nceret 11 chapter 6 polity theory

Posted on December 18th, 2020 | Create PDF File

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न्यायपालिका

 

* न्यायपालिका सरकार का महत्वपूर्ण तीसरा अंग है जिसे विभिन्‍न व्यक्तियों या संस्थाओं के आपसी विवादों को हल करने वाले पंच के रूप में देखा जाता है कि कानून के शासन की रक्षा और कानून की सर्वोच्चता को सुनिश्चित करें।

 

* इसके लिये यह जरूरी है कि न्यायपालिका किसी भी राजनीतिक दबाव से मुक्त होकर स्वतंत्र निर्णय ले सकें। न्यायपालिका देश के संविधान, लोकतंत्रिक परम्परा और जनता के प्रति जवाबदेह है

 

 

* यह भी जरूरी है कि विधायिका और कार्यपालिका, न्यायपालिका के कार्यों में किसी प्रकार की बाधा न पहुचें न्यायपालिका ठीक प्रकार से कार्य कर सकें।

 

* न्यायधीश बिना भय या भेदभाव के अपना कार्य कर सकें।

 

* न्यायधीश के रूप में नियुक्त होने के लिए किसी व्यक्ति को वकालत का अनुभव या कानून का विशेषज्ञ होना चाहिए। इनका निश्चित कार्यकाल होता है। वे सेवा निवृत्त होने तक पद पर बने रहते है। विशेष स्थितियों में न्यायधीशों को हटाया जा सकता है।

 

* न्यायपालिका, विधायिका या कार्यपालिका पर वित्तीय रूप से निर्भर नहीं है।

 

न्यायधीश की नियुक्ति:-

 

* मुख्य न्यायधीश की नियुक्ति के संदर्भ में यह परम्परा भी है कि सर्वोच्च न्यायलय के सबसे वरिष्ठ न्यायधीश को मुख्य न्यायधीश चुना जाता है

* सर्वोच्च न्यायालय और उच्च न्यायालय के न्यायधीश की नियुक्ति राष्ट्रपति भारत के मुख्य न्यायधीश की सलाह से करता है।

 

सर्वोच्च न्यायालय का क्षेत्राधिकार-

 

आरम्भिक क्षेत्राधिकार

* केन्द्र व राज्यों के बीच विवादों का निपटारा ।

 

रिट  क्षेत्राधिकार

* मौलिक अधिकारों का संरक्षण ।

 

अपीलीय

* दीवानी फौजदारी व संवैधानिक सवालों से जुड़े अधीनस्थ न्यायलयों के मुकदमों  पर अपील सुनना ।

 

सलाहकारी

 

* 'जनहित के मामलों तथा कानून के मसरलों पर राष्ट्रपति को सलाह देना।

 

न्यायिक सक्रियता-

 

 

* भारत में न्यायिक सक्रियता का मुख्य साधन जन हित याचिका या सामाजिक व्यवहार याचिका रही है।

 

* 1979-80 के बाद जनहित याचिकाओं और न्यायिक सक्रियता के द्वारा न्यायधीश ने उन मामलें मे रूचि दिखाई जहां समाज के कुछ वर्गों के लोग आसानी से अदालत की सेवाएँ नहीं ले सकेते। इस उद्देश्य की पूर्ति हेतु न्यायलय ने जन सेवा की भावना से भरे नागरिक, सामाजिक संगठन और वकीलों को समाज के जरूरतमंद और गरीब लोगों की ओर से-याचिकाएं दायर करने को इजाजत दी।

 

* न्यायिक सक्रियता ने न्याय व्यवस्था को लोकतंत्रिक बनाया ओर कार्यपलिका उत्तरदायी बनने पर बाध्य हुई।

 

* चुनाव प्रणाली को भी ज्यादा मुक्त ओर निष्पक्ष बनाने का प्रयास किया। चुनाव लड़ने वाली प्रत्याशियों की अपनी संपत्ति आय और शैक्षणिक योग्यताओं के संबंध में शपथ पत्र दने का निर्देश दिया, ताकि लोग सही जानकारी के आधार पर प्रतिनिधियों का चुनाव कर सकें।

 

सक्रिय न्यायपालिका का नकरात्मक पहलू-

 

* न्यायपालिका में काम का बोझ बढ़ा

 

* न्यायिक सक्रियता से विधायिका, कार्यपालिका और न्यायपालिका के कार्यो के बीच अंतर करना मुश्किल हो गया जैसे-वायु और ध्वनि प्रदूषण दूर करना, भ्रष्टाचार की जांच व चुनाव सुधार करना इत्यादि विधायिका की देखरेख में प्रशासन का कार्य करना चाहिए।

 

* सरकार का प्रत्येक अंग एक-दूसरे की शक्तियों और क्षेत्राधिकार का सम्मान करें।

 

न्यायिक पुनरावलोकन का अधिकार-

 

* न्यायिक पुनरावलोकन का अर्थ है कि सर्वोच्च न्यायालय किसी भी कानून की संवैधानिकता की जांच कर सकता है यदि यह संविधान के प्रावधानों के विपरित हो तो उसे गैर-संवैधानिक घोषित कर सकता है।

* न्यायपालिका विधायिका द्वारा पारित कानूनों की और संविधान की व्याख्या
करती हैं । 

* नागरिकों के अधिकारी की रक्षा करती है।

 

न्यायपालिका और संसद-

 

* भारतीय संविधान में सरकार के प्रत्येक अंग का एक स्पष्ट कार्यक्षेत्र है।

 

* इस कार्य विभाजन के बावजूद संसद व न्यायपालिका तथा कार्यपालिका और न्यायपालिका के बीच टकराव भारतीय राजनीति की विशेषता रही है।

 

1973 में सर्वोच्च न्यायलय का निर्णय

 

* संविधान का एक मूल ढांचा है और संसद सहित कोई भी इस मूल ढांचें से छेड़-छाड़ नहीं कर सकती।संविधान संशोधन द्वारा भी इस मूल ढांचें को  नहीं बदला जा सकता।

* न्यायलय ने यह निर्णय अपने पास रखा कि कोई मुद्दा मूल ढांचे का हिस्सा है या नहीं