नार की खाड़ी, अंडमान व निकोबार द्वीप समूह, लक्षद्वीप और कच्छ की खाड़ी। भित्तियों की संरचना और प्रजाति की विविधता क्षेत्र एवं पर्यावरण स्थितियों पर निर्भर करती है।
भारत की मुख्य भूमि के पूर्वी और पश्चिमी तटों के जलमग्न किनारों पर भी प्रवाल भित्तियों की मौजूदगी पाई जाती है।
चागोस-लक्कादीव कटक के उत्तरी छोर पर स्थित लक्षद्वीप में गहरे पानी से घिरे 12 प्रवाल द्वीपों का द्वीप समूह है।
कच्छ की खाड़ी में 34 द्वीपों के आसपास बलुआ पत्थर पर गहरी रंगत लिये उथली भित्तियाँ हैं। इन भित्तियों में उच्च लवणता, बार-बार प्रकटीकरण, तापमान में अत्यधिक उतार-चढ़ाव और भारी अवसादन होता है।
मन्नार की खाड़ी में प्रवाल भित्तियाँ मुख्य रूप से रामेश्वरम और तूतीकोरिन के बीच 21 द्वीपों में पाई जाती हैं। संभवत: प्रवाल खनन और क्षरण के कारण दो पूर्व द्वीप अब डूब चुके हैं।
अंडमान एवं निकोबार द्वीपसमूह में 530 द्वीपों में व्यापक फ्रिंजिंग भितियाँ हैं, जो अच्छी स्थिति में हैं।
देश में अन्य क्षेत्रों में मैंगलूरु से लगभग 100 किमी. दूर अपतटीय गवेशनी किनारे के निकट तथा भारत की मुख्य भूमि के पूर्वी और पश्चिमी तटों के साथ कई क्षेत्रों में प्रवाल पाए जाते हैं, जैसे- मुंबई के निकट पाया जाने वाला मालवण प्रवाल भित्ति अभयारण्य।
उत्तर-4 : (c)
व्याख्या : जलीय जीव-जलीय जीवों को उनके पाए जाने के क्षेत्र और इन क्षेत्रों में गतिशील होने के आधार पर वर्गीकृत किया गया है। जैविक पारिस्थितिकी तंत्र में वनस्पतियों और जीवों को उनके जीवन स्वरूप या स्थान के आधार पर पाँच समूहों में वर्गीकृत किया जा सकता है-
तरणक- इस समूह में उन जीवों को शामिल किया जाता है जो प्राकृतिक रूप से तैरने वाले होते हैं। तरणक आकार में अपेक्षाकृत बड़े और शक्तिशाली होते हैं जिसके कारण तेज़ जलधाराओं को आसानी से काबू में कर लेते हैं। इनके आकार भिन्न-भिन्न होते हैं। इस समूह का सबसे छोटा प्राणी तैरने वाला कीट है जिसका आकार लगभग 2 mm होता है, जबकि सबसे बड़ा प्राणी ब्लू व्हेल है। अत: कथन 1 सही नहीं है।
पटलक- ये स्वतंत्र जीव होते हैं जो वायु-जल अंतराफलक में रहते हैं, जैसे तैरने वाले पौधे आदि। कुछ जीव अपने जीवन का अधिकांश हिस्सा वायु-जल अंतराफलक में व्यतीत करते हैं, जैसे वाटर स्ट्राइडर्स, जबकि अन्य अपने जीवन का अधिकांश हिस्सा वायु-जल अंतराफलक के नीचे व्यतीत करते हैं और अपना अधिकांश भोजन जल में ही प्राप्त करते हैं, जैसे- झींगुर तथा बैक स्विमर्स। अत: कथन 2 सही नहीं है।
पेरीफाइटन (Periphyton)- ये जीव जड़ वाले पौधों की पत्तियों और तनों से जुड़े होते हैं।
प्लेंकटन- इस समूह में आने वाले जीवों में सूक्ष्मदर्शी पौधे जैसे- शैवाल तथा जीव प्राणी जैसे- crustaceans शामिल होते हैं।
उत्तर-5 : (a)
व्याख्या : मध्य भारत में मुख्य रूप से उष्णकटिबंधीय पर्णपाती वन पाए जाते हैं। इन्हें मानसून वन भी कहा जाता है। मध्य भारत में पादपों की पाई जाने वाली मुख्य प्रजातियाँ हैं: सागवान, साल, शीशम, हर्रा, महुआ, आंवला, चंदन, तेंदू, पलास, अमलतास और खैर।
ओक के साथ-साथ देवदार, चिनार, अखरोट आदि पर्वतीय वनों की प्रजातियाँ हैं जो प्राय: हिमालय क्षेत्र और पूर्वी तथा पश्चिमी घाट के पर्वतीय मैदान में पाए जाते हैं।