polity chapter theory 4

Posted on December 16th, 2020 | Create PDF File

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कार्यपालिका

 

कार्यपालिका का अर्थ:

 

* सरकार का वह अंग जो नियमों कानूनों को लागू करता है और प्रशासन का काम करता है कार्यपालिका कहलाता है। कार्यपालिका विधायिका द्वारा स्वीकृत नीतियों और कानूनों को लागू करने के लिए जिम्मेदार है।कार्यपालिका में केवल राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री य मंत्री ही नहीं होते बल्कि इसके अंदर पूरा प्रशासनिक ढांचा (सिविल सेवा के सदस्य) भी आते हैं।राजनीतिक कार्यपालिका में सरकार के प्रधान और उनके मंत्रियों को सम्मिलित किया जाता है। ये सरकार की सभी नीतियों के लिए उत्तरदायी होते है।

 

* स्थायी कार्यपालिका में जो लोग रोज-रोज के प्रशासन के लिए उत्तरदायी होते है, को सम्मिलित किया जाता है।

* अमेरिका में अध्याक्षात्मक व्यवस्था है और कार्यकारी शक्तियां राष्ट्रपति के पास होती है।

* जापान में संसदीय व्यवस्था है जिसमें राजा देश का और प्रधानमंत्री सरकार का प्रधान होता है।

* इटली में एक संसदीय व्यवस्था है जिसमें सरकार का प्रधान है।

 

* अध्यक्षात्मक व्यवस्था में राष्ट्रपति देश और सरकार दोनों का ही प्रधान होता है। इस व्यवस्था में सिद्धांत और व्यवहार दोनों में ही राष्ट्रपति का पद बहुत शक्तिशाली होता है। अमेरिका, ब्राजील और लेटिन अमेरकि के कई देशो में यह व्यवस्था पाई जाती है।

 

* संसदीय व्यवस्था में प्रधानमंत्री सरकार का प्रधान होता है इस व्यवस्था में 'एक राष्ट्रपति या राजा होता है जो देश का नाममात्र का प्रधान होता है।प्रधानमंत्री के पास वास्तविक शक्ति होती है | भारत, इटली, जापान, इग्लैंड आदि देशों में यह व्यवस्था है।

 

* अर्द्धअध्यक्षात्मक व्यवस्था में राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री दोनों होते हैं लेकिन उसमें राष्ट्रपति को दैनिक कार्यों के संपादन मेँ महत्वपूर्ण शक्तियां प्राप्त हो सकती है फ्रांस, रूस और श्रीलंका में ऐसी ही व्यवस्था है।

 

भारत में संसदीय कार्यपालिका:

 

* हमारे संविधान निर्माता यह चाहते थे सरकार ऐसी हो जो जनता की अपेक्षाओं के प्रति संवेदनशील और उत्तरदायी हो ऐसा केवल संसदीय कार्यपालिका में ही संभव था।

* अध्यक्षात्मक कार्यपालिका क्यूंकि राष्ट्रपति की शक्तियों पर बहुत बल देती है, इससे व्यक्ति पूजा का खतरा बना रहता है। संविधान निर्माता एक ऐसी सरकार चाहते थे जिसमें एक शक्तिशाली कार्यपालिका तो हो, लेकिन साथ-साथ उसमें व्यक्ति पूजा पर भी पर्याप्त अंकुश लगें हो।

* संसदीय व्यवस्था में कार्यपालिका विधायिका या जनता के प्रति उत्तरदायी होती है और नियंत्रित भी। इसलिए संविधान में राष्ट्रीय और प्रांतीय दोनों ही स्तरों पर संसदीय कार्यपालिका की व्यवस्था को स्वीकार किया गया।

* भारत में इस व्यवस्था में राष्ट्रपति, औपचारिक प्रधान होता है तथा प्रधानमंत्री और मंत्रिपरिषद राष्ट्रीय स्तर पर सरकार चलाते है।राज्यों के स्तर पर राज्यपाल, मुख्यमंत्री और मंत्रिपरिषद मिलकर कार्यपालिका बनाते है।

 

* औपचारिक रूप से संघ की कार्यपालिका शक्तियाँ राष्ट्रपति को दी गई है परंतु वास्तविक रूप से प्रधानमंत्री तथा मंत्रिपरिषद के माध्यम से राष्ट्रपति इन शक्तियों का प्रयोग करता है। राष्ट्रपति 5 वर्ष के लिए चुना जाता है वह भी अप्रत्यक्ष तरीके से, निर्वाचित सांसद और विधायक करते हैं। यह निर्वाचन समानुपातिक प्रतिनिधित्व की प्रणाली और एकल संक्रमणीय मत के सिद्धांत
के अनुसार होता है।

* संसद, राष्ट्रपति को महाभियोग की प्रक्रिया के द्वारा उसके पद से हटा सकती है । महाभियोग केवल संविधान के उल्लंघन के आधार पर लगाया जा सकता है।

 

राष्ट्रपति की शक्ति और स्थितिः-


* एक औपचारिक प्रधान है: राष्ट्रपति को वैसे तो बहुत सी कार्यकारी, विधायी (कानून बनाना) कानूनी और आपात शक्तियाँ प्राप्त है परंतु इन सभी शक्तियों का प्रयोग वह मंत्रिपरिषद की सलाह पर करता है।

 

 

आखिर राष्ट्रपति पद की क्या आवश्यकता है?

