नीतिशास्त्र का विषय क्षेत्र - ऐच्छिक कार्य एवं आदतें (Subject area of ​​ethics -voluntary functions and the habits)

Posted on March 15th, 2020 | Create PDF File

हम प्रायः मनुष्य के कार्यों का मूल्यांकन करते हुए कहते हैं कि उसने यह अच्छा या बुरा कार्य किया। इस मूल्यांकन में एक पूर्वापेक्षा निहित है, हम यहाँ स्वीकार किए रहते हैं कि मनुष्य विशेष ने जो भी कार्य किया वह उसे करने के लिए स्वतंत्र था। अर्थात्‌ उसका कार्य एक स्वतंत्र इच्छा का निर्णय है। वह किसी भी बाहय या आन्तरिक दबाव से मुक्त रहते हुए अपने कार्य का चयन करता है, अर्थात्‌ स्वतंत्र इच्छा नैतिकता की एक अनिवार्य पूर्व मान्यता है। इससे यह भी स्पष्ट होता है कि नीतिशास्त्र मनुष्यों के ऐच्छिक कार्यों का अध्ययन करता है। यह किसी भी ऐसे कार्य का अध्यन नहीं करता जो बाहय या आन्तरिक दबाव में किया गया हो।

 

क्‍या नीतिशास्त्र के विषय क्षेत्र में मनुष्य की आदतों का भी मूल्यांकन किया जाना चाहिए? हां। नीतिशास्त्र मनुष्य की आदतों के लिए भी उसे उत्तरदाई मानता है।क्योंकि किसी भी आदत के निर्मित होने से पूर्व मनुष्य उस कार्य का बार-बार निर्णय एवं पुनरावृत्ति करता है, इसलिए आदत भी मनुष्य के ऐच्छिक कार्य का हिस्सा है।

 

मनुष्य के ऐच्छिक कार्यों एवं आदतों से ही उसके चरित्र का निर्माण होता है।नीतिशास्त्र मनुष्य के चरित्र का अध्यन है। चरित्र मनुष्य की उस स्थाई मनोवृत्ति कानाम है जो बार-बार उसके ऐच्छिक निर्णयों से निर्धारित होती है तथा जो उसके बाहय क्रियाकलापों में अभिव्यक्त होती है। अर्थात्‌ यह स्पष्ट है कि मनुष्य का चरित्र उसके सतत ऐच्छिक निर्णयों का ही परिणाम है।

 

किसी भी ऐच्छिक निर्णय में दो अनिवार्य तत्व विद्यमान रहते हैं-एक उस निर्णय के मूल में निहित भावना तथा दूसरा उसका लक्ष्य। प्रायः किसी भी कार्य के दो पक्ष होते हैं-कारण एवं लक्ष्य। यहाँ किसी भी कार्य के अनेक कारण हो सकते हैं, लेकिन मूल प्रश्न उन उपस्थित कारणों में से चयन का है जिसका निर्धारण मनुष्य अपनी अभिवृत्ति से करता है। कारण की ही भांति किसी कार्य के लक्ष्य अनेक हो सकते हैं लेकिन उन उपस्थित लक्ष्यों में से किसी लक्ष्य विशेष का चयन मनुष्य की अभिवृत्ति से ही निर्धारित होता है। अर्थात्‌ अभिवृत्ति ही वह मूल तत्व है, जो मनुष्य के चरित्र का निर्माण करती है। मनुष्य की अभिवृत्ति किसी भी एक कार्य के चयन में भिन्‍न-भिन्‍न हो सकती है। मनुष्य की अभिवृत्ति का निर्माण अनेक तत्वों पर निर्भर करता है। उसकी शिक्षा-दीक्षा, समाजीकरण, आनुवंशिकी आदि अनेक तत्वों पर अभिवृत्ति निर्भर करती है।