महात्मा गांधी एवं भीमराव अंबेडकर के मध्य मतभेद (Differences between Mahatma Gandhi and Bhimrao Ambedkar)
Posted on March 18th, 2020
गांधी एवं अंबेडकर के मध्य मुख्य विवाद सामाजिक स्वतंत्रता की अवधारणा को लेकर था। गांधी पारंपरिक वर्ण व्यवस्था के पक्षधर थे, लेकिन अंबेडकर का तर्क था कि राजनीतिक स्वतंत्रता का तब तक कोई अर्थ नहीं है जब तक कि भारत में सामाजिक परिवर्तन न हो। राजनीतिक स्वतंत्रता केवल व्यवस्था परिवर्तन है।अंबेडकर ने कहा यदि सामाजिक परिवर्तन नहीं होता है तो इसका अर्थ है कि अंग्रेजों के स्थान पर अब भारतीय अभिजात्य शासन करेंगे। अर्थात् एक सरकार के स्थान पर दूसरी सरकार आ जाएगी, लेकिन इससे भारत के पिछड़े वर्ग का कोई हित नहीं होगा। बिना सामाजिक परिवर्तन के राजनीतिक स्वतंत्रता निर्स्थक है।
अंबेडकर का चिंतन पूर्णतः लोकतांत्रिक था। अंबेडकर का तर्क है कि स्वतंत्रता का अर्थ केवल राजनीतिक व्यवस्था परिवर्तन नहीं है, बल्कि लोकतांत्रिक राज्य व्यवस्था का अर्थ है कि समानता, स्वतंत्रता, न्याय एवं भ्रातृत्व की स्थापना। गांधी एवं अंबेडकर के मध्य विवाद को गहराते हुए देखा नेहरू ने पूना पैक्ट में दोनों के मध्य समझौता कराने का प्रयास किया। लेकिन जब उन्हें इसमें विशेष सफलता नहीं प्राप्त हुई तब उन्होंने अंबेडकर को संविधान सभा की प्रारूप समिति का अध्यक्ष बनाया तथा लोकतांत्रिक आदर्शों की स्थपना का यह पुनीत कार्य अंबेडकर के हाथों में सौंप दिया जो नेहरू की गहरी लोकतांत्रिक आस्था का परिचायक है। इस प्रकार नेहरू आपसी मतमेद को सुलझाते हुए भारत को समाजवादी, धर्मनिरपेक्ष, लोकतांत्रिक राज्य का रूप देने में सफल रहे।
महात्मा गांधी एवं भीमराव अंबेडकर के मध्य मतभेद (Differences between Mahatma Gandhi and Bhimrao Ambedkar)
गांधी एवं अंबेडकर के मध्य मुख्य विवाद सामाजिक स्वतंत्रता की अवधारणा को लेकर था। गांधी पारंपरिक वर्ण व्यवस्था के पक्षधर थे, लेकिन अंबेडकर का तर्क था कि राजनीतिक स्वतंत्रता का तब तक कोई अर्थ नहीं है जब तक कि भारत में सामाजिक परिवर्तन न हो। राजनीतिक स्वतंत्रता केवल व्यवस्था परिवर्तन है।अंबेडकर ने कहा यदि सामाजिक परिवर्तन नहीं होता है तो इसका अर्थ है कि अंग्रेजों के स्थान पर अब भारतीय अभिजात्य शासन करेंगे। अर्थात् एक सरकार के स्थान पर दूसरी सरकार आ जाएगी, लेकिन इससे भारत के पिछड़े वर्ग का कोई हित नहीं होगा। बिना सामाजिक परिवर्तन के राजनीतिक स्वतंत्रता निर्स्थक है।
अंबेडकर का चिंतन पूर्णतः लोकतांत्रिक था। अंबेडकर का तर्क है कि स्वतंत्रता का अर्थ केवल राजनीतिक व्यवस्था परिवर्तन नहीं है, बल्कि लोकतांत्रिक राज्य व्यवस्था का अर्थ है कि समानता, स्वतंत्रता, न्याय एवं भ्रातृत्व की स्थापना। गांधी एवं अंबेडकर के मध्य विवाद को गहराते हुए देखा नेहरू ने पूना पैक्ट में दोनों के मध्य समझौता कराने का प्रयास किया। लेकिन जब उन्हें इसमें विशेष सफलता नहीं प्राप्त हुई तब उन्होंने अंबेडकर को संविधान सभा की प्रारूप समिति का अध्यक्ष बनाया तथा लोकतांत्रिक आदर्शों की स्थपना का यह पुनीत कार्य अंबेडकर के हाथों में सौंप दिया जो नेहरू की गहरी लोकतांत्रिक आस्था का परिचायक है। इस प्रकार नेहरू आपसी मतमेद को सुलझाते हुए भारत को समाजवादी, धर्मनिरपेक्ष, लोकतांत्रिक राज्य का रूप देने में सफल रहे।