12 राज्यों में सूचना के अधिकार की प्रगति का विवरण (Description of Progress of Right to Information in 12 states)

Posted on April 17th, 2020 | Create PDF File

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12 राज्यों में सूचना के अधिकार की प्रगति का विवरण

(Description of Progress of Right to Information in 12 states)

 

12 राज्यों में सूचना के अधिकार अधिनियम की प्रगति की स्थिति का आकलन एशिया में सहभागी शोध (PRIA) के द्वारा किया गया। इन बारह राज्यों में शामिल थे-हिमाचल प्रदेश,हरियाणा, राजस्थान, झारखण्ड, मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश, उत्तराखण्ड, छत्तीसगढ़, आंध्र प्रदेश, केरल, गुजरात एवं बिहार। इन राज्यों में राज्य सूचना आयोगों के गठन, इनकी भूमिका, नोडल एजेंसियों की भूमिका, लोक सूचना अधिकारियों की नियुक्ति, इनसे सूचना प्राप्ति के अनुभव RTI अधिनियम की धारा IV में प्रकट बाध्यताएँ एवं अधिनियम की धारा 26 के तहत लोगों को RTI के बारे में शिक्षित करने में सरकार की भूमिका इत्यादि का अध्ययन किया गया।

 

* राज्य सूचना आयोग का गठन एवं भूमिका-अध्ययन में पाया गया कि इन 2 राज्यों में से अरुणाचल प्रदेश को छोड़कर बाकी सभी 11 राज्यों में सूचना आयोग अगस्त 2006 तक गठित किए जा चुके थे। परन्तु इनमें से कुछ राज्यों जैसे-बिहार, झारखण्ड, उत्तर प्रदेश, हिमाचल प्रदेश, हरियाणा, राजस्थान में राज्य सूचना आयोगों की स्थापना में कुछ महीनों की देरी हुई। इन्हें पर्याप्त अवसंरचनाएँ जैसे कार्यालय, कम्प्यूटर, स्टॉफ व निधियाँ आदि उपलब्ध नहीं कराई गई थीं। उदाहरण के लिए, उत्तर प्रदेश राज्य सूचना आयोग में कार्यबोझ ज्यादा था और केवल दो सूचना आयुक्त ही नियुक्त किए गए थे। बिहार राज्य सूचना आयुक्त ने शपथ ली, परन्तु कार्यालय का पता वेबसाइट पर उपलब्ध नहीं था। राजस्थान सूचना आयोग एक कमरे में कार्य कर रहा था।लोक सूचना अधिकारियों द्वारा कर्तव्य की अवहेलना करने पर भी राज्य सूचना आयोग उनको दण्डित करने के अनिच्छुक थे। इस तरह के मामले में दण्डित करने के बहुत कम उदाहरण थे (उत्तराखण्ड, आंध्र प्रदेश, उत्तर प्रदेश में ही कुछ पेनालटी के मामले देख गए थे)। ग्रामीण क्षेत्रीय लोगों ने महसूस किया कि अपील प्रक्रिया काफी महंगी थी (मध्य प्रदेश, ओडिशा, महाराष्ट्र, छत्तीसगढ़ में अपील के लिए फीस का प्रावधान था)। हालांकि डाक के माध्यम से अपील करने का प्रावधान था, परन्तु लोगों को लगता था कि उनकी अनुपस्थिति में उनके पक्ष को सही ढंग से नहीं रखा जा सकेगा। आवेदन शुल्क हरियाणा में सर्वाधिक था (50 रुपए) एवं फोटोकॉपी फीस सर्वाधिक हिमाचल प्रदेश में थी (10 रुपए प्रति पृष्ठ)।

 

* नोडल एजेंसियों की भूमिका-उत्तराखण्ड, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, आंध्र प्रदेश,राजस्थान एवं केरल में लोक सूचना अधिकारियों के प्रशिक्षण की प्रक्रिया राज्य की नोडल एजेंसियों के माध्यम से शुरू की गई। सुशासन के लिए केन्द्र, यशादा (पुणे) एवं लोक प्रशासन संस्थान की देख-रेख में सर्वेक्षण वाले राज्यों के लोक सूचना अधिकारियों (PIO) के लिए प्रशिक्षण कार्य चल रहा था। सूत्र विभागों (Line Department) एवं खण्ड विकास अधिकारी और लोक सूचना अधिकारी का प्रशिक्षण संतुष्टिपूर्ण नहीं था। इनमें से कई तो अधिनियम के प्रति जागरूक भी नहीं थे। प्रखण्ड विकास अधिकारियों (BDO's) और पंचायत सचिवों को प्रशिक्षण नोडल एजेंसीज द्वारा कैसे दिया जाएगा यह स्पष्ट नहीं था। कोई समय सीमा व रोडमैप तैयार नहीं था। उत्तर प्रदेश में ही 52 हजार ग्राम पंचायतों के पंचायत सचिवों को प्रशिक्षण दिया जाना था और बजट केवल दस लाख वार्षिक था।आंध्र प्रदेश, मध्य प्रदेश, उत्तराखण्ड, आदि राज्यों की नोडल एजेंसी ने RTI सीखने की सामग्रियों (टेम्पलेट, पर्चे आदि) के माध्यम से सूचना प्रसारित कीं। वहीं अन्य राज्यों में इसकी गति काफी धीमी थी। केरल में RTI एक्ट मलयालम में था, जिसे पढ़े-लिखे लोगों को समझने में कठिनाई आ रही थी।

 

