पूंजीवादी व समाजवादी व्यवस्था में लोक सेवाओं की भूमिका^ (Role of public services in capitalist and socialist system)
Posted on April 1st, 2020
पूंजीवादी व्यवस्था में लोक सेवाओं की भूमिका
पूंजीवादी व्यवस्था वाले देशों में निजी क्षेत्रों की भूमिका अधिक महत्वपूर्ण होती है तथा प्रति व्यक्ति आय अधिक होती है। लोगों की क्रयशक्ति अधिक होने के कारण लोग अपनी आवश्यकता की चीजें आसानी से प्राप्त कर लेते हैं, साथ ही निजी क्षेत्रों की सेवाएँ उपलब्ध कराने में भूमिका अधिक होती है इसलिए शासन तथा प्रशासन के स्तर पर लोकसेवा का उत्तरदायित्व काफी सीमित हो जाता है। वस्तुतः पूंजीवादी शासन व्यवस्था बाजार आधारित होती है जो इस मूल सिद्धांत पर आधारित होती है कि सेवाओं की उपलब्धता लोगों की क्रयशक्ति पर निर्भर करती है।
समाजवादी व्यवस्था में लोक सेवाओं की भूमिका
समाजवादी व्यवस्था की विचारधारा सामाजिक न्याय से प्रेरित है। यह बाह्य प्रभुत्त की सभी अवधारणाओं को निरस्त करती है तथा मानव कल्याण की मूल भावना को स्वीकार करती है। यह पूंजीवादी व्यवस्था की उत्पादन प्रणाली की आलोचक रही है। इस शासन व्यवस्था में लोक कल्याण अधिकतम लोगों के अधिकतम सुख पर आधारित होता है। इस प्रकार की शासन व्यवस्था में सरकार की भूमिका अधिक होती है। इस कारण सिविल सेवा की भूमिका भी बढ़ी हुई होती है। चूँकि दोनों ही प्रकार की व्यवस्था (पूंजीवीदी और समाजवादी) की वैचारिक आधारभूमि अलग-अलग है इसलिए इन देशों की कार्य करने वाली सिविल सेवा की कार्य पद्धतियाँ भी भिन्न होती हैं।
पूंजीवादी व समाजवादी व्यवस्था में लोक सेवाओं की भूमिका (Role of public services in capitalist and socialist system)
पूंजीवादी व्यवस्था वाले देशों में निजी क्षेत्रों की भूमिका अधिक महत्वपूर्ण होती है तथा प्रति व्यक्ति आय अधिक होती है। लोगों की क्रयशक्ति अधिक होने के कारण लोग अपनी आवश्यकता की चीजें आसानी से प्राप्त कर लेते हैं, साथ ही निजी क्षेत्रों की सेवाएँ उपलब्ध कराने में भूमिका अधिक होती है इसलिए शासन तथा प्रशासन के स्तर पर लोकसेवा का उत्तरदायित्व काफी सीमित हो जाता है। वस्तुतः पूंजीवादी शासन व्यवस्था बाजार आधारित होती है जो इस मूल सिद्धांत पर आधारित होती है कि सेवाओं की उपलब्धता लोगों की क्रयशक्ति पर निर्भर करती है।
समाजवादी व्यवस्था में लोक सेवाओं की भूमिका
समाजवादी व्यवस्था की विचारधारा सामाजिक न्याय से प्रेरित है। यह बाह्य प्रभुत्त की सभी अवधारणाओं को निरस्त करती है तथा मानव कल्याण की मूल भावना को स्वीकार करती है। यह पूंजीवादी व्यवस्था की उत्पादन प्रणाली की आलोचक रही है। इस शासन व्यवस्था में लोक कल्याण अधिकतम लोगों के अधिकतम सुख पर आधारित होता है। इस प्रकार की शासन व्यवस्था में सरकार की भूमिका अधिक होती है। इस कारण सिविल सेवा की भूमिका भी बढ़ी हुई होती है। चूँकि दोनों ही प्रकार की व्यवस्था (पूंजीवीदी और समाजवादी) की वैचारिक आधारभूमि अलग-अलग है इसलिए इन देशों की कार्य करने वाली सिविल सेवा की कार्य पद्धतियाँ भी भिन्न होती हैं।