* संसदीय व्यवस्था मे, समर्थन न रहने पर, मंत्रिपरिषद को कभी भी हटाया जा सकता है, ऐसे समय में एक ऐसे राष्ट्र प्रमुख की आवश्यकता पड़ती है जिसका कार्यकाल स्थायी हो, जो सांकेतिक रूप से पूरे देश का प्रतिनिधित्व कर सकें।

* राष्ट्रपति की अनुपस्थिति में उपराष्ट्रपति ये सभी कार्य करते हैं।

*भारत का उपराष्ट्रपति पांच वर्ष के लिए चुना जाता है, जिस तरह राष्ट्रपति को चुना जाता है। वह राज्यसभा का पदेन सभापति होता है और राष्ट्रपति की मृत्यु, त्यागपत्र, महाभियोग द्वारा हटाया जाने या अन्य किसी कारक के पद रिक्त होने पर वह कार्यवाहक राष्ट्रपति का काम करता है।

 

प्रधानमंत्री और मंत्रिपरिषदः-

* प्रधानमंत्री लोकसभा में बहुमत प्राप्त दल का नेता होता है। जैसे ही वह बहुमत खो देता है, वह अपना पद भी खो देता है।

* प्रधानमंत्री ही तय करता है कि उसके मंत्रिपरिषद में कौन लोग मंत्री हाँगे। प्रधानमंत्री ही विभिन्‍न मंत्रियों के पद स्तर और मंत्रालयों का आबंटन करता है। इसी कारण वह मंत्रिपरिषद का प्रधान भी
होता है।

* प्रधानमंत्री तथा सभी मंत्रियों के लिए संसद का सदस्य होना अनिवार्य है। संसद का सदस्य हुए बिना यदि कोई व्यक्ति मंत्री या प्रधानमंत्री बन जाता है।

* प्रधानमंत्री तथा सभी मंत्रियों के लिए संसद का सदस्य होना अनिवार्य है। संसद का सदस्य हुए बिना यदि कोई व्यक्ति मंत्री या प्रधानमंत्री बन जाता है तो उसे छह महीने के भीतर ही ससंद (किसी भी सदन) के सदस्य के रूप में निर्वाचित होना पड़ता है ।

* मंत्रिपरिषद लोकसभा के प्रति सामूहिक रूप से उत्तरदायी है। इसका अर्थ है 'जो सरकार लोकसभा में विश्वास खो देती है उसे त्यागपत्र देना पड़ता है। यह सिद्धांत मंत्रिमंडल की एकजुटता के सिद्धांत पर आधारित है। इसकी भावना यह है कि यदि किसी एक मंत्री के विरूद्ध भी अविश्वास प्रस्ताव पारित हो जाए तो संपूर्ण मंत्रिपरिषद को त्यागपत्र देना पड़ता है।

 

* प्रधानमंत्री का स्थान, सरकार में सर्वोपरि है: मंत्रिपरिषद तभी अस्तित्व में आती है जब प्रधानमंत्री अपने पद की शपथ ग्रहण कर लेता है। प्रधानमंत्री की मृत्यु या त्यागपत् से पूरी मंत्रिपरिषद भंग हो जाती है।

 

राज्यों में कार्यपालिका का स्वरूप:-

* राज्यों में एक राज्यपाल होता है जो (केन्द्रीय सरकार की सलाह पर) राष्ट्रपति द्वारा नियुक्त होता है।

* मुख्यमंत्री विधान सभा में बहुमत दल का नेता होता है।

* बाकी सभी सिद्धांत वही है जो केन्द्र सरकार में संसदीय व्यवस्था होने के कारण लागू है।

 

स्थायी कार्यपालिका (नौकरशाही):-


* कार्यपालिका में मुख्यतः राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री, मंत्रिगण और नौकरशाही या प्रशासनिक मशीनरी का एक विशाल संगठन, सम्मिलित होता है। इसे नागरिक सेवा भी कहते है।

* 'नौकरशाही में सरकार के स्थाई कर्मचारी के रूप में कार्य करने वाले प्रशिक्षित और प्रवीण अधिकारी नीतियों को बनाने में तथा उन्हें लागू करने में मंत्रियों का सहयोग करते हैं|

* नौकरशाही राजनीतिक रूप से तटस्थ है। प्रजातंत्र में सरकारे आती जाती रहती है ऐसी स्थिति में, प्रशासनिक मशीनरी की यह जिम्मेदारी है कि वह नई सरकारों को अपनी
नीतियां बनाने में और उन्हें लागू करने में मदद करें।