जवाहर लाल नेहरु - एक चिंतक (Jawaharlal Nehru - A Thinker)

Posted on March 27th, 2020 | Create PDF File

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भारत के नेताओं के संदर्भ में गांधी के पश्चात्‌ नेहरू की गणना महान नेताओं में होती है। नेहरू को भारत निर्माता की संज्ञा दी जाती है। नेहरू के व्यक्तित्व के अनेक पक्ष थे। वे एक महान नेता, चिंतक, लेखक एवं महान कटनीतिज्ञ कहे जाते हैं। नेहरू को महान नेता कहने का कारण उनकी व्यापक लोकप्रियता थी। गांधी के बाद नेहरू दूसरे सर्वाधिक लोकप्रिय नेता थे। नेहरू ने अपने वैज्ञानिकतावाद एवं धर्मनिरपेक्षतावाद में अपने महान चिंतन का परिचय दिया। नेहरू ने लेखक के रूप में कुछ महान पुस्तकों की रचना की जिसमें 'डिस्कवरी ऑफ इंडिया' प्रमुख है। इस पुस्तक में नेहरू की भारत के प्रति व्यायक समझ का परिचय मिलता है। नेहरू ने अपने पंचशील सिद्धान्त को दक्षिण एशियाई देशों में स्थापित करने में सफलता पाई जो उनकी महान कूटनीति का द्योतक है।

 

नेहरू वैज्ञानिकतावादी, धर्मनिरपेक्षतावादी, भौतिकवादी एवं यथार्थवादी चिंतक थे।नेहरू अपने समय की दो विचारधाराओं से अत्यधिक प्रभावित थे-वैज्ञानिकतावाद एवं धर्मनिरपेक्षतावाद | नेहरू की सदी वैज्ञानिक शोधों एवं वैज्ञानिक विकास की सदी है। नेहरू इससे अत्यधिक प्रभावित थे। नेहरू ने वैज्ञानिक अभिवृत्ति के विकास के लिए अथक प्रयास किए। नेहरू भलीभांति समझते थे कि भारतीय समाज मूलतः धार्मिक समाज है। यह समाज अनेक धार्मिक अंधविश्वासों एवं रूढ़ियों में जकड़ा हुआ है। भारतीय जनमानस की मानसिकता ही धार्मिक है। जिसका समाधान बिना वैज्ञानिक अभिवृत्ति के विकास के संभव नहीं है। वैज्ञानिक अभिवृत्ति प्रायः सभी में पाई जाती है लेकिन हमारी धार्मिक एवं सामाजिक मान्यताएं इसे धीरे-धीरे कुंद बना देती हैं।नेहरू ने वैज्ञानिक शोधों का व्यापक उपयोग करते हुए वैज्ञानिक अभिवृत्ति के विकास का प्रयास किया। यद्यपि आज भी भारतीय जनमानस मुख्यतः धार्मिक है। इस संदर्भ में अभी और अधिक कार्य करने की आवश्यकता है।

 

नेहरू ने वैज्ञानिक विकास के सहयोग से बड़े उद्योग एवं व्यापक उत्पादन की स्थापना की। उन्होंने न केवल आधारभूत संरचना पर ध्यान दिया, बल्कि कल-कारखानों को भी पूर्ण बढ़ावा दिया। नेहरू ने स्वयं कारखानों को आधुनिक मंदिर की संज्ञा देते हुए कहा कि यहाँ ईश्वर निवास करता है जो हमारी आवश्यकताओं को पूरा करता है।

 

नेहरू के समय से थोड़ा पूर्व पाश्चात्य देशों में धर्म एवं राज्य के मध्य विवाद लगभग सुलझ चुका था। राज्य एवं चर्च के मध्य स्पष्ट विभाजक रेखा खींची जा चुकी थी। पाश्चात्य राज्य धर्म से मुक्त हो रहे थे। नेहरू ने भारत के संदर्भ में भी इसकी आवश्यकता महसूस की। भारत विविधताओं का देश है। यहाँ अनेक धर्म एवं संप्रदाय विद्यमान हैं। जिनमें परस्पर संघर्ष एवं कलह बनी रहती है। इसलिए नेहरू ने धर्मनिरपेक्षता का मार्ग अपनाना श्रेयस्कर समझा जो उनकी दूरदृष्टि का परिचायक है। नेहरू ने पाश्चात्य धर्मनिरपेक्षतावाद को ज्यों का त्यों स्वीकार नहीं किया। बल्कि भारत के संदर्भ में इसे अपने ढंग से परिमाषित करने का प्रयास किया। वे जार्ज जेकब हॉलियोक के सभी धर्मों का निषेध नामक धर्मनिरपेक्षता के बजाय सभी धर्मों के प्रति तटस्थता को स्वीकार किया तथा साथ ही भारत के संदर्भ में सभी धर्मों के प्रति समभाव को भी इसमें सम्मिलित किया। इस संदर्भ में निःसंदेह नेहरू अपनी यथार्थवादी दृष्टि का परिचय देते हैं।

 

