नियमित अभ्यास क्विज़ (Daily Pre Quiz) - 159

Posted on June 4th, 2019 | Create PDF File

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प्रश्न-1 : राष्ट्रीय न्यायिक नियुक्ति आयोग अधिनियम जिसे सर्वोच्च न्यायालय द्वारा निरस्त कर दिया गया, का उद्देश्य था -

(a) उच्च न्यायपालिका में न्यायाधीशों की नियुक्ति प्रक्रिया में पारदर्शिता लाना

(b) अखिल भारतीय न्यायिक सेवाओं का सृजन करना

(c) उच्चतम न्यायालय में न्यायाधीशों की संख्या में वृद्धि करना 

(d) इनमें से कोई नहीं

 

उत्तर - ()

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

प्रश्न-2 : भारत में न्यायिक पुनर्विलोकन के संदर्भ में निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये -

  1. भारतीय संविधान में न्यायिक पुनर्विलोकन के प्रावधान को संयुक्त राज्य अमेरिका के संविधान से अपनाया गया है। 
  2. भारत में सर्वोच्च न्यायालय की न्यायिक पुनर्विलोकन की शक्ति का दायरा अमेरिका में विद्यमान न्यायिक पुनर्विलोकन की शक्ति की तुलना में अधिक व्यापक है।
  3. 24 अप्रैल, 1973 के बाद संविधान की नौवीं अनुसूची के तहत शामिल सभी कानून, न्यायिक समीक्षा के तहत आते हैं, यदि वे संविधान की मूल संरचना का उल्लंघन करते हैं।

उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं?  

(a) केवल I

(b) केवल I और III

(c) केवल II 

(d) I, II और III

 

उत्तर - ()

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

प्रश्न-3 : ‘न्यायिक सक्रियता’ के संदर्भ में निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये -

  1. न्यायिक सक्रियता को ‘न्यायिक गतिशीलता’ के रूप में भी जाना जाता है, यह ‘न्यायिक संयम’ (Judicial restraint) का प्रतिवाद है। 
  2. जनहित याचिका न्यायिक सक्रियता का परिणाम है।
  3. न्यायिक सक्रियता की अवधारणा का उद्भव एवं विकास यू.के. में हुआ।

उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं?  

(a) केवल I

(b) केवल I और II

(c) केवल III 

(d) I, II और III

 

उत्तर - ()

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

प्रश्न-4 : निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये -

  1. उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीशों को केवल दो आधारों पर उनके पद से हटाया जा सकता है- साबित कदाचार या असमर्थता।
  2. उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीशों को हटाने के लिये प्रस्ताव संसद के प्रत्येक सदन में पूर्ण बहुमत द्वारा ही पारित किया जा सकता है।

उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं?  

(a) केवल I

(b) केवल II

(c) I और II दोनों 

(d) इनमें से कोई नहीं    

 

उत्तर - ()

 

 

 

 

 

 

 

 

 

प्रश्न-5 : न्यायिक पुनर्विलोकन के संदर्भ में निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये:

  1. भारतीय संविधान ने न्यायिक पुनर्विलोकन की शक्ति स्पष्ट रूप से उच्चतर न्यायपालिका को प्रदान की है। 
  2. अमेरिकी संविधान के किसी भी प्रावधान में न्यायिक पुनर्विलोकन की अवधारणा का स्पष्ट रूप से उल्लेख नहीं किया गया है।

उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं?  

(a) केवल I

(b) केवल II

(c) I और II दोनों 

(d) इनमें से कोई नहीं

         

उत्तर - ()

 

 

 

 

उत्तरमाला

 

 

 

 

 

उत्तर-1 : (a)         

 

व्याख्या : उच्चतम न्यायालय ने राष्ट्रीय न्यायिक नियुक्ति आयोग (National Judicial Appointments Commission-NJAC) और 99वें संवैधानिक संशोधन अधिनियम को खारिज कर दिया जो राजनेताओं और नागरिक समाज को उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीशों की नियुक्ति में अंतिम फैसला देने का प्रयास करता था। अत: विकल्प (a) सही है।

एन.जे.ए.सी. एक संवैधानिक निकाय था जो न्यायाधीशों की नियुक्ति के वर्तमान कॉलेजियम प्रणाली को प्रतिस्थापित करने के लिये प्रस्तावित था।

