महात्मा गांधी एवं जवाहर लाल नेहरू के मध्य मतभेद (Differences between Mahatma Gandhi and Jawaharlal Nehru)
Posted on March 18th, 2020
गांधी एवं नेहरू के मध्य मुख्य मतभेद धार्मिक विषय पर था। गांधी अध्यात्मवादी जबकि नेहरू भौतिकवादी थे। गांधी धर्म को नैतिकता के रूप में जबकि नेहरू धर्म को संप्रदाय के रूप में देखते थे। गांधी की धर्म सम्बन्धी अवधारणा आदर्शवादी एवं अध्यात्मवादी थी जो वस्तुतः भारत की तत्कालीन परिस्थिति में अव्यवहारिक थी। भारत और पाकिस्तान का बंटवारा धर्म पर ही आधारित था। इसलिए नेहरू ने धर्मनिरपेक्षता का मार्ग अपनाया। नेहरू ने धर्मनिरपेक्षता को परिभाषित करते हुए कहा कि धर्मनिरपेक्षता सभी धर्मों के प्रति तटस्थता है। अर्थात् धर्म एक वैयक्तिक विषय है। प्रत्येक व्यक्ति को अपने धर्म का पालन, अपने धर्म के पूजागृह बनाने तथा अपने धर्म के समुदाय को बनाने का अधिकार है और राज्य को इस सन्दर्भ में हस्तक्षेप करने का कोई अधिकार नहीं है। साथ ही साथ नेहरू ने गांधी के 'सर्वधर्म समभाव को भी धम॑निरपेक्षता के अंतर्गत सम्मिलित कर लिया, जिसका अभिप्राय है कि राज्य की दृष्टि में सभी धर्म समान है। इसके संदर्भ में राज्य को किसी भी भेदभाव का अधिकार नहीं है।
गांधी एवं नेहरू के मध्य दूसरा आंशिक मतभेद बड़े उद्योग एवं व्यापक उत्पादन पर था। गांधी इसके विरोधी थे। लेकिन नेहरू को तत्कालीन भारत की समस्याओं का संज्ञान था। उन्हें अनेक समस्याओं का सामना करना पड़ा। भारत जैसी विशाल देश की जनसंख्या के लिए बुनियादी आवश्यकताएं रोटी, कपड़ा और मकान बिना बड़े उद्योग और व्यापक उत्पादन के संभव नहीं थां नेहरू तत्कालीन परिस्थिति को भली-भांति समझते थे। उनका दृष्टिकोण वैज्ञानिक एवं यथार्थवादी था। गांधी की नीतियां शिथिल एवं दूरगामी थीं। इसलिए नेहरू ने भारत निर्माण में आधारभूत संरचना को ध्यान में रखते हुए बड़े उद्योगों एवं व्यापक उत्पादन की व्यवस्थाएं की। लेकिन उन्होंने गांधी के सुझाव को पूर्णतः अस्वीकार नहीं किया। उन्होंने लघु उद्योगों की नीतियों को भी स्वीकार लिया। यद्यपि यह ध्यान देने योग्य है यदि नेहरू लघु उद्योगों के विकास पर भी उतना ही बल दिया होता तो भारत का विकास और तीव्र गति से हुआ होता तथा आर्थिक विषमता जैसी समस्याएं भी उत्पन्न नहीं होती जो वर्तमान भारत की गंभीर समस्या बनी हुई हैं।
महात्मा गांधी एवं जवाहर लाल नेहरू के मध्य मतभेद (Differences between Mahatma Gandhi and Jawaharlal Nehru)
गांधी एवं नेहरू के मध्य मुख्य मतभेद धार्मिक विषय पर था। गांधी अध्यात्मवादी जबकि नेहरू भौतिकवादी थे। गांधी धर्म को नैतिकता के रूप में जबकि नेहरू धर्म को संप्रदाय के रूप में देखते थे। गांधी की धर्म सम्बन्धी अवधारणा आदर्शवादी एवं अध्यात्मवादी थी जो वस्तुतः भारत की तत्कालीन परिस्थिति में अव्यवहारिक थी। भारत और पाकिस्तान का बंटवारा धर्म पर ही आधारित था। इसलिए नेहरू ने धर्मनिरपेक्षता का मार्ग अपनाया। नेहरू ने धर्मनिरपेक्षता को परिभाषित करते हुए कहा कि धर्मनिरपेक्षता सभी धर्मों के प्रति तटस्थता है। अर्थात् धर्म एक वैयक्तिक विषय है। प्रत्येक व्यक्ति को अपने धर्म का पालन, अपने धर्म के पूजागृह बनाने तथा अपने धर्म के समुदाय को बनाने का अधिकार है और राज्य को इस सन्दर्भ में हस्तक्षेप करने का कोई अधिकार नहीं है। साथ ही साथ नेहरू ने गांधी के 'सर्वधर्म समभाव को भी धम॑निरपेक्षता के अंतर्गत सम्मिलित कर लिया, जिसका अभिप्राय है कि राज्य की दृष्टि में सभी धर्म समान है। इसके संदर्भ में राज्य को किसी भी भेदभाव का अधिकार नहीं है।
गांधी एवं नेहरू के मध्य दूसरा आंशिक मतभेद बड़े उद्योग एवं व्यापक उत्पादन पर था। गांधी इसके विरोधी थे। लेकिन नेहरू को तत्कालीन भारत की समस्याओं का संज्ञान था। उन्हें अनेक समस्याओं का सामना करना पड़ा। भारत जैसी विशाल देश की जनसंख्या के लिए बुनियादी आवश्यकताएं रोटी, कपड़ा और मकान बिना बड़े उद्योग और व्यापक उत्पादन के संभव नहीं थां नेहरू तत्कालीन परिस्थिति को भली-भांति समझते थे। उनका दृष्टिकोण वैज्ञानिक एवं यथार्थवादी था। गांधी की नीतियां शिथिल एवं दूरगामी थीं। इसलिए नेहरू ने भारत निर्माण में आधारभूत संरचना को ध्यान में रखते हुए बड़े उद्योगों एवं व्यापक उत्पादन की व्यवस्थाएं की। लेकिन उन्होंने गांधी के सुझाव को पूर्णतः अस्वीकार नहीं किया। उन्होंने लघु उद्योगों की नीतियों को भी स्वीकार लिया। यद्यपि यह ध्यान देने योग्य है यदि नेहरू लघु उद्योगों के विकास पर भी उतना ही बल दिया होता तो भारत का विकास और तीव्र गति से हुआ होता तथा आर्थिक विषमता जैसी समस्याएं भी उत्पन्न नहीं होती जो वर्तमान भारत की गंभीर समस्या बनी हुई हैं।