polity class theory 2

Posted on December 13th, 2020 | Create PDF File

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भारतीय संविधान में अधिकार

 

अधिकारः-

* अधिकार वे 'हक' है,जो एक आम आदमी को जीवन जीने के लिए चाहिए,जिसकी वो मांग करता है |

 

अधिकारों का घोषणा पत्र:-

*अधिकतर लोकतांत्रिक देशों में नागरिकों के अधिकारों को संविधान में सूचीबद्ध कर दिया जाता हैं ऐसी सूची को अधिकारों का घोषणा पत्र' कहते है।

 

भारतीय संविधान में मौलिक अधिकार:-

* भारत के स्वतंत्रता-आन्दोलन के दौरान क्रांतिकारियों/ स्वतंत्रता नायकों द्वारा नागरिक अधिकारों की मांग समय-समय पर उठाई जाती रही, 1928 में भी मोतीलाल नेहरू समिति ने अधिकारों के एक घोषणा पत्र की मांग उठाई थी।

* फिर स्वतंत्रता के बाद इन अधिकारों में से अधिकांश को संविधान में सूचीबद्ध कर दिया गया।

 

मौलिक अधिकारः-

* वे अधिकार जो संविधान में सूचीबद्ध किए गए हैं तथा जिनको लागू करने के लिए विशेष प्रावधान किए गये है। इनकी गांरटी एवं सुरक्षा स्वयं संविधान करता है। इन अधिकारों में परिवर्तन करने के लिए संविधान में संशोधन करना पड़ता है, सरकार का कोई भी अंग मौलिक अधिकारों के विरूद्ध कोई कार्य नहीं कर सकता।

 

भारतीय संविधान के भाग तीन में वर्णित छः मौलिक अधिकार निम्न प्रकार है--

 

 

1.समानता का अधिकार (14-18 अनुच्छेद)

2.स्वतंत्रता का अधिकार (19-22 अनुच्छेद)

3.शोषण के विरूद्ध अधिकार (23-24 अनुच्छेद)

4.धार्मिक स्वतंत्रता का अधिकार (25-28 अनुच्छेद)

5.संस्कृति एवं शिक्षा संबधि (20-30 अनुच्छेद)

6.संवैधानिक उपचारों का अधिकर (अनुच्छेद 32)

 

 

दक्षिण अफ्रीका का संविधान दिसम्बर 1996 में लागू हुआ, जब रंगभेद वाली सरकार हटने के बाद देश गृहयुद्ध के खतरे से जूझ रहा था, दक्षिण अफ्रीका में अधिकारों को घोषणा पत्र प्रजातंत्र की आधारशिला है।

दक्षिण-अफ्रीका के संविधान में सूचीबद्ध प्रमुख अधिकारः-

 


* गरिमा का अधिकार

* निजता का अधिकार

* श्रम-संबंधी समुचित व्यवहार का अधिकार

* स्वास्थ्य पर्यावरण और पर्यावरण सरंक्षण का अधिकार

* समुचित आवास का अधिकार

* स्वास्थ्य सुविधाएं, भोजन, पानी और सामाजिक सुरक्षा का अधिकार

* बाल अधिकार

* बुनियादी और उच्च शिक्षा का अधिकार

 

* सूचना प्राप्त करने का अधिकार 

* सांस्कृतिक, धार्मिक ओर भाषाई समुदायों का अधिकार।

 

राज्य के नीति-निदेशक तत्व क्या है-


स्वतंत्र भारत में सभी नागरिकों में समानता लाने और सबका कल्याण करने के लिए मौलिक अधिकारों के अलावा बहुत से नियमों की जरूरत थी, राज्य की नीति निदेशक तत्वों  के तहत ऐसे ही नीतिगत निर्देश सरकारों को दिए गए है, जिनको न्यायलय में चुनौती नहीं दी जा सकती है परन्तु इन्हें लागू करने के लिए सरकार से आग्रह किया
जा सकता है , सरकार का दायित्व है कि जिस सीमा तक इन्हें लागू कर सकती है, करें।

 

प्रमुख नीति निदेशक तत्वों की सूची में तीन प्रमुख बातें हैं-

 

* वे लक्ष्य और उद्देश्य जो एक समाज के रूप मे हमें स्वीकार करने चाहिए।

* वे अधिकार जो नागरिकों को मौलिक अधिकारों के अलावा मिलने चाहिए।

*  वे नीतियाँ जिन्हें सरकार को स्वीकार करना चाहिए ।

 

नागरिकों के मौलिक कर्त्तव्यः-

1976 में, 42वें संविधान संशोधन द्वारा नागरिकों के मौलिक कर्त्तव्यों की सूची (अनुच्छेद-51(क)) का समावेश किया गया है, इसके अन्तर्गत नागरिकों के कुछ मौलिक कर्तव्य निम्न हैं--

 

* संविधान का पालन करना, राष्ट्रध्वज और राष्ट्रगान का सम्मान करना ।

* राष्ट्रीय आन्दोलन को प्रेरित करने वाले उच्च आदर्शों को हृदय में संजोए रखना और उनका पालन करना ।

* भारत की सम्प्रभुता, एकता और अखंडता की रक्षा करना ।

* राष्ट्र रक्षा एवं सेवा के लिए तत्पर रहना ।

* प्राकृतिक पर्यावरण का सरंक्षण करें।


* वैज्ञानिक दृष्टिकोण, मानववाद ओर ज्ञानार्जन तथा सुधार की भावना का विकास करें।

* सार्वजनिक सम्पत्ति को सुरक्षित रखें स्वच्छ भारत अभियान को सफल बनाएं और हिंसा से दूर रहें।

 

नीति-निदेशक तत्वों और मौलिक अधिकारों में संबंध--

* दोनों एक दूसरें के पूरक हैं| जहां मौलिक अधिकार सरकार के कुछ कार्यों पर प्रतिबंध लगाते हैं, वहीं नीति निर्देशक तत्व उसे कुछ कार्यों को करने की प्रेरणा देते हैं।

* मौलिक अधिकार खास तौर पर व्यक्ति के अधिकारों को सरंक्षित करते हैं, वहीं पर नीति निर्देशक तत्व पूरे समाज के हित की बात करते है।

 

नीति-निदेशक तत्वों एवं मौलिक अधिकारों में अन्तर-

 

* मौलिक अधिकारों को कानूनी सहयोग प्राप्त है परन्तु नीति निदेशक तत्वों को कानूनी सहयोग प्राप्त नहीं है। अर्थात्‌ मौलिक अधिकारों के उल्लंघन पर आप न्यायलय में जा सकते हैं परन्तु नीति निदेशक तत्वों के उल्लंघन पर न्यायलय नहीं जा सकते।

* मौलिक अधिकारों का सम्बन्ध व्यक्तियों और निदेशक सिद्धान्तों का सम्बन्ध  समाज से है।