राष्ट्रीय नागरिकता रजिस्टर- असम (NRC-ASSAM)

Posted on September 17th, 2018 | Create PDF File

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किसी भी देश के लिए उसके अपने नागरिक सबसे अधिक महत्त्व रखते हैं। नागरिक, राष्ट्र की लघुतम जीवित इकाई होते हैं। देश की सभी सरकारी योजनाओं एवं सुविधाओं का लाभ सिर्फ उस देश के वैध नागरिकों को ही मिलता है। बात जब लोकतांत्रिक देश की हो, तो नागरिकों के अधिकारों में और भी अधिक अभिवृध्दि हो जाती है। भारत विश्व का सबसे बड़ा लोकतंत्र है। यह अपनी समावेशी संस्कृति और बहुलता के लिए जाना जाता है। विश्व के अनेक देशों से शरणार्थी आ- आकर यहां बसते रहे, और कालांतर में यहां के एक अभिन्न अंग बन गये। लेकिन आजादी के बाद सीमावर्ती राज्यो में काफी मात्रा में अवैध घुसपैठ के जरिये भी लोग आये। ये लोग पश्चिमी तथा पूर्वी पाकिस्तान ( बांग्लादेश) से बहुत अधिक मात्रा में आये। जिससे स्थानीय लोगों के रहन- सहन और संसाधनों के बंटवारे पर काफी नकारात्मक असर पड़ा। घुसपैठ के मामले में तो अज्ञात लोगों द्वारा राष्ट्र की आंतरिक सुरक्षा को खतरा तथा ग्रहयुध्द जैसी परिस्थितियां तक बन जाती हैं। साथ ही किसी भी देश के लिए अपने समस्त नागरिकों की सुरक्षा, सम्मान, स्वतंत्रता तथा हितों की रक्षा करने के लिए उनकी ठीक- ठीक संख्या की जानकारी होना अनिवार्य होता है। बिना सटीक आंकड़ों के न तो कोई योजना कारगर हो सकती है, और न ही विकास के पथ पर अग्रसर हुआ जा सकता है। इन्हीं हितों को ध्यान में रखते हुए, हमारे संविधान में नागरिकों की सही सूचना सरकार तक उपलब्ध करवाने का प्रावधान राष्ट्रीय नागरिकता रजिस्टर के रूप में किया गया है।

 

राष्ट्रीय नागरिकता रजिस्टर एक प्रकार का सरकारी केन्द्रीय दस्तावेज है, जिसे 1951 में तैयार किया गया था। नागरिकता कानून, 1955 के 14 (1) में प्रावधान किया गया है कि केन्द्र सरकार राष्ट्रीय नागरिकता रजिस्टर तैयार करेगी, जिसमें सरकार को प्रत्येक व्यक्ति से सूचना प्राप्त करने का अधिकार होगा। इसी नागरिकता कानून, 1955 में हुए संशोधन (2004) के अनुसार प्रत्येक भारतीय नागरिक को राष्ट्रीय नागरिकता रजिस्टर में नाम दर्ज करवाना अनिवार्य होगा। अब तक देश में 7 बार राष्ट्रीय नागरिकता रजिस्टर को लागू किये जाने की असफल कोशिशें की जा चुकीं हैं। हर बार यह राजनैतिक तुष्टीकरण और वोटबैंक के स्वार्थों के चलते कोई भी सरकार इसे लागू करवाने का साहस नही जुटा सकी है।

 

वर्ष 2013 में सुप्रीम कोर्ट के दखल के बाद इसे असम राज्य में लागू किए जाने की प्रक्रिया शुरु हुई थी। अभा हाल ही में 30 जुलाई 2018 को राष्ट्रीय नागरिकता रजिस्टर, असम ने अपना अंतिम मसौदा पेश किया है, जिसमें 40 लाख लोगों को अवैध प्रवासी माना गया है। इस प्रक्रिया में 3.29 करोड़ लोगों नें  अपना पंजीकरण दर्ज करवाया था, जिसमें से 2.9 करोड़ आवेदन ही वैध पाये गये हैं। शेष 40 लाख आवेदन अवैध या प्रवासियों के पाये गये हैं। केन्द्र सरकार का कहना है कि अभी यह सिर्फ एक मसौदा भर है। जिन लोगों के इस सूची में नाम शामिल नहीं हैं, उन्हे अपनी वैधता सिध्द करने का एक और मौका दिया जायेगा। इन 40 लाख अवैध लोगों में से 2.48 लाख लोग डी- वोटर की श्रेणी में आते हैं तथा 10 लाख के आवेदन पुनर्समीक्षा के लिए स्वीकृत किए जा चुके हैं। दरअसल  डी- वोटर वे लोग होते हैं जिनकी नागरिकता संशय के घेरे में होती है। भारतीय संविधान में राष्ट्रीय नागरिकता रजिस्टर में नाम शामिल न होने वाले लोगों को फारनर्स एक्ट, 1946 तथा फारनर्स ट्रिब्यूनल आर्डिनेंस, 1964  के अनुसार ट्रीट किये जाने का प्रावधान है।

