अंतर्राष्ट्रीय समसामयिकी 2 (3-June-2021)
रवांडा नरसंहार
(Rwandan Genocide)

Posted on June 3rd, 2021 | Create PDF File

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हाल ही में रवांडा नरसंहार (Rwandan Genocide) को लेकर फ्रांसीसी जांच पैनल की एक रिपोर्ट ने तत्कालीन फ्रांसीसी सेना की भूमिका पर सवाल उठाए हैं।

 

इस रिपोर्ट के सार्वजनिक होने के बाद फ्रांस के राष्ट्रपति इमैनुएल मैक्रॉन ने ‘रवांडा नरसंहार’ में अपने देश की भूमिका को स्वीकार करते हुए रवांडा से क्षमा मांगी है ।

 

रवांडा की कुल आबादी में हूतू समुदाय का हिस्सा 85 प्रतिशत है लेकिन लंबे समय से तुत्सी अल्पसंख्यकों का देश पर दबदबा रहा था। कम संख्या में होने के बावजूद तुत्सी राजवंश ने लंबे समय तक रवांडा पर शासन किया था।

 

वर्ष 1959 में हूतू विद्रोहियों ने तुत्सी राजतंत्र को खत्म कर देश में तख्तापलट किया। जिसके बाद हूतू समुदाय के अत्याचारों से बचने के लिए तुत्सी लोग भागकर युगांडा चले गए।

 

अपने देश पर फिर से कब्जा करने को लेकर तुत्सी लोगों ने रवांडा पैट्रिएक फ्रंट (आरपीएफ) नाम के एक विद्रोही संगठन की स्थापना की, जिसने 1990 में रवांडा में वापसी कर कत्लेआम शुरू कर दिया।

 

1993 में सरकार के साथ तुत्सी विद्रोहियों ने समझौता कर लिया और देश में शांति की स्थापना हुई।

 

रवांडा नरसंहार की शुरुआत :

6 अप्रैल 1994 की रात को अफ्रीकी देश रवांडा के राष्ट्रपति जुवेनाल हाबयारीमाना और पड़ोसी देश बुरंडी के राष्ट्रपति सिपरियन न्तारियामी को लेकर जा रहे एक विमान को गिरा दिया गया, जिससे विमान पर सवार सभी लोग मारे गए। चूंकि दोनों राष्ट्रपति हुतु(Hutus ) कबीले से थे। अतः हुतु चरमपंथियों ने इसके लिए रवांडा पैट्रिओटिक फ्रंट (Rwandan Patriotic Front-RPF) को जिम्मेदार ठहराया जो निर्वासन में रह रहे विद्रोही तुत्सी (Tutsi)लोगों का गुट था।

 

इसके बाद तुत्सियों का कत्लेआम शुरू हो गया। आरपीएफ का कहना है कि विमान को हुतु लोगों ने ही गिराया ताकि अपनी हिंसा के लिए आधार तैयार कर सकें।

 

हालांकि किसने ये जहाज गिराया था, इसका फ़ैसला अब तक नहीं हो पाया है। कुछ लोग इसके लिए हूतू चरमपंथियों को ज़िम्मेदार मानते हैं जबकि कुछ लोग रवांडा पैट्रिएक फ्रंट (आरपीएफ़) को जिम्मेदार मानते हैं।

 

चूंकि ये दोनों नेता हूतू जनजाति से आते थे और इसलिए इनकी हत्या के लिए हूतू चरमपंथियों ने आरपीएफ़ को ज़िम्मेदार ठहराया। इसके तुरंत बाद हत्याओं का दौर शुरू हो गया।

 

इस नरसंहार में हूतू जनजाति से जुड़े चरमपंथियों ने अल्पसंख्यक तुत्सी समुदाय के लोगों और अपने राजनीतिक विरोधियों को निशाना बनाया। 7 अप्रैल से जुलाई 1994 के बीच 100 दिनों की अवधि के दौरान लगभग 800,000 से अधिक रवांडा-वासी मारे गए थे।

 

इस नरसंहार का नेतृत्व रवांडा की सेना और इंटरनाहामवे नाम की एक हुतु मिलिशिया कर रही थी।

 

फ्रांस की भूमिका :

 

दरअसल, रवांडा लंबे समय तक फ्रांस का उपनिवेश रहा है। इसलिए आज भी इस देश में फ्रांसीसी प्रभाव बहुत ज्यादा देखने को मिलता है। उस समय भी हुतू सरकार को फ्रांस का समर्थन प्राप्त था। राष्ट्रपति की मौत के बाद हुतू सरकार के आदेश पर सेना ने अपने समुदाय के साथ मिलकर तुत्सी समुदाय के लोगों को मारना शुरू किया।

 

विश्लेषकों के मुताबिक उस समय फ्रांस ने हुतू सरकार के समर्थन में अपनी सेना भेजी, लेकिन उसने नरसंहार को रोकने के लिए कुछ भी नहीं किया।

 

जनसंहार के समय रवांडा में तथाकथित पीसकीपिंग के लिए मौजूद फ्रांसीसी सैनिक न केवल लोगों को क़त्ल होते देखते रहे, बल्कि उनके ऊपर ख़ुद भी हत्याओं में शामिल होने के आरोप हैं।

 

1994 में इस नरसंहार को देखते हुए पड़ोसी देश युगांडा ने अपनी सेना को रवांडा में भेजा।

 

जिसके बाद उसके सैनिकों ने राजधानी किगाली पर कब्जा कर इस नरसंहार को खत्म किया।

 

रवांडा की भौगोलिक अवस्थिति

रवांडा मध्य अफ्रीका में अवस्थिति एक स्थल-रुद्ध(landlocked) देश है।

 

रवांडा की राजधानी ‘किगाली’ है।

 

यह अफ़्रीका महाद्वीप की मुख्यभूमि पर स्थित सबसे छोटे देशों में से एक है।