प्रायः कहा जाता है कि नेहरू पाश्चात्य व्यक्ति थे, जिसका मुख्य कारण उनकी शिक्षा, दीक्षा, जीवन शैली एवं भौतिकवाद के प्रति सुझाव है। बाल्यकाल से ही उन्हें अंग्रेजी शिक्षा प्राप्त हुई। आगे चलकर उन्होंने उच्च शिक्षा कानून में कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय से प्राप्त की। उनकी जीवन शैली भी प्रायः आधुनिक थी। वे सभी आधुनिक संसाधनों का उपयोग एवं उपभोग को बढ़ावा देते थे। जीवन के प्रति उनका दृष्टिकोण इहलौकिकतावादी एवं भौतिकवादी है। वे वर्तमान जीवन की चिंता करते थे। वे स्वयं कहते थे परलोक की चिंता की बजाय हमें इस जीवन को सुधारने का प्रयास करना चाहिए। यद्यपि नेहरू आधुनिकतावादी एवं भौतिकवादी थे, लेकिन उन्हें पाश्चात्य व्यक्ति कहना उचित नहीं है। उन्हें भारतीय समाज, भारतीय मूल्य एवं भारतीय जनमानस की गहरी समझ थी। उन्होंने स्वयं 'डिस्कवरी ऑफ इंडिया' में यह सिद्ध करने का प्रयास किया है कि भारत अध्यात्मवादी एवं परलोकवादी देश ही नहीं रहा है बल्कि यहॉ भौतिक विकास एवं भौतिक समृद्धि भी अपनी पराकाष्ठा पर रही है। सदियों तक गुलाम रहने के कारण भारत की वस्तुस्थिति ही नहीं, बल्कि मानसिकता भी दीन-हीन हो गई। प्राचीन भारत ने अध्यात्मवाद के साथ-साथ भौतिक वैभव को भी प्राप्त किया था। इसीलिए भारत को सोने की चिड़िया की संज्ञा दी जाती है।

 

नेहरू को भारत निर्माता की संज्ञा दी जाती है। वर्तमान भारत का जो स्वरूप है इसकी रूपरेखा स्वतंत्रता प्राप्ति के पश्चात्‌ नेहरू ने अपने व्यापक चिंतन में खींची।नेहरू ने सर्वप्रथम भारत निर्माण के लिए आधारभूत संरचना पर ध्यान दिया। इसके लिए उन्होंने रेल, यातायात, संचार, ऊर्जा आदि से संबंधित उद्योगों को स्थापित किया। भारत में उन सभी संसाधनों को व्यापक रूप से बढ़ाया। भारत के समुचित विकास के लिए नेहरू ने मिश्रित अर्थव्यवस्था को स्वीकार किया। वे न तो पूर्णतः पूंजीवाद और न ही पूर्णतः समाजवाद के पक्षधर थे। यद्यपि वे मूलतः समाजवादी थे। इसके लिए नेहरू ने राष्ट्रहित के विषयों का समाजीकरण किया। अर्थात्‌ प्राकृतिक संसाधन के विषयों को राज्य के अधीनस्थ रखा तथा दैनिक उपयोग की वस्तुओं से संबंधित उद्योगों को निजी क्षेत्र के लिए स्वतंत्र छोड़ दिया तथा भारत के क्रमिक
विकास के लिए जहाँ उन्होंने समाजवादी राज्य से पंचवषीय योजना को स्वीकार किया वहीं दूसरी तरफ पूंजीवादी राज्यों से निजी क्षेत्रों की स्वतंत्रता को भी बनाए रखा। वास्तव में यह नेहरू की दूर दृष्टि ही थी जिससे भारत में यद्यपि विकास बहुत तेजी से नहीं हुआ, लेकिन आर्थिक विषमता भी बहुत अधिक नहीं बढ़ी। भारत के परिप्रेक्ष्य में मिश्रित अर्थव्यवस्था ही एक उचित मार्ग था। यद्यपि इससे अर्थव्यवस्था के क्षेत्र में तो लाभ हुआ, लेकिन इसका राजनीतिक लाभ नेहरू को नहीं प्राप्त हो सका ।

 

नेहरू के समय विश्व पूंजीवाद एवं समाजवाद दो ध्रुवों में विभक्त था। नेहरू ने अर्थव्यवस्था के संदर्भ में इसके मध्य का मार्ग अपनाया तथा राजनीति के संदर्भ में गुटनिरपेक्ष राज्य की स्थापना की। जिससे भारत की पहचान एक अलग राज्य के रूप में बनी रही। यद्यपि नेहरू काल में गुटनिरपेक्षवाद अपने चरम पर नहीं पहुंच सका और सोवियत संघ के विघटन के पश्चात्‌ विश्व प्रायः एकध्रुवीय हो गया,जिसके फलस्वरूप गुटनिरपेक्ष आन्दोलन में शिथिलता आ गई |

 

नेहरू पूर्णतः लोकतांत्रिक व्यक्ति थे। लोकतंत्र में उनकी अटूट आस्था थी।लोकतांत्रिक आदर्श उनके लिए मानवीय आदर्श थे। नेहरू ने लोकतांत्रिक दृष्टिकोण के कारण ही भारत का लोकतंत्र दिन-प्रतिदिन मजबूत होता गया।

 

अतः कहा जा सकता है कि यदि गांधी को पूरे भारत को एक सूत्र में बांधने का एवं स्वतंत्रता आन्दोलन को सफल बनाने का श्रेय दिया जाता है तो नेहरू को भी भारत निर्माता तथा भारत को एक सशक्त लोकतांत्रिक राज्य के रूप में स्थापित करने का श्रेय दिया जाता है। इन दोनों महान नेताओं ने भारत निर्माण में अभूतपूर्व योगदान दिया।वास्तव में ये दोनों ही चिंतक एक-दूसरे के पूरक हैं। व्यावहारिक संदर्भ में
नेहरू की उतनी ही महत्ता है जितनी की गांधी की। गांधी की ही भांति नेहरू के भी जीवन दर्शन से तीन बातें उल्लेखनीय हैं। एक उनका लोकतंत्र में अटूट विश्वास, दूसरा भारत का भौतिक विकास और तीसरा वैज्ञानिक दृष्टिकोण एवं धर्मनिरपेक्षतावाद ये सभी बातें नेहरू के व्यक्तित्व से अनुकरणीय हैं ।