सूचना का अधिकार अधिनियम, 2005 (Right to Information Act, 2005)

Posted on April 7th, 2020 | Create PDF File

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सूचना का अधिकार अधिनियम, 2005

(Right to Information Act, 2005)

 

प्रशासनिक एवं प्रशासनिक कार्यों में पारदर्शिता लाने के उद्देश्य से भारत सरकार ने जून,2005 में सूचना का अधिकार अधिनियम पारित किया। लोकतांत्रिक प्रक्रिया में जनसहभागिता सुनिश्चित करने की दिशा में यह एक महत्वपूर्ण प्रयास है।

 

सूचना के अधिकार को संविधान की धारा 19 (1) के तहत एक मूलभूत अधिकार का दर्जा दिया गया है। धारा 19 (1) के तहत प्रत्येक नागरिक को बोलने और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता दी गई है और उसे यह जानने का अधिकार भी है कि सरकार कैसे कार्य करती है, इसकी क्‍या भूमिका है, इसके क्या कार्य हैं आदि। प्रत्येक नागरिक कर (Tax) का भुगतान करता है। अतः उसे यह जानने का पूरा अधिकार है कि उसके द्वारा कर के रूप में दी गई राशि का उपयोग कैसे किया जा रहा है।

 

सूचना का अधिकार अधिनियम प्रत्येक नागरिक को सरकार से प्रश्न पूछने का अधिकार देता है और इसमें टिप्पणियाँ, सारांश अथवा दस्तावेजों या अभिलेखों की प्रमाणित प्रतियों या सामग्री के
प्रमाणित नमूनों की जांच की जा सकती है।

 

आरटीआई अधिनियम पूरे भारत में लागू है। इसमें सरकार की अधिसूचना के तहत आने वाले सभी निकाय शामिल हैं तथा ऐसे गैर सरकारी संगठन भी शामिल हैं, जिनका स्वामित्व, नियंत्रण अथवा आंशिक निधिकरण सरकार द्वारा किया गया है।

 

सूचना (Information)-सूचना के अधिकार के अन्तर्गत सूचना से तात्पर्य ऐसी सामग्री से है जिसके अन्तर्गत किसी इलेक्ट्रॉनिक रूप में धारित अभिलेख, दस्तावेज, ज्ञापन, ई-मेल, मत, सलाह, प्रेस विज्ञप्ति, परिपत्र, आदेश, लॉगबुक, संविदा, रिपोर्ट, कागजपत्र, नमूने, मॉडल और आंकड़े सम्बन्धी सामग्री सम्मिलित हों। साथ ही, किसी प्राइवेट निकाय से सम्बन्धित ऐसी सूचना भी सम्मिलित है, जिस तक विधि के अधीन किसी लोक प्राधिकारी की पहुँच हो सकती है।

 

अधिकार (Right): सूचना के अधिकार के अंतर्गत निम्नलिखित अधिकार सम्मिलित हैं-

 

* दस्तावेजों एवं अभिलेखों का निरीक्षण।

* दस्तावेजों या अभिलेखों की प्रमाणित प्रतिलिपि लेना।

* सामग्री के प्रमाणित नमूने लेना।

* फ्लॉपी डिस्क, टेप, वीडियो कैसेट के रूप में या किसी अन्य इलेक्ट्रॉनिक रीति में प्रिंट आउट लेना।

 

सूचना के अधिकार अधिनियम के अंतर्गत निम्नांकित सूचना को प्रकट नहीं करने की छूट दी गई है-

 

* सूचना जिसके प्रकटन से भारत की प्रभुता और अखंडता, राज्य की सुरक्षा, रणनीति,वैज्ञानिक या आर्थिक हित, विदेश से सम्बन्ध पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता हो या किसी अपराध को प्रोत्साहन मिलता हो।

* सूचना जिसके प्रकटन से किसी न्यायालय की अवमानना हो।

* सूचना जिसके प्रकटन से संसद या किसी राज्य के विधानमंडल के विशेषाधिकार भंग हो सकते हों।

* सूचना जिसमें वाणिज्यिक विश्वास, व्यापार गोपनीयता या बौद्धिक सम्पदा सम्मिलित है, के प्रकटन से किसी तीसरे पक्षकार की प्रतियोगी स्थिति को नुकसान होता हो।

* किसी विदेशी सरकार से विश्वास में प्राप्त सूचना।

* सूचना जिसके प्रकटन से किसी व्यक्ति के जीवन या शारीरिक सुरक्षा के लिए खतरा हो।

* सूचना जिसके प्रकटन से अन्वेषण या अपराधियों को गिरफ्तार करने या अभियोजन की क्रिया में अड़चन आए।

* मंत्रिमंडल के कागज-पत्र जिसमें मंत्रीपरिषद के सचिवों और अन्य अधिकारियों के विचार-विमर्श के अभिलेख सम्मिलित हैं।

* इसके अतिरिक्त व्यक्तिगत सूचना जिसके प्रकटन का किसी लोक क्रियाकलाप या हित से सम्बन्ध नहीं है।

 

सूचना प्राप्ति के लिए अनुरोध (Request for Obtaining Information)- 


सूचना के अधिकार अधिनियम के अधीन सभी नागरिकों को सूचना का अधिकार होगा।

निम्नांकित उपायों द्वारा कोई व्यक्ति सूचना प्रापत हेतु अनुरोध कर सकता है-

   लिखित रूप में या इलेक्ट्रॉनिक युक्ति के माध्यम से अंग्रेजी या हिन्दी में या क्षेत्र की राजभाषा में जिसमें आवेदन किया जा रहा हो: ऐसी फीस के साथ जो केन्द्रीय या राज्य लोक सूचना अधिकारी द्वारा विहित किया जाए।

 

अनुरोधों का निपटारा (Disposal of Request)-

 

किसी भी दशा में सूचना की प्राप्ति फीस संदाय के तीस दिन के भीतर उपलब्ध कराई जाएगी। परन्तु जहाँ मांगी गई सूचना का सम्बन्ध किसी व्यक्ति के जीवन या स्वतंत्रता से है, वहाँ वह अनुरोध प्राप्त होने के अड़तालीस घंटे के भीतर उपलब्ध कराई जाएगी। गरीबी रेखा से नीचे के व्यक्तियों के लिए कोई फीस प्रभारित नहीं की जाएगी। जहाँ कोई लोक प्राधिकारी समय सीमा का अनुपालन करने में असफल रहता है, वहाँ सूचना के लिए अनुरोध करने वाले व्यक्ति को प्रभार के बिना सूचना उपलब्ध कराई जाएगी।

 

सूचना के अधिकार कानून का उद्देश्य (Objectives of RTI Act)-

 

* लोक प्राधिकारी के क्रियाकलापों में पारदर्शिता लाना और उत्तरदायितव बढ़ाना:

* लोक प्राधिकारियों के नियंत्रण या उसके अधीन उपलब्ध सूचना तक आम लोगों की पहुंच सुनिश्चित करना;

* नागरिकों के सूचना के अधिकार की व्यावहारिक पद्धति स्थापित करना;

* एक केन्द्रीय सूचना आयोग तथा राज्य सूचना आयोग का गठन; और

* उनसे सम्बन्धित या उनसे जुड़े विषयों का उपबंध करना।

 

स्वरूप : तीन स्तरीय-


* केन्द्रीय या राज्य सूचना आयोग।

* प्रथम अपीलीय अधिकारी।

* लोक सूचना अधिकारी।