कॉलेजियम प्रणाली, वह प्रणाली है जिसमें भारत के मुख्य न्यायाधीश और सर्वोच्च न्यायालय के चार वरिष्ठ न्यायाधीशों का एक मंच न्यायाधीशों की नियुक्तियों एवं स्थानांतरण की सिफारिश करता है। हालाँकि, इसे संविधान में कोई स्थान प्राप्त नहीं है। प्रणाली को ‘तीन न्यायाधीशों के मामलों (28 अक्तूबर, 1998)’ के फैसलों के माध्यम से विकसित किया गया था।

 

 

 

 

 

 

उत्तर-2 : (b)

 

व्याख्या : न्यायिक समीक्षा के सिद्धांत का उद्भव तथा विकास संयुक्त राज्य अमेरिका में हुआ। उच्चतम न्यायालय ने न्यायिक समीक्षा की शक्ति की घोषणा संविधान की मूलभूत विशेषता या संविधान की मूल संरचना के तत्त्व के रूप में की है। इसलिये, न्यायिक समीक्षा की शक्ति को संवैधानिक संशोधन द्वारा न तो कम किया जा सकता है न ही हटाया जा सकता है। अत: कथन 1 सही है।

न्यायिक समीक्षा केंद्र सरकार और राज्य सरकार दोनों के विधायी अधिनियमों और कार्यकारी आदेशों की संवैधानिकता की जाँच करने की न्यायपालिका की शक्ति है। जाँच में यदि वे संविधान का उल्लंघन (अधिकारातीत) करते हैं, तो उन्हें न्यायपालिका द्वारा अवैध, असंवैधानिक और अमान्य (अकृत एवं शून्य) घोषित किया जा सकता है। परिणामस्वरूप, वे सरकार द्वारा लागू नहीं किये जा सकते हैं।

 

न्यायिक समीक्षा की आवश्यकता निम्न कारणों से होती है:

 

(a)संविधान की सर्वोच्चता के सिद्धांत को बनाए रखने के लिये।

(b)संघीय संतुलन (केंद्र और राज्यों के बीच संतुलन) को बनाए रखने के लिये।

(c)नागरिकों के मौलिक अधिकारों की रक्षा के लिये।

 

अमेरिकी संविधान, भारतीय संविधान में निहित ‘‘विधि की देय प्रक्रिया’ के विपरीत, ‘विधि द्वारा स्थापित प्रक्रिया’ का प्रावधान करता है। दोनों के बीच अंतर इस प्रकार है: विधि की देय प्रक्रिया, उच्चतम न्यायालय को अपने नागरिकों के अधिकारों को संरक्षण प्रदान करने के लिये व्यापक अधिकार प्रदान करती है। यह न केवल गैर-कानूनी होने के आधार पर, बल्कि अनुचित होने के प्रक्रियात्मक आधार पर इन अधिकारों का उल्लंघन करने वाले कानूनों को अतिक्रमणात्मक घोषित कर सकता है। हालाँकि, हमारा उच्चतम न्यायालय, कानून की संवैधानिकता निर्धारित करते समय, केवल मूलभूत मुद्दों अर्थात् वह कानून संबंधी प्राधिकारों के अंतर्गत है या नहीं, की जाँच करता है। यह तर्कसंगतता, उपयुक्तता या नीति के प्रभाव के मुद्दों में जाना इसके लिये अपेक्षित नहीं है। अत: कथन 2 सही नहीं है।

11 जनवरी, 2007 को एक ऐतिहासिक निर्णय में भारत के उच्चतम न्यायालय ने फैसला सुनाया कि सभी विधियाँ (वे भी जो नौवीं अनुसूची में शामिल हैं) न्यायिक समीक्षा के अधीन आएँगी यदि वे संविधान की मूल संरचना का उल्लंघन करती हैं।

उच्चतम न्यायालय के फैसले में कहा गया कि नौवीं अनुसूची के तहत 24 अप्रैल, 1973 के बाद बनाए गए कानूनों ने यदि संविधान के अनुच्छेद 14, 19, 20 और 21 के तहत निश्चित किये गए मौलिक अधिकारों का उल्लंघन किया तो उन्हें न्यायालय में चुनौती दी जा सकती है। अत: कथन 3 सही है।

 

 

 

 

 

 

 

उत्तर-3 : (c)

 

