स्वतंत्रता के बाद भारत में सिविल सेवाएँ (Civil services in India after independence)

Posted on March 21st, 2020 | Create PDF File

स्वतंत्रता के उपरांत भारत की शासन व्यवस्था प्रजातांत्रिक व्यवस्था पर आधारित हो गई जो लोक कल्याण के आदर्शों से प्रेरित है। ऐसी स्थिति में लोक सेवकों की भूमिका अधिक महत्वपूर्ण हो जाती है। लोक सेवकों की भूमिका के सन्दर्भ में प्रथम प्रशासनिक आयोग ने निम्न तथ्य रेखांकित किए थे-

 

*राष्ट्रीय एकता और अखंडता को सुरक्षित करना और प्रशासन के एकरूपी मानकों (Uniform Standards of Administration)  को सुनिश्चित करना।

*प्रशासन में तटस्थता और वस्तुनिष्ठता को सुनिश्चित करना, साथ ही प्रशासन को गैर-राजनीतिक, पंथनिरपेक्ष और गैर-साम्प्रदायिक दृष्टिकोण प्रदान करना |

*योग्यता, दक्षता और पेशेवर दृष्टिकोण वाले उम्मीदवारों का चयन सुनिश्चित करना ताकि प्रशासन में दक्षता आ सके।

*अक्षुण्णता (Integrity) और आदर्शवाद (Idealism) को सिविल सेवकों में स्थापित करना।

 

प्रथम प्रशासनिक सुधार आयोग ने भारतीय सिविल सेवा व प्रशासकों को निम्नांकित क्षेत्रों में विशिष्टता अर्जित करने की अनुशंसा की-

 

*आर्थिक प्रशासन ।

*औद्योगिक प्रशासन ।

* कृषि व ग्रामीण विकास प्रशासन।

* सामाजिक और शैक्षणिक प्रशासन ।

* कर्मचारी प्रशासन |

* वित्तीय प्रशासन।

* प्रतिरक्षा प्रशासन एवं आन्तरिक सुरक्षा।

* नियोजन।

 

प्रथम प्रशासनिक आयोग की विशिष्टता अर्जित करने की उपरोक्त अनुशंसा इस आधार पर दी गई थी कि भारत के सामाजिक-आर्थिक विकास में उपरोक्त विशिष्ट क्षेत्र हैं, जिसमें लोक सेवा को कार्य करना है। अर्थात्‌ लोक सेवाओं की प्रभावी भूमिका के लिए ए.आर.सी. द्वारा सुझाए गए उपरोक्त क्षेत्र समग्र विकास के वे मानक हैं, जिनको प्राप्त किए बिना देश का विकास नहीं हो सकता है।

 

उदारीकरण के बाद भारत में लोक सेवाओं को आवश्यक रूप से एक विनियामक की नहीं, बल्कि सहायता/समन्वयक की भूमिका प्रदान की गई है। सुशासन की बढ़ती माँगों, सिटीजन चार्जर, सूचना का अधिकार, बढ़ती साक्षरता, अधिकारों के प्रति जागरूकता, सेवा प्रदाता राज्य की धारणा आदि स्थितियों ने सिविल सेवा की तटस्थता, निष्पक्षता, वस्तुनिष्ठता में बढ़ात्तरी कर उसे सामाजिक-आर्थिक न्याय की दिशा में उन्मुख किया है।

 

यद्यपि भारत में राष्ट्रीय व राज्य स्तरीय राजनीतिक दलों व उनसे सम्बन्धी सत्तासीन लोगों का नौकरशाही पर नियंत्रण अब भी अप्रत्यक्ष रूप से प्रतिबद्ध नौकरशाही की धारणा को जीवंत किए हुए है, लेकिन सुशासन और सहभागितामूलक व्यवस्था की दिशा में उपजी माँग ने नौकरशाही अथवा सिविल सेवा की भूमिका को गतिशील बनाया है।

 

भारत के योजना आयोग के पूर्व सचिव एन.सी. सक्सेना ने स्पष्ट किया है कि भारत में नई आर्थिक नीति अपनाने तथा आर्थिक सुधारों को दिशा देने के साथ ही वैश्वीकृत विश्व में लोगों की जीविकोपार्जन चुनौतियों, स्वास्थ्य, प्राथमिक शिक्षा, निर्धनता उन्मूलन जैसे क्षेत्रों में लोक प्रबंधन की चुनौतियाँ बढ़ी हैं।

 

वर्तमान समय में प्रदूषण, खाद्य असुरक्षा व बीमारियाँ, ग्लोबल वार्मिंग और जलवायु परिवर्तन, जेनेटिकली मोडीफाइड आर्गेनिज्म, जोखिम भरे अपशिष्ट, औद्योगिक दुर्घटनाएँ, जैव-विविधता क्षरण, उपभोक्ता अधिकारों के संरक्षण जैसे क्षेत्रों ने एक दक्ष व विशेषा सिविल सेवा की अपेक्षाओं को बढ़ा दिया है।

 

वर्तमान समय में 'थिंक ग्लोबली, एक्ट लोकली 'जैसी धारणा को जन्म मिला है। आज प्रशासन को अधिक दक्ष व स्मार्ट बनाने की दिशा में काम चल रहा है। विभिन्‍न समस्याओं की प्रकृति अधिकाधिक जटिल होती जा रही है, जिसके कारण समस्या की सह्ठी पहचान और उसके समाधान के लिए आवश्यक सभी बातों की जानकारी होनी आवश्यक हो गई है।