polity theory notes chapter 3

Posted on December 15th, 2020 | Create PDF File

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चुनाव और प्रतिनिधि

 

चुनावः-

- लोकतांत्रिक व्यवस्था में जनता जिस विधि द्वारा अपने प्रतिनिधि चुनती है उसे चुनाव (निर्वाचन) कहते हैं।

 

प्रतिनिधिः-

- लोकतांत्रिक व्यवस्था में जनता जिस व्यक्ति का चुनाव करके सरकार में (संसद / विधानसभा) में भेजती है, उस व्यक्ति को प्रतिनिधि कहते हैं।

 

प्रत्यक्ष लोकतंत्र-


- प्राचीन यूनानी नगर राज्यों में कम जनसंख्या होने के कारण जनता एक स्थान पर प्रत्यक्ष रूप से एकत्रित होकर हाथ उठाकर रोजमर्रा दैनिक) के फैसले तथा सरकार चलाने में भाग लेते थे जिसे प्रत्यक्ष लोकतंत्र कहते हैं।

 

अप्रत्यक्ष लोकतंत्र -

- आधुनिक विशाल जनसंख्या वाले राष्ट्र में प्रत्यक्ष लोकतंत्र व्यवहारिक नही रहा,आम जनता प्रत्यक्ष रूप से एक स्थानपर एकत्रित होकर सीधे सरकार की कार्यवाही में भाग नहीं ले सकती है। इसलिए अपने प्रतिनिधियों को भेजकर सरकार में अपनी उपस्थिति दर्ज करवाई जाती है। इसे अप्रत्यक्ष लोकतंत्र कहते है।

 

चुनाव और लोकतंत्र-


- चुनाव और लोकतंत्र एक सिक्के के दो पहलू हैं। लोकतंत्र चुनाव के बिना अधूरा है तो चुनाव लोकतंत्र के बिना महत्वहीन है।

 

भारत में चुनाव व्यवस्था-

- भारतीय संविधान मे चुनावों के लिए कुछ मूलभूत नियम कानून एवं स्वायत्त संस्था के गठन के नियमों को सूचीबद्ध कर रखा है। विस्तृत नियम कानून,परिवर्तन ,संशोधन का काम विधायिका को दे रखा है।

 

- चुनाव व्यवस्था में चुनाव आयोग का गठन, उसकी कार्यप्रणाली, कौन चुनाव लड़ सकता है, कौन मत दे सकता है, कौन चुनाव की देखरेख करेगा, मतगणना कैसे होगी आदि सभी स्पष्ट रूप से लिखा है।

 

चुनाव आयोगः-

 

- भारत में स्वतंत्र एवं निष्पक्ष चुनाव कराने के लिए एक तीन सदस्यीय  चुनाव आयोग है, जिसमें एक मुख्य चुनाव आयुक्त तथा दो अन्य चुनाव आयुक्त होते है। देश के प्रथम चुनाव आयुक्त श्री सुकुमार सेन थे।

 

सर्वाधिक वोट से जीत की प्रणालीः-

- इस प्रणाली को भारत में अपनाया गया है। इसमें सबसे अधिक वोट पाने वाला विजय होगा चाहे जीत का अन्तर एक वोट ही हो।

 

समानुपातिक प्रतिनिधित्व प्रणालीः-

 

इस प्रणाली में प्रत्येक पार्टी चुनावों से पहले अपने प्रत्याशियों की एक प्राथमिकता सूची जारी कर देती है, और अपने उतने ही प्रत्याशियों को उस प्राथमिकता सूची से चुन लेती है, जितनी सीटों का कोटा उसे दिया जाता है। चुनावों की इस व्यवस्था को समानुपातिक प्रतिनिधित्व प्रणाली कहते है।

 

* समानुपातिक प्रतिनिधित्व प्रणाली के दो प्रकार होते हैं। जैसे- इजराइल व नीदरलैंड में पूरे देश को एक निर्वाचन क्षेत्र माना जाता है और प्रत्येक पार्टी को राष्ट्रीय चुनावों में प्राप्त वोटों के अनुपात में सीट दे दी जाती है।

 

* दूसरा सरकार अर्जेटीना व पुर्तगाल में जहाँ पूरे देश को बहु-सदस्ययी निर्वाचन क्षेत्रों मेँ बांट दिया जाता है।

 

भारत में सर्वाधिक वोट से जीत की प्रणाली क्‍यों स्वीकार की गई ?

 

* यह प्रणाली सरल है

* चुनाव के समय मतदाताओं के पास स्पष्ट विकल्प होता है।

* देश में मतदाताओं को दलों की जगह उम्मीदवारों के चुनाव का अवसर मिलता है जिनको वो व्यक्तिगत रूप से जानते है।

 

निर्वाचन क्षेत्रों का आरक्षण:-

* भारतीय संविधान द्वारा सभी वर्गो को संसद में समान प्रतिनिधित्व देने के प्रयास में आरक्षित निर्वाचन क्षेत्रों की व्यवस्था को अपनाया गया है। इस व्यवस्था के अंतर्गत, किसी निर्वाचन क्षेत्र में सभी मतदाता वोट तो डालेंगे लेकिन प्रत्याशी केवल उसी समुदाय या सामाजिक वर्ग का होगा जिसके लिए सीट आरक्षित है।

 

सार्वभौमिक व्यस्क मताधिकार-

किसी जाति, धर्म, लिंग एवं क्षेत्र के भेदभाव के बिना सभी 18 वर्ष से ऊपर आयु वर्ग के नागरिकों को मत देने का अधिकार।

 

चुनाव सुधार :-

 

* चुनाव की कोई प्रणाली कभी आदर्श नहीं हो सकती। उसमें अनेक कमियाँ और सीमाएं होती है। लोकतांत्रिक समाज को, अपने चुनावों को और अधिक स्वतंत्र और निष्पक्ष बनाने के तरीकों को बराबर खोजते रहना पड़ता है, जिसे चुनाव सुधार कहते है। जैसे भारत में आपराधिक प्रवृत्ति के लोगों को चुनाव लड़ने पर प्रतिबंध या फिर चुनाव लड़ने के लिए कुछ अनिवार्य शिक्षा योग्यता निर्धारित करना।

 

चुनाव प्रणाली के दोष-

 

* धन का अधिक व्यय (खर्च)

* वोटों का खरीदा जाना

* झूठा प्रचार

* साम्प्रदायिकता

* हिंसा, जाति, धर्म के नाम पर वोट

* अपराधियों का प्रवेश