प्रतिबद्धता एक नैतिक मूल्य है, लेकिन नैतिक चिंतन के क्षेत्र में प्रतिबद्धता की वस्तुनिष्ठ परिभाषा अभी तक संभव नहीं हो सकी है। प्रतिबद्धता को भी प्राय: व्यक्ति सापेक्ष समझा जाता है। कांट ने प्रतिबद्धता को कर्तव्य के रूप में परिभाषित करने का प्रयास किया है। कांट के अनुसार कर्तव्य में एक प्रकार की बाध्यता होती है जो उसे अन्य नैतिक कार्यों से अलग बनाती है। कर्तव्य की इस बाध्यता का सतत् बोध होता है और इसके पालन न करने पर एक प्रकार का पश्चाताप या क्षोभ होता है, लेकिन कर्तव्य की इस बाध्यता पर भी दार्शनिकों के मध्य पारस्परिक विवाद है।
वास्तव में कर्तव्य बोध अंतःप्रात्मक है। प्रायः भिन्न-भिन्न व्यक्तियों में कर्तव्य बोध का स्तर भिन्न-भिन्न होता है। अर्थात् इस बाध्यता का मूल स्वरूप आत्मनिष्ठ बना रहता है। पुनः यह प्रश्न भी अनुत्तरित रह जाता है कि किसी कर्तव्य को स्वीकार करने से पूर्व व्यक्ति की स्वतंत्रता बनी रहती है। यद्यपि इस प्रश्न के समाधान के लिए ब्रेडले ने 'मेरा स्थान एवं उसके कर्तव्य' (My station and its duties) नामक सिद्धान्त प्रस्तुत किया। लेकिन इस सिद्धान्त की भी सीमाएं बनी रहती हैं। इसलिए अर्थक्रियावादियों ने प्रतिबद्धता को समयबद्ध कार्यक्रम एवं लक्ष्य के रूप में परिभाषित किया।
प्रतिबद्धता एक नैतिक मूल्य है, लेकिन नैतिक चिंतन के क्षेत्र में प्रतिबद्धता की वस्तुनिष्ठ परिभाषा अभी तक संभव नहीं हो सकी है। प्रतिबद्धता को भी प्राय: व्यक्ति सापेक्ष समझा जाता है। कांट ने प्रतिबद्धता को कर्तव्य के रूप में परिभाषित करने का प्रयास किया है। कांट के अनुसार कर्तव्य में एक प्रकार की बाध्यता होती है जो उसे अन्य नैतिक कार्यों से अलग बनाती है। कर्तव्य की इस बाध्यता का सतत् बोध होता है और इसके पालन न करने पर एक प्रकार का पश्चाताप या क्षोभ होता है, लेकिन कर्तव्य की इस बाध्यता पर भी दार्शनिकों के मध्य पारस्परिक विवाद है।
वास्तव में कर्तव्य बोध अंतःप्रात्मक है। प्रायः भिन्न-भिन्न व्यक्तियों में कर्तव्य बोध का स्तर भिन्न-भिन्न होता है। अर्थात् इस बाध्यता का मूल स्वरूप आत्मनिष्ठ बना रहता है। पुनः यह प्रश्न भी अनुत्तरित रह जाता है कि किसी कर्तव्य को स्वीकार करने से पूर्व व्यक्ति की स्वतंत्रता बनी रहती है। यद्यपि इस प्रश्न के समाधान के लिए ब्रेडले ने 'मेरा स्थान एवं उसके कर्तव्य' (My station and its duties) नामक सिद्धान्त प्रस्तुत किया। लेकिन इस सिद्धान्त की भी सीमाएं बनी रहती हैं। इसलिए अर्थक्रियावादियों ने प्रतिबद्धता को समयबद्ध कार्यक्रम एवं लक्ष्य के रूप में परिभाषित किया।