सिविल सेवाओं की भूमिका को प्रभावी बनाने के उपाय भाग-2 - प्रशासनिक सुधार आयोग की सिफारिशें (Measures to make the role of civil services effective Part-2 -Recommendations of the Administrative Reforms Commission)
Posted on March 21st, 2020 | Create PDF File
प्रशासनिक सुधार आयोग की 40वीं रिपोर्ट के अनुसार लोकतंत्र की शक्ति जनता में निहित होती है तथा यह सिद्धान्त अथवा आदर्श ही लोकतांत्रिक उत्तरदायित्व (Democratic Accountibility) की धारणा की नींव रखता है। सिविल सेवा व सेवक अपने ज्ञान, योग्यता, अनुभव और लोक मामलों की समझ के आधार पर निर्वाचित जनप्रतिनिधियों (सांसदों, विधायकों) को नीतियों के निर्माण व क्रियान्वयन में सहायता प्रदान करते हैं। संसदीय लोकतंत्र की एक अनिवार्य सी विशेषता बन गई है कि उसमें एक स्थाई सिविल सर्विस राजनीतिक कार्यपालिका की सहायता के लिए कार्यशल रहती है।
प्रशासनिक सुधार आयोग ने अपनी 10वीं रिपोर्ट के अध्याय 15 में स्पष्ट किया है कि अध्यक्षीय शासन में सिविल-सेवा लूट पद्धति (Spoils Systems) के अधीन रहती है, जिसमें सरकार अपनी पसन्द के आधार पर मनमाने तरीके से पदों का वितरण पक्षपातपूर्ण ढंग से करती है। चूँकि भारत में संसदीय लोकतंत्र की प्रधानता है, इसलिए यहाँ एक तटस्थ व स्थायी सिविल सेवा के लाभों को प्रशासनिक सुधार आयोग ने निम्नांकित बिन्दुओं में स्पष्ट किया है :
* लूट प्रणाली (Spoils System) आश्रय व संरक्षकत्व (Patronage), भाई-भतीजावाद व भ्रष्टाचार की तरफ उन्मुख होती है। एक निष्पक्ष अभिकरण के जरिए एक विश्वसनीय चयन प्रक्रिया इन समस्याओं के समाधान में सहायक होती है।
* लोकनीत आज एक जटिल आयाम धारण कर चुकी है, जिसके चलते लोक मामलों में गहराई के साथ विशेषज्ञता व ज्ञान की जरूरत है। एक स्थायी सिविल सेवा प्रभावी नीति निर्माण के लिए ऐसी सभी आवश्यक दशाओं की पूर्ति करने में सक्षम होती है।
* प्रशासनिक सुधार आयोग के अनुसार, एक स्थायी सिविल सेवा लोक प्रशासन में एकरूपता (Uniformity) को सुनिश्चित करने में सहायक है। यह सांस्कृतिक रूप से विविधतापूर्ण देश में एकीकरण की शक्ति के रूप में कार्य करने में सक्षम है।
* एक स्थायी सिविल सेवा को अपनी कार्यप्रणाली को नैतिकता व सदाचरण पर आधारित करना अपेक्षित है।
प्रशासनिक सुधार आयोग का कहना है कि मंत्रियों व सिविल सेवकों के मध्य स्वस्थ कार्यात्मक सम्बन्ध सुशासन के लिए अत्यंत आवश्यक है। सिविल सेवकों व मंत्रियों के मध्य जिम्मेदारी व जवाबदेहिता का सुस्पष्ट होना आवश्यक है। विचारणीय है कि राजनीतिक पृष्ठभूमि वाले मंत्री संसद के माध्यम से जनता के प्रति उत्तरदायी होते हैं, अत: यह आवश्यक हो जाता है कि सिविल सेवक मंत्रियों के प्रति जवाबदेह हों। लेकिन एक निष्पक्ष व तटस्थ सिविल सेवा न केवल सरकार के प्रति बल्कि देश के संविधान के प्रति भी उत्तरदायी होती है, जिसके प्रति निष्ठा की शपथ उनके द्वारा ली गई होती है। निर्वाचित सरकार की नीतियों का क्रियान्वयन सिविल सेवा की मुख्य भूमिका है। प्रशासनिक सुधार आयोग का कहना है कि राजनीतिक कार्यपालिका व स्थायी नौकरशाही के मध्य दायित्वों का सुस्पष्ट निर्धारण होना जनता के कल्याण व सुशासन की दृष्टि से अत्यंत आवश्यक है।
भारतीय लोकतंत्र में सिविल सेवा की उपयुक्त भूमिका को सुनिश्चित करने के लिए प्रशासनिक सुधार आयोग ने निम्नांकित सिफारिशें 40वीं रिपोर्ट में की हैं:
* सिविल सेवाओं की राजनीतिक तटस्थता (Political Neutrality) और निष्पक्षता (Impartiality) का संरक्षण किए जाने की आवश्यकता है। इसका दायित्व समान रूप से राजनीतिक कार्यपालिका और सिविल सेवाओं पर होना चाहिए। प्रशासनिक सुधार आयोग ने इस सन्दर्भ में मंत्रियों व सिविल सेवकों के लिए अलग-अलग आचार संहिता (Code of Ethics) के होने की सिफारिश की।
*आयोग ने सिफारिश की कि भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम, 1988 के अन्तर्गत किसी का गलत तरीके से पक्ष लेने अथवा हानि पहुँचाने के लिए प्राधिकार का दुरुपयोग और न्याय का अवरोध (Obstruction of Justice) एक अपराध के रूप में वर्गीकृत किया जाए।
* सरकार को सिविल सेवा की नियुक्ति के सन्दर्भ में कुछ ऐसे नियमों, मानकों का पालन करना आवश्यक है ताकि पक्षपात, भाई-भतीजावाद व भ्रष्टाचार को बढ़ावा न मिल सके। ऐसे कुछ प्रमुख मानक आयोग के अनुसार निम्नवत् हैं:
(क) सभी सरकारी नौकरियों मेम॑ नियुक्ति अथवा भर्ती की एक सुपरिमभाषित प्रक्रिया अथवा क्रियाविधि होनी चाहिए।
(ख)सभी पदों के चयन के लिए विस्तृत प्रचार और मुक्त प्रतिस्पर्द्धा ।
(ग) चयन प्रमुखता मुख्य परीक्षा के आधार पर होना चाहिए और साक्षात्कार को चयन प्रक्रिया में न्यूनतम भारांश मिलना चाहिए ।