सुशासन क्या है ? (What is good governance ?)

Posted on April 1st, 2020 | Create PDF File

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सुशासन (Good Governance)

 

वर्ष 1990 के पश्चात्‌ शासन (Governance) को समावेशी स्वरूप प्रदान करते हुए सुशासन (Good Governance) की अवधारणा विकसित हुई। सुशासन का सामान्य अर्थ है बेहतर तरीके से शासन। ऐसा शासन जिसमें गुणवत्ता हो और वह खुद में एक अच्छी मूल्य व्यवस्था को धारण करता हो। शासन प्रणाली तो सभी देशों में चल ही रही है, लेकिन वे अपनी प्रकृति में ठीक तरह से जनोन्मुखी या लोकतांत्रिक जीवन शैली से तादात्मय परक नहीं होती। इसी बिन्दु पर शासन से अलग होता है। सुशासन शासन से आगे की चीज है। इससे शासन के तरीके में और अधिक दक्षता का विकास होता है, जिससे उसकी वैधानिकता और साख में बढ़ोत्तरी होती है। इसके आधारभूत तत्वों में राजनीतिक उत्तरदायित्व, स्वतंत्रता की उपलब्धता, कानूनी बाध्यता, सूचना की उपलब्धता, पारदर्शिता, दक्षता, प्रभावकारिता आदि को रखा जाता है।

 

सुशासन शब्द का चलन 1990 के दशक में देखा गया। इस दौरान ही इस शब्द का तेजी से चलन बढ़ा। विकास की दिशा में प्रयत्न कर रहीं विश्व की कई संस्थाओं और संयुक्त राष्ट्र ने इस शब्द का प्रयोग किया। फिर बाद में अन्य देशों की सरकारों ने शासन की गुणवत्ता को सुधारने के लिए इसे अपनाया। भारतीय सन्दर्भ में देखें तो कौटिल्य रचित अर्थशास्त्र' में कहा गया है कि प्रजा की उन्नति में ही राजा की उन्नति है। राष्ट्रपिता महात्मा गांधी ने भी अच्छे शासन के रूप में "सुराज" की संकल्पना की है। इसके अलावा भारतीय परम्परा में 'रामराज' की कल्पना भी सुशासन को ही इंगित या व्यक्त करती है। सुशासन को कुशासन  (Bad Governance) के विपरीत सन्दर्भ में भी देखा जाता है। कुशासन को ऐसे समझा जा सकता है जहाँ-

 

* प्रशासनिक मशीनरी काम तो करती है और उसके परिणाम भी मिलते हैं, लेकिन इनमें लागत अपेक्षाकृत ज्यादा होती है।

* जिन परिणामों की आवश्यकता होती है, वे मिलते तो हैं लेकिन साथ में ऐसे परिणाम भी मिलने लगते हैं जो वास्तव में अवांछनीय होते हैं।

* कई बार पूरे लगन से प्रयास करने पर भी स्थिति में बदलाव परिलक्षित नहीं होता।

* योजना अपना पूरा प्रभाव नहीं छोड़ पाती है। यदि उसके कई लक्ष्य हैं तो कुछ के परिणाम तो मिलते हैं लेकिन बाकी बेअसर साबित होते हैं।

* कुशासन में अकसर यह भ्रम रहता है कि जिस मात्रा में संसाधनों का व्यय होगा उसी मात्रा में परिणाम हासिल होगा।

* इस प्रकार कुशासन के दोषों से निपटने के लिए सुशासन की संकल्पना सामने आई जिसके कुछ तत्वों पर अंतर्राष्ट्रीय संस्थाओं में भी सहमति बनी है। ये तत्व इस प्रकार हैं-

 

1.उत्तरदायित्व - यह सुशासन का सबसे महत्वपूर्ण तत्व है। जब तक उत्तरदायित्व को नहीं समझा जाएगा तब तक सुशासन हासिल नहीं हो सकता। यह तत्व लोकतंत्र में ही विकसित होता है। सहभागिता से ही सुशासन के विकसित होने की सम्भावनाएँ पल्‍लवित होती हैं। अगर लोकतांत्रिक संस्थाओं के प्रति उत्तरदायित्व नहीं है तो काम का निष्पादन ठीक से नहीं हो सकेगा।

 

 

2.पारदर्शिता - सुशासन का दूसरा महत्वपूर्ण तत्व कार्य निष्पादन में पारदर्शिता है। परम्परागत शासन व्यवस्था में प्रायः गोपनीयता का व्यवहार किया जाता है,लेकिन सुशासन में यह स्वीकार्य नहीं है। कार्य और उनके परिणामों से जुड़ी सूचना को मांग पर उपलब्ध कराया जाना चाहिए। देश में पारित सूचना का अधिकार अधिनियम इसी दिशा में उठाया गया कदम है। इससे पारदर्शिता बढ़ी है और शासन पर सही निर्णय लेने का दबाव बढ़ा है।

 

3.सहमागिता - नागरिकों की समान सहभागिता बढ़ाने पर बल दिया जाना चाहिए।नागरिकों के साथ किसी प्रकार का भेदभाव नहीं होना चाहिए। व्यवहार में देखने में आया है कि शासन में प्रायः लिंग, वर्ग, जाति आदि के आधार पर सुविधा देने में भेदभाव बरता जाता है, लेकिन सुशासन में इसके लिए कोई जगह नहीं होती है।

 

4. विश्वसनीयता - सुशासन में विश्वसनीयता पर पर्याप्त बल दिया जाता है। अपने वादों और नीतियों को पूरी तरह से अमली जामा पहनाना ही सुशासन लाने का तरीका है। शासन जो नीतियाँ बनाता है उन्हें सही होना चाहिए और जब वे नीतियाँ प्रायेग में लाई जाएं तो पूरी तरह से वचनबद्ध होकर लागू की जाएँ,तभी लोगों में शासन के प्रति विश्वसनीयता आती है।

 

5. विधि का शासन - सुशासन के लिए विधि का शासन और स्वतंत्र न्यायापालिका का होना जरूरी है। जब व्यक्ति अपनी समस्या को लेकर न्याय की शरण में जाए तो उसे त्वरित न्याय की प्राप्ति होनी चाहिए। एक शक्तिशाली न्यायपालिका ही लोकतंत्र की बुनियाद है जो लोगों की परेशानी को हल करने का एक वैकल्पिक तंत्र भी है।

 

6. इसके अलावा शासन की प्रक्रियाओं में संवेदनशील, दक्षता और मानवाधिकारों का पूरी तरह सम्मान भी सुशासन के तत्वों में गिना जाता है।