नीतिशास्त्र के आयाम ( Dimensions of ethics )

Posted on March 17th, 2020 | Create PDF File

नैतिक चिंतन का पारंपरिक अध्ययन दर्शनशास्त्र के अंतर्गत किया जाता रहा है,लेकिन इसकी विषयवस्तु एवं स्वरूप इसे ज्ञान की अन्य विधाओं से भी जोड़ देता है। यह मुख्यतः मनोविज्ञान, समाजशास्त्र एवं आंशिक रूप में राजनीति विज्ञान से संबद्ध हो जाता है। दर्शनशास्त्र ज्ञान की प्रथम विधा है इसकी मुख्य शाखाएं तत्वमीमांसा, ज्ञानमीमांसा, तकशास्त्र एवं मूल्यमीमांसा है। तत्वमीमांसा संसार के मूल कारण एवं लक्ष्य का अध्ययन करता है। ज्ञानमीमांसा ज्ञान के स्वरूप, सिद्धान्त एवं सीमाओं का अध्ययन करता है। तर्कशास्त्र तार्किक नियमों एवं तर्कदोषों को परिभाषित करने का प्रयास करता है। दर्शनशास्त्र मूलतः तर्कों पर आधारित है, इसलिए तकंशास्त्र इसका प्रमुख अंग बन जाता है। मूल्यमीमांसा मानव जीवन के लक्ष्य को निर्धारित करने का प्रयास करता है। नीतिशास्त्र मूल्यमीमांसा का ही एक अंग है। इसलिए यह अनिवार्य रूप से दर्शन का भाग बना रहता है। यह एक तरफ तत्वमीमांसीय पक्ष से संयुक्त रहता है जबकि दूसरी तरफ मानव जीवन के व्यावहारिक पक्ष से। व्यवहारिक पक्ष से जुड़ें होने के कारण एवं तथ्यों का अध्ययन करते हुए उनके आदर्श रूप को परिभाषित करने के कारण यह कला की श्रेणी से बाहर हो जाता है। इसे विज्ञान की संज्ञा दी जाती हैं क्योंकि यह मानव व्यवहार के तथ्यों का अध्ययन करता है। साथ ही इसे आकारिक या आदर्शमूलक कहा जाता हैं क्‍योंकि यह मानव व्यवहार के लिए आदर्श प्रस्तुत करने का प्रयास करता है। लेकिन आदर्श सदैव अमूर्त होते हैं। इसलिए इसका स्वरूप आकारिक बना रहता है और इसीलिए इसे आकारिक विज्ञान की संज्ञा दी जाती है।