हालिया दिनों में आये शीर्ष अदालत के शीर्ष फैसले-1 (आधार प्रकरण-Aadhar Verdict)

Posted on September 29th, 2018 | Create PDF File

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बुधवार, 26 सितंबर, 2018 को सुप्रीम कोर्ट ने मई 2018 में आधार और इससे जुड़ी 2016 के कानून की संवैधानिक वैधता को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर 38 दिन तक चली सुनवाई के बाद सुप्रीम कोर्ट की एक संविधान बेंच के नेतृत्व में भारत के मुख्य न्यायाधीश दीपक मिश्रा ने कुछ शर्तों के साथ आधार की वैधता को बरकरार रखा है। पीठ ने उच्च न्यायालय के पूर्व न्यायाधीश के एस पुत्तस्वामी की याचिका सहित 31 याचिकाओं पर सुनवाई की थी। सुप्रीम कोर्ट ने माना है कि आधार आम आदमी की पहचान है। कोर्ट ने सुनवाई के दौरान कहा कि आधार से निजता हनन के सुबूत नहीं मिले हैं। इसमें बायोमेट्रिक्स के कारण आधार को डुप्लिकेट करने की कोई संभावना नहीं है। यह केवल न्यूनतम जनसांख्यिकीय और बॉयोमीट्रिक विवरण को एकत्र करता है। कोर्ट ने यह भी कहा कि आधार "एक असाधारण तरीके से अद्वितीय है।" बेंच ने आधार अधिनियम की धारा 57 को निरस्त कर दिया, जो निजी संस्थाओं को सत्यापन उद्देश्यों के लिए आधार का उपयोग करने की अनुमति देती थी। साथ ही धारा 33 (2) जो यूआईडीएआई को राष्ट्रीय सुरक्षा के हित में विशेष रूप से अधिकृत अधिकारियों के साथ डेटा साझा करने की अनुमति देने वाली धारा को भी निरस्त किया गया है। सीबीएसई, एनईईटी और यूजीसी द्वारा आधार आवश्यकता को समाप्त कर दिया गया है, लेकिन आधार-पैन संबंध को बरकरार रखा गया है। अब मोबाइल फोन नंबर और बैंक खातों के साथ आधार की आवश्यकता नहीं है। स्कूलों द्वारा भी छात्रों के प्रवेश के लिए आधार पर जोर नहीं दिया जा सकता है। सरकार की लाभकारी योजनाओं और सब्सिडी का लाभ पाने के लिये आधार को अनिवार्य रखा गया है।परंतु किसी भी बालक का आधार नहीं होने के कारण उसे किसी भी सरकारी योजना का लाभ देने से मना नहीं किया जा सकता । इसके अलावा सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि राशन के लिये आधार अनिवार्य नहीं है कोई भी वैकल्पिक पहचान पत्र दिखाकर राशन लिया जा सकता है। अगर किसी व्यक्ति का अंगूठा मेल नहीं खा रहा है, या फिर नेटवर्क खराब स्थिति में है, तो लाभार्थी दूसरे पहचान पत्र भी दिखा सकता है। राशन देने वाले अब उन्हें राशन देने से मना नही कर सकते। 

 

जैसा कि मालूम है कि आधार कहां जरूरी है और कहां गैर जरूरी? यह लंबे समय से बहस का मुद्दा रहा है। आधार के खिलाफ याचिका दायर करने वाले समूहों की एक बड़ी चिंता निजता के हनन को लेकर थी। आधार एक्ट की धारा 57, 2(d) के तहत अभी तक किसी बैंक में खाता खुलवाने या सिम लेने तक के लिए आधार कार्ड अनिवार्य हो गया था। अब सुप्रीम कोर्ट ने आधार एक्ट की इस धारा को खत्म कर दिया है। सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि कोई भी कंपनी 6 महीने से लंबे समय तक के लिए बायोमीट्रिक डेटा संभाल कर नहीं रख सकती।  आधार का विरोध करने वालों का कहना था कि सोशल स्कीमों के लिए आधार अनिवार्य होने से कई लोगों को इन स्कीमों का फायदा नहीं मिल पाता है। ऐसे में लगातार यह मांग हो रही थी कि सोशल स्कीमों के लिए आधार की अनिवार्यता खत्म कर दी जाए। हालांकि इस मामले में सुप्रीम कोर्ट ने साफ कर दिया कि सोशल स्कीम के लिए आधार अनिवार्य बनाने से बिचौलियों की छुट्टी हो गई है। साथ ही स्कीमों का फायदा सही लोगों तक पहुंच रहा है। आधार एक्ट के तहत सरकार ने इनकम टैक्स में धारा 139AA जोड़ा था। सुप्रीम कोर्ट ने इसे बरकरार रखा है। इसके तहत पैन कार्ड आवेदन के लिए, इनकम टैक्स रिटर्न फाइल करने के लिए आधार जरूरी होगा। आधार एक्ट में बदलाव से आम आदमी को कुछ अधिकार भी मिले है। पहले डेटा चोरी होने की सूरत में सिर्फ UIDAI ही केस कर सकता था। लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने अब ये अधिकार आम आदमी को भी दिया है। यानी अब अगर किसी एक शख्स का डेटा चोरी होता है तो वह भी शिकायत कर सकता है।दरअसल भारतीय विशिष्ट पहचान प्राधिकरण (यूआईडीएआई) एक सांविधिक प्रा‍धिकरण है, जिसकी स्थापना भारत सरकार द्वारा आधार (वित्तीय और अन्य सब्सिडी, लाभ और सेवाओं के लक्षित वितरण) अधिनियम, 2016 (“आधार अधिनियम, 2016”) के प्रावधानों के अंतर्गत, इलेक्ट्रॉनिक्स एवं सूचना प्रौद्योगिकी मंत्रालय (एमईआईटीवाई) के तहत् दिनांक 12 जुलाई, 2016 को की गई। केंद्र सरकार की ओर से भारतीय विशिष्ट पहचान प्राधिकरण (Unique Identification Authority of India-UIDAI) द्वारा दिये जाने वाले आधार कार्ड की शुरुआत प्रत्येक भारतीय नागरिक को एक विशेष पहचान संख्या देने के लिये की गई थी। इस योजना के तहत भारत सरकार की ओर से एक ऐसा पहचान-पत्र जारी किया जाता है जिसमें 12 अंकों की एक विशिष्ट संख्या होती है। इसमें संबंधित व्यक्ति की बायोमेट्रिक पहचान के साथ-साथ उसका नाम, पता, आयु, जन्म तिथि, उसके फिंगर-प्रिंट और आँखों की स्कैनिंग तक शामिल होती है। यूआईडीएआई की स्थापना भारत के सभी निवा‍सियों को “आधार” नाम से एक विशिष्ट पहचान संख्या (यूआईडी) प्रदान करने हेतु की गई थी ताकि इसके द्वारा (क) दोहरी और फर्जी पहचान समाप्त की जा सके और (ख) उसे आसानी से एवं किफायती लागत में सत्यापित और प्रमाणित किया जा सके। प्रथम यूआईडी नम्बर महाराष्ट्र के नन्दूरबार की निवासी रंजना सोनवाने को 29 सितम्बर 2010 को जारी किया गया था।