 

दरअसल भारत के सीमावर्ती राज्यों में शुरु से ही अवैध घुसपैठ के मामले सामने आते रहे हैं। 70 के दशक में भरातीय  पूर्वी सीमा पर य़ह घुसपैठ और अधिक बढ़ गई थी। बांग्लादेश के गठन के समय 1971 में इनकी तादत सबसे ज्यादा थी । जिसकी मार जिससे पश्चिमी बंगाल, असम, त्रिपुरा, मणिपुर आदि सीमाई राज्यों को झेलनी पड़ी। बांग्लादेश से आये इन अवैध प्रवासियों के विरुध्द ऑल आसाम स्टूडेंट्स यूनियन (AASU) नें 6 वर्ष तक ( वर्ष 1979 से लेकर 1985 तक) आंदोलन चलाया। जिसकी अंतिम परिणिति राजीव गांधी जी के प्रधानमत्रित्व काल में असम गण परिषद् और भारत सरकार के बीच समझौते से हुई थी। इस समझौते के अनुसार 24 मार्च 1971 के बाद असम में आये बांग्लादेशी प्रवासियों को अवैध माना जायेगा। इसी समझौते का क्रियान्वयन वर्ष 2013 में सुप्रीम कोर्ट के दखल से शुरु हुआ। जिसका अंतिम मसौदा अभी हाल ही में पेश किया गया है। इस मसौदे के अनुसार असम के 40 लाख नागरिक अवैध पाये गये हैं। ग्रह मंत्रालय भारत सरकार का कहना है कि अभी यह कोई अंतिम रिपोर्ट नहीं है। जिन लोगों को राष्ट्रीय नागरिकता सूची में जगह नहीं मिली है, उन्हें अपनी वैधता साबित करने के पर्याप्त अवसर दिए जायेंगे।

 

राष्ट्रीय नागरिकता सूची, असम के लागू हो जाने के बाद वहां कई चीजें प्रभावित होने की संभावना है। जिनमें से सबसे प्रमुख है- असम की जनसंख्या के आंकड़े। कई स्थानीय राजनैतिक दल अपने वोटबैंक के रूप में इन प्रवासियों को देखते आये हैं। यदि इन्हें असम से वापस बांग्लादेश में भेजा गया, जैसा कि कहा जा रहा है, तो वहां के राजनैतिक समीकरण भी बदलेंगे। साथ ही जनसंख्या कम हो जाने से संशाधनों के बंटवारे में भी सकारात्मक परिवर्तन आयेंगे। जिससे असम की प्रगति और अधिक गति से सुनिश्चित हो सकेगी। इसके अतिरिक्त ज्यादातर प्रवासी एक विशेष धर्म से ताल्लुक रखते हैं, जिस कारणों से आंतरिक अशांति और दंगे भी भड़कने का भी पूर्वानुमान लगाया जा रहा है। पूर्वोत्तर राज्यों में ज्यादातर अलगाववादी आंदोलन इन्हीं अवैध प्रवासियों द्वारा संचालित किए जाते रहे हैं। इसलिए एनआरसी के लागू होने के बाद असम की अलगाववादी ताकतों पर भी इसका नकारात्मक असर पड़ेगा। साथ ही भारत – बाग्लादेश के रिश्तों में तल्खी आने के आसार हैं।

 

यदि इन सभी संभावित परिणामों को ध्यान में रखा जाये, तो राष्ट्रीय नागरिकता सूची राष्ट्रहित में एक सकारात्मक कदम प्रतीत होती है। अव्यवस्था, हिंसा और दंगों जैसी अराजक घटनाओं से उचित सुरक्षा मानदण्ड अपनाकर निपटा जा सकता है। साथ ही बांग्लादेश से सीमा-विवाद की तरह ही इस विषय पर भी कूटनीतिक स्तर पर समझौता किया जा सकता है। वैसे भी देश जनसंख्या आधिक्य के दबाब को महसूस कर रहा है, ऐसे में यदि बाहर से और अधिक घुसपैठियों के प्रवेश तथा उनके कानूनी निस्तारण का उचित बंदोबस्त नहीं किया गया तो यह समस्या और विराट् हो सकती है। राष्ट्रीय नागरिकता सूची  के विषय में शीघ्र ही अखिल भारतीय राजनैतिक स्वीकृति बनाकर इसे सारे देश में लागू किये जाने की आवश्यकता है। ताकि अवैध प्रवासियों के बोझ से देश को मुक्ति मिल सके तथा देश की आंतरिक सुरक्षा एवं सुगठित विकास सुनिश्चित हो सके ।