व्याख्या : न्यायिक सक्रियता नागरिकों के अधिकारों और समाज में न्याय को बढ़ावा देने में न्यायपालिका द्वारा निभाई गई सक्रिय भूमिका को दर्शाती है। ‘न्यायिक सक्रियता’ को ‘न्यायिक गतिशीलता’ के रूप में भी जाना जाता है। यह ‘न्यायिक संयम’ का विरोधाभास है, जिसका तात्पर्य है न्यायालय द्वारा स्वयं पर नियंत्रण। अत: कथन 1 सही है।

न्यायिक सक्रियता की अवधारणा का निकट संबंध जनहित याचिका (Public Interest Litigation-PIL) से है। यह सर्वोच्च न्यायालय की न्यायिक सक्रियता है जो पी.आई.एल. की उत्पत्ति का प्रमुख कारक है। दूसरे शब्दों में पी.आई.एल. न्यायिक सक्रियता का परिणाम है। अत: कथन 2 सही है।

न्यायिक सक्रियता की उत्पत्ति एवं विकास संयुक्त राज्य अमेरिका में हुआ। इस शब्द को पहली बार 1947 में आर्थर ‘लेस्लिंगर जूनियर’ द्वारा परिणत किया गया था। अत: कथन 3 सही नहीं है।

 

 

 

 

 

 

 

उत्तर-4 : (a)

 

व्याख्या : अनुच्छेद 124(4): उच्चतम न्यायालय के किसी न्यायाधीश को उसके पद से तब तक नहीं हटाया जाएगा, जब तक साबित कदाचार या असमर्थता के आधार पर इस आशय के प्रस्ताव को संसद के प्रत्येक सदन द्वारा अपनी कुल सदस्य संख्या के बहुमत तथा उपस्थित और मत देने वाले सदस्यों के कम-से-कम दो-तिहाई बहुमत द्वारा पारित करके राष्ट्रपति के समक्ष उसी सत्र में रखे जाने पर राष्ट्रपति ने आदेश न दे दिया हो।

अत: कथन 1 सही है और कथन 2 सही नहीं है।

 

 

 

 

 

 

 

उत्तर-5 : (c)

 

व्याख्या : न्यायिक पुनर्विलोकन:

 

न्यायिक पुनर्विलोकन की अवधारणा संयुक्त राज्य अमेरिका में उत्पन्न और विकसित हुई। अमेरिका के संघीय न्यायालय के तत्कालीन मुख्य न्यायाधीश जॉन मार्शल ने पहली बार 1803 में इसे पेश किया था। दूसरी ओर, भारत में स्वयं संविधान ने न्यायिक पुनर्विलोकन की शक्ति न्यायपालिका (सर्वोच्च न्यायालय और उच्च न्यायालय दोनों) को प्रदान की है। सर्वोच्च न्यायलय ने भी न्यायिक पुनर्विलोकन की शक्ति को संविधान के आधारभूत ढाँचे के रूप में घोषित किया है। यह न्यायपालिका में विधायी अधिनियमों की संवैधानिकता और केंद्र और राज्य सरकारों दोनों के कार्यकारी आदेशों की जाँच करने की शक्ति है।

यद्यपि संविधान में वाक्यांश ‘न्यायिक पुनर्विलोकन’ का प्रयोग नहीं किया गया है, पर कई अनुच्छेदों के प्रावधानों ने स्पष्ट रूप से सर्वोच्च न्यायालय और उच्च न्यायालय को न्यायिक पुनर्विलोकन की शक्ति प्रदान की है। अत: कथन 1 सही है।

एक विधायी अधिनियमन और कार्यकारी आदेश की संवैधानिक वैधता को निम्नलिखित आधारों पर उच्च न्यायालयों में चुनौती दी जा सकती है:

 

  1. यदि यह मौलिक अधिकारों का उल्लंघन करता है
  2. यदि यह उस प्राधिकारी की क्षमता से बाहर है जिसने इसे तैयार किया है
  3. यदि यह संवैधानिक प्रावधानों के प्रति प्रतिकूल है

 

भारत में न्यायिक पुनर्विलोकन का दायरा संयुक्त राज्य अमेरिका की तुलना में संकीर्ण है। हालाँकि, अमेरिकी संविधान स्पष्ट रूप से किन्हीं भी प्रावधानों में न्यायिक पुनर्विलोकन की अवधारणा का उल्लेख नहीं करता है। फिर भी, यह ‘विधि द्वारा स्थापित प्रक्रिया’ के बजाय जिसका उल्लेख भारतीय संविधान में किया गया है, ‘‘विधि द्वारा स्थापित’’ से व्युत्पन्न होती है। अत: कथन 2 सही है।