विज्ञान एवं प्रोद्योगिकी समसामयिकी 1 (3-June-2021)
‘चीन के ‘कृत्रिम सूर्य‘ प्रायोगिक संलयन रिएक्टर द्वारा एक नया विश्व रिकॉर्ड
(A new world record set by China's 'artificial sun' experimental fusion reactor)

Posted on June 3rd, 2021 | Create PDF File

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चीन के ‘प्रायोगिक उन्नत सुपरकंडक्टिंग टोकामक’ (Experimental Advanced Superconducting Tokamak- EAST) द्वारा एक नवीनतम प्रयोग के दौरान एक नया रिकॉर्ड बनाया है, जिसमे उसने 101 सेकंड की अवधि तक 216 मिलियन फ़ारेनहाइट (120 मिलियन डिग्री सेल्सियस) का प्लाज्मा तापमान पैदा करने में सफलता हासिल की।

इस ‘प्रायोगिक उन्नत सुपरकंडक्टिंग टोकामक’ (EAST) को ‘कृत्रिम सूर्य’ (Artificial Sun) भी कहा जाता है।

 

महत्व:

 

ऐसा माना जाता है, कि सूर्य के केंद्र का तापमान 15 मिलियन डिग्री सेल्सियस है, और इस उपलब्धि का मतलब है, कि EAST द्वारा पैदा किया गया तापमान ‘सूर्य के तापमान से लगभग सात गुना अधिक’ है।

 

यह, न्यूनतम अपशिष्ट उत्पादों सहित स्वच्छ और असीमित ऊर्जा उत्पादित करने हेतु चीन द्वारा किए जा रहे प्रयासों की दिशा एक महत्वपूर्ण कदम है।

 

‘EAST’ :

‘प्रायोगिक उन्नत सुपरकंडक्टिंग टोकामक’ (EAST) मिशन में ‘सूर्य की ऊर्जा उत्पादन प्रक्रिया’ की नकल की जा रही है।

 

‘प्रायोगिक उन्नत सुपरकंडक्टिंग टोकामक’ रिएक्टर, एक ‘उन्नत परमाणु संलयन प्रायोगिक अनुसंधान उपकरण’ (Advanced Nuclear Fusion Experimental Research Device) है और चीन के हेफ़ेई (Hefei) में स्थित है।

 

यह वर्तमान में देश भर में कार्यरत तीन प्रमुख स्वदेशी टोकामक में से एक है।

 

EAST परियोजना ‘अंतर्राष्ट्रीय ताप-नाभिकीय प्रायोगिक रिएक्टर’ (International Thermonuclear Experimental Reactor- ITER) कार्यक्रम का हिस्सा है। इस आईटीईआर सुविधा का परिचालन वर्ष 2035 आरंभ होगा, इसके बाद यह विश्व का सबसे बड़ा ‘परमाणु संलयन रिएक्टर’ बन जाएगी।

 

आईटीईआर परियोजना में भारत, दक्षिण कोरिया, जापान, रूस और संयुक्त राज्य अमेरिका सहित कई देशों द्वारा योगदान किया जा रहा है।

 

‘कृत्रिम सूर्य‘ EAST :

यह ‘प्रायोगिक उन्नत सुपरकंडक्टिंग टोकामक’ अर्थात EAST, सूर्य एवं तारों द्वारा में हो रही ‘परमाणु संलयन प्रक्रिया’ (Nuclear Fusion Process) का अनुकरण करता है।

 

परमाणु संलयन हेतु, हाइड्रोजन परमाणुओं पर अत्यधिक ताप और दाब प्रयुक्त किया जाता है, ताकि वे पिघलकर परस्पर संलयित हो जाएं।

 

हाइड्रोजन में पाए जाने वाले ‘ड्यूटेरियम और ट्रिटियम’ नाभिक, परस्पर संलयित होकर भारी हीलियम नाभिकों का निर्माण करते हैं, और इस प्रक्रिया में न्यूट्रॉन अणुओं सहित भारी मात्रा में ऊर्जा निर्मुक्त होती हैं।

 

इसमें, ईंधन को 150 मिलियन डिग्री सेल्सियस से अधिक के तापमान तक गर्म किया जाता है, जिससे ‘अपरमाणविक अणुओं’ (Subatomic Particles) का एक गर्म प्लाज्मा “सूप” निर्मित होता है।

 

एक शक्तिशाली चुंबकीय क्षेत्र की मदद से, प्लाज्मा को रिएक्टर की दीवारों से दूर रखा जाता है, क्योंकि रिएक्टर की सतह के संपर्क में आने से ‘प्लाज्मा’ के ठंडा होने तथा बड़ी मात्रा में ऊर्जा उत्पन्न करने की क्षमता खोने की आशंका होती है।

 

संलयन अभिक्रिया होने के लिए प्लाज्मा को लंबी अवधि तक परिरुद्ध किया जाता है।

 

संलयन प्रक्रिया, विखंडन प्रक्रिया से बेहतर क्यों :

 

हालांकि, किसी नाभिक का विखंडन (fission) करना एक आसान प्रक्रिया होती है, किंतु इसमें काफी अधिक मात्रा में परमाणु अपशिष्ट उत्सर्जित होते हैं।

 

विखंडन प्रक्रिया के विपरीत, संलयन (Fusion) प्रक्रिया में ग्रीनहाउस गैसों का उत्सर्जन नहीं होता है और इसमें दुर्घटनाओं का जोखिम होता है तथा इसे एक सुरक्षित प्रक्रिया माना जाता है।

 

संलयन प्रक्रिया पर एक बार नियंत्रण हासिल करने के बाद, परमाणु संलयन से बहुत कम लागत पर संभवतः असीमित स्वच्छ ऊर्जा हासिल की सकती है।

 

 

उच्च प्लाज्मा तापमान हासिल करने वाला चीन अकेला देश नहीं है। वर्ष 2020 में, दक्षिण कोरिया के KSTAR रिएक्टर ने 20 सेकंड तक 100 मिलियन डिग्री सेल्सियस से अधिक प्लाज्मा तापमान हासिल करते रखते हुए एक नया रिकॉर्ड बनाया था।