* लोक सूचना अधिकारियों (PIO) की नियुक्ति - कई जगह लोक अथॉरिटी की परिभाषा को लेकर संदेह व्याप्त था। कूछ राज्यों में जैसे केरल में कई लोक अथॉरिटी जैसे को-ऑपरेटिव बैंक, सहायता प्राप्त शैक्षिक संस्थाएँ घोषणा कर रही थीं कि वे RTI एक्ट के तहत नहीं आते। इसी तरह हिमाचल प्रदेश एवं उत्तराखण्ड में निजी बिल्डर एवं निजी बैंक भी घोषणा कर रहे थे। केन्द्रीय एवं राज्य सूचना आयोगों को इस मुद्दे को स्पष्ट करना आवश्यक है। पंजाब एवं हरियाणा उच्च न्यायालय में (जो कि लोक अथॉरिटी हैं) कोई लोग सूचना अधिकारी नहीं था। कई जगह ऐसे व्यक्तियों को लोक सूचना अधिकारी नियुक्त किया गया जिनकी सूचना तक आसान पहुँच ही नहीं थी। उत्तराखण्ड में सरपंच को लोक सूचना अधिकारी बना दिया गया था; हिमाचल प्रदेश में प्रखण्ड विकास अधिकारी को ग्राम पंचायत तक के लिए PIO नियुक्त किया गया। PIOs सामान्यतः विभाग के जूनियर अधिकारियों को बनाया गया, जिन्हें वरिष्ठ अधिकारियों से सूचना लेने में कठिनाई आती थी। PIOs की नियुक्ति की गई, किन्तु लोक प्राधिकरणों की आवश्यकता के अनुसार नहीं। अधिकतर लोक प्राधिकारणों में (यहाँ तक कि जिला स्तर पर भी)PIOs के नाम पटि्ट्काओं का अभाव पाया गया, जिससे लोगों को यह जानकारी नहीं मिल पा रही थी कि आवेदन कहाँ जमा किए जाएं।

 

* PIOs से सूचना प्राप्ति का अनुभव - राज्य एवं जिला स्तर पर अधिकतर PIOs सहयोगी नहीं थे, कई बार वे आवेदक के आवेदन वापस देने आ जाते थे। ऐसा उदाहरण हरियाणा में देखने को मिला। ऐसे ही कुछ उदाहरण उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, राजस्थान एवं छत्तीसगढ़ में देखे गए। अधिकतर PIOs यह नहीं जानते थे कि किस अधिकारी के अधीन आवेदन शुल्क निक्षेपित किया जाए। वे अधिकतर अनुपस्थित रहते थे और उनकी अनुपस्थिति में कोई अन्य आवेदन नहीं होता था।शुल्क पोस्टल ऑर्डर के माध्यम से ली जा सकती थी, परन्तु अधिकतर PIOs ने ऐसी फीस यह कहकर लौटा दी थी कि पोस्टल आर्डर के माध्यम से फीस लिए जाने का कोई प्रावधान नहीं है। उत्तर प्रदेश के बहराइच जिले में ही PIOs पक्षतापूर्ण ढंग से कई लोगों से बिना पैसे लिए उन्हें सूचना दे रहे थे। लोगों की आवश्यकताओं के प्रति संवेदनशील बनाने के लिए PIOs को विशेष प्रशिक्षण दिया जाना चाहिए और जानबूझकर दोषपूर्ण कार्य करने वाले PIOs को या सूचना देने से इंकार करने पर सजा दी जानी चाहिए।

 

* RTI अधिनियम की धारा IV में प्रकट बाधाएं - मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश, उत्तराखण्ड एवं आंध्र प्रदेश के मंत्रालय एवं निदेशालय स्तर के कार्यालयों ने अपनी क्रियाविधियों की जानकारी अपनी वेबसाइट में दी हुई थी। जबकि हिमाचल प्रदेश, हरियाणा, झारखण्ड, राजस्थान, उत्तर प्रदेश, उत्तराखण्ड और आंध्र प्रदेश के कृषि विभाग ने RTI एक्ट की धारा IV के बहुत से मुद्दे अपना लिए थे। कार्यालयीन एवं PIOs की सूची मंत्रालयों व निदेशालयों में नहीं थी। साथ ही खर्चों का विवरण केवल वरिष्ठों के हाथों में था, जिला व प्रखण्ड स्तरीय फ़ंड का विवरण उपलब्ध नहीं था, दिनांक आदि नहीं डाली जाती थी। यह भी देखा गया कि इन 12 राज्यों में जिला प्रखण्ड एवं पंचायत स्तर पर स्व-प्रकटीकरण प्रारम्भ नहीं किया था।

 

 

* RTI एक्ट की धारा 26 के तहत लोगों को शिक्षित करने की सरकार की भूमिका - RTI के अभियान एवं प्रशिक्षण कार्यक्रमों का अनुभव दर्शाता है कि लगभग 90% लोग न तो एक्ट के प्रति और न ही आवेदन करने के प्रति जागरूक हैं।RTI का ग्रामीण क्षेत्रों में उपयोग सभी राज्यों में शहरी क्षेत्रों की अपेक्षा काफी कम था। सरकार ने RTI को लोगों के बीच लोकप्रिय बनाने के लिए इलेक्ट्रॉनिक एवं प्रिंट मीडिया का न ही इस्तेमाल किया और न ही कोई अभियान चलाया। केन्द्रीय एवं राज्य दोनों सरकारों ने RTI अभियान के लिए न ही कोई निधि आवंटित की और न ही नोडल एजेंसियों का कोई सहयोग किया।