अर्थव्यवस्था समसामयिकी 1 (13-January-2022)
क्षेत्रीय व्यापक आर्थिक भागीदारी (RCEP) संधि और भारत
(Regional Comprehensive Economic Partnership (RCEP) Treaty and India)

Posted on January 13th, 2022 | Create PDF File

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हाल ही में, दक्षिण कोरिया ने ‘क्षेत्रीय व्यापक आर्थिक भागीदारी’ (Regional Comprehensive Economic PartnershipRCEP) में भारत की अनुपस्थिति पर खेद जताया है और नई दिल्ली के इस समझौते में फिर से शामिल होने की आशा व्यक्त की है।

 

RCEP का कार्यान्वयन :

 

‘क्षेत्रीय व्यापक आर्थिक भागीदारी’ (RCEP) समझौता 1 जनवरी, 2022 से प्रभावी हो चुका है। इसके साथ ही, यह ‘व्यापार की मात्रा’ के मामले में विश्व का सबसे बड़ा ‘मुक्त व्यापार क्षेत्र’ समझौता बन गया है।

 

RCEP में शामिल होने को लेकर भारत की चिन्ताएँ : 

 

भारत, ‘क्षेत्रीय व्यापक आर्थिक साझेदारी’ (RCEP) से मुख्यतः चीन द्वारा उत्पादित सस्ते सामान के देश में प्रवेश करने संबंधी चिंताओं के कारण अलग हो गया था।

 

चीन के साथ भारत का व्यापार असंतुलन पहले से काफी अधिक है।

 

इसके अलावा, यह समझौता ‘सेवाओं को पर्याप्त रूप से खुला रखने में विफल’ रहा था।

 

क्षेत्रीय व्यापक आर्थिक भागीदारी (RCEP)  में भारत की मौजूदगी की आवश्यकता :

 

बढ़ती हुई वैश्विक अस्थिरता के दौर में एक समावेशी संरचना का निर्माण करने हेतु क्षेत्र की सहायता करने में भारत को ‘एक महत्वपूर्ण भूमिका’ अदा करनी थी।

 

इस प्रकार के व्यापारिक समझौते, भारतीय कंपनियों को बड़े बाजारों में भी अपनी ताकत दिखाने के लिए एक मंच प्रदान करते हैं।

 

इसके अलावा, अमेरिका और चीन के बीच बढ़ता हुआ तनाव, क्षेत्र के लिए ‘गंभीर चिंता’ का विषय है, जोकि महामारी के कारण और भी गहन हो गया है।

 

RCEP :

 

क्षेत्रीय व्यापक आर्थिक भागीदारी (RCEP), विश्व का सबसे बड़ा व्यापारिक समझौता है, जिसमे चीन, जापान ऑस्ट्रेलिया, दक्षिण कोरिया, न्यूजीलैंड और आसियान (ASEAN) के दस देश, सिंगापुर, थाईलैंड, वियतनाम, कंबोडिया, इंडोनेशिया, मलेशिया, ब्रुनेई, लाओस, म्यांमार और फिलीपींस शामिल है।

 

RCEP के लक्ष्य और उद्देश्य :

 

उभरती अर्थव्यवस्थाओं को विश्व के शेष भागों के साथ प्रतिस्पर्धा करने में सहायता करने हेतु टैरिफ कम करना, तथा सेवा क्षेत्र में व्यापार और निवेश को बढ़ावा देना।

 

कंपनियों के लिए समय और लागत की बचत करने हेतु ब्लॉक के सदस्य देशों में भिन्न-भिन्न औपचारिकताओं को पूरा किये बिना किसी उत्पाद के निर्यात करने की सुविधा प्रदान करना।

 

इस समझौते में बौद्धिक संपदा संबंधी पहलुओं को शामिल किया गया है, किंतु इसमें पर्यावरण संरक्षण और श्रम अधिकारों को सम्मिलित नहीं किया गया है।

 

महत्व:

 

‘क्षेत्रीय व्यापक आर्थिक भागीदारी’ (RCEP) के अंतर्गत, वैश्विक सकल घरेलू उत्पाद (GDP) का लगभग 30%,  अर्थात 2 ट्रिलियन डॉलर (23.17 ट्रिलियन यूरो) और दुनिया की लगभग एक तिहाई आबादी, अर्थात लगभग 2.2 बिलियन लोगों की आबादी कवर होगी।

 

RCEP के तहत, इस संगठन के भीतर लगभग 90% व्यापार शुल्क अंततः समाप्त हो जाएंगे।

 

RCEP के तहत, व्यापार, बौद्धिक संपदा, ई-कॉमर्स और प्रतिस्पर्धा से संबंधित सामान्य नियम भी निर्धारित किए जाएंगे।

 

आगे की चुनौतियां :

 

संयुक्त राज्य अमेरिका की अनुपस्थिति में, बीजिंग को इस क्षेत्र में ‘आर्थिक विकास’ के चालक के रूप में अपनी भूमिका को मजबूत करने का अवसर मिलेगा।

 

आर्थिक लाभों को मूर्त रूप लेने में लंबा समय लगेगा।

 

जहाँ बड़ी एशियाई अर्थव्यवस्थाएं अधिकांश लाभ उठाएंगी, वहीं RCEP के तहत ASEAN में शामिल छोटे देशों को नुकसान उठाना पड़ सकता है, क्योंकि इस व्यापार समझौते में इन देशों के प्रमुख उद्योगों को कवर नहीं किया गया है।

 

एशिया में सबसे कम विकसित देश – कंबोडिया, लाओस, म्यांमार – वर्तमान में ‘आसियान समूह’ के भीतर होने वाले व्यापार से लाभान्वित होते हैं। RCEP के मध्य व्यापार से इन देशों के व्यापार को चोट पहुँच सकती है।

 

RCEP समझौते के तहत, छोटे आसियान देशों को अपने ‘व्यापार वरीयता कार्यक्रमों’ से होने वाले कुछ लाभों को गंवाना पड़ सकता है। अभी तक ये देश, दक्षिण कोरिया और जापान सहित आसियान समूह के बाहर टैरिफ-मुक्त उत्पादों का निर्यात किया करते थे।