भारतीय लोकतंत्र में सिविल सेवकों की भूमिका (Role of Civil Services in Indian Democracy)

Posted on March 20th, 2020 | Create PDF File

भारतीय लोकतंत्र में सिविल सेवकों की भूमिका को निम्नलिखित बिन्दुओं के अन्तर्गत देखा जा सकता है-

 

1.नीतियों का क्रियान्वयन :

सिविल सेवकों का सबसे महत्वपूर्ण और मौलिक कार्य राजनैतिक कार्यपालिका द्वारा निर्णय ली गई नीतियों का क्रियान्वयन करना है। सिविल सेवक भारत में सामाजिक समानता व आर्थिक विकास जैसे कल्याणकारी लक्ष्यों तथा नीति-निदेशक सिद्धान्तों में उल्लिखित लक्ष्यों कमी प्राप्ति के लिए नियम और नीतियाँ क्रियान्वित करता है।

 

2. नीति निरूपण :

राजनैतिक कार्यपालिका का कार्य नीति का निरूपण और निर्धारण करना है। लेकिन सिविल सेवक भी इस सन्दर्भ में सक्रिय भूमिका निभाते हैं। वे सूचना प्रदान करते हैं और नीति निर्माण में मंत्रालयों को सहायता प्रदान करते हैं। राजनैतिक कार्यपालिका अपरिपक्व होने के कारण नीतियों की तकनीकी जटिलताओं को समझने में विफल रहते हैं, अतः वे पेशेवर सिविल सेवकों के गुणवत्तायुक्त परामर्श पर निर्भर करते हैं।

 

3. प्रत्यायोजित विधायन :

सिविल सेवकों द्वारा संपन्‍न किया जाने वाला यह एक उपयुक्त कार्य होता है। समयाभाव, कार्यभार और विधायन की अधिक जटिलताओं के कारण विधि निर्माता सिर्फ नियमों का खाका खींच देते हैं और नियम का विस्तृत रूप निर्मित करने के लिए वे क्रियान्वयनकर्ता को शक्तियों का प्रत्यायोजन करते हैं। अतः सिविलि सेवक उप नियम, नियम और विनियमन निर्मित करते हैं, लेकिन वे विधायिका द्वारा अधिनियम वर्तमान कानूनों की सीमाओं में रहकर ही ऐसा करते हैं।

 

4. प्रशासनिक निर्णयन :

सिविल सेवकों द्वारा संपादित किया जाने वाला यह एक अर्द्ध-न्यायिक कार्य है। सिविल सेवक नागरिकों और राज्य के मध्य किन्हीं प्रशासनिक विवादों को समाप्त करते हैं। न्यायाधीशों के रूप में सिविल सेवकों से युक्‍त प्रशासनिक न्यायाधिकरण की स्थापना की गई है।उदाहरण के लिए कर अपीलीय न्‍न्यायाघिकरण और रेलवे दर न्यायाधिकरण। ये सामान्य न्यायिक व्यवस्था से पृथक कार्य करते हैं।