हालिया दिनों में आये शीर्ष अदालत के शीर्ष फैसले-2 (पदोन्नति में आरक्षण-Reservation in Promotion)
Posted on September 29th, 2018
हाल ही में सुप्रीम कोर्ट की पांच सदस्यीय संवैधानिक पीठ ने बुधवार को एक महत्वपूर्ण फ़ैसले में नागराज मामले (2006) में दिए अपने फैसले को सही बताते हुए उस फैसले पर फिर से विचार की जरूरत को खारिज कर दिया है। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि सरकारी नौकरियों में प्रमोशन में एससी/एसटी आरक्षण के लिए प्रदेश सरकारों को कोई डेटा जमा करने या संबंधित जानकरी जुटाने की भी कोई जरूरत नहीं है। सरकारी नौकरियों में अवसर में बराबरी देने वाले प्रावधानों के अनुसार प्रमोशन में भी आरक्षण दिया जा सकता है। हालांकि शीर्ष अदालत ने केंद्र सरकार की इस अर्ज़ी को ठुकरा दिया कि नौकरियों में प्रमोशन के कोटे के लिए एससी-एसटी की कुल आबादी को ध्यान में रखा जाए।
यहां यह बताना भी ज़रूरी है कि एम नागराज के फैसले के 12 साल बाद भी सरकार एससी-एसटी वर्ग के अपर्याप्त प्रतिनिधित्व से संबंधित सरकारी आंकड़े आज तक अदालत के सामने पेश नहीं कर पाई है। इस वजह से इन वर्गों की प्रमोशन में आरक्षण की प्रक्रिया पर अघोषित रोक सी लग गई थी। अदालत ने बुधवार को आंकड़े संबंधित इन दिशानिर्देशों को न सिर्फ़ ख़ारिज किया बल्कि यह भी कहा कि नागराज निर्णय में दिए गए दिशानिर्देश 1992 के ऐतिहासिक इंदिरा साहनी निर्णय के ख़िलाफ़ जाते हैं। 1992 के इंदिरा साहनी निर्णय को मंडल कमीशन केस के नाम भी जाना जाता है। इसमें सुप्रीम कोर्ट की नौ जजों की बेंच ने संविधान सभा में दिए गए डॉ. आंबेडकर के वक्तव्य के आधार पर सामाजिक बराबरी और अवसरों की समानता को सर्वोपरि बताया था।शीर्ष अदालत ने 2006 के अपने फैसले में तय की गई उन दो शर्तों पर टिप्पणी नहीं की जो प्रमोशन में एससी-एसटी के प्रतिनिधित्व की पर्याप्तता और प्रशासनिक दक्षता को नकारात्मक तौर पर प्रभावित नहीं करने से जुड़े थे।
सुप्रीम कोर्ट के प्रमुख न्यायाधीश दीपक मिश्रा, जस्टिस कुरियन जोसेफ, जस्टिस आरएफ नरीमन, जस्टिस संजय किशन कौल और जस्टिस इंदू मल्होत्रा की अध्यक्षता वाली संविधान पीठ ने फैसला सुनाते हुए ये भी कहा कि यह मामला 7 जजों की बेंच को नहीं भेजा जाएगा। प्रमोशन में आरक्षण मामले में सुप्रीम कोर्ट ने नागराज जजमेंट में दी व्यवस्था को बैड इन लॉ कहा जिसमें आरक्षण से पहले पिछड़ेपन का डेटा सरकार से एकत्र करने को कहा गया था।
दरअसल वर्ष 2006 में नागराज से संबंधित वाद में सुप्रीम कोर्ट की पांच जजों की बेंच ने एससी-एसटी को प्रोन्नति में आरक्षण देने के एम नागराज के फैसले में 2006 में पाँच जजों ने संशोधित संवैधानिक प्रावधान अनुच्छेद 16(4)(ए), 16(4)(बी) और 335 को तो सही ठहराया था लेकिन कोर्ट ने कहा था कि एससी-एसटी को प्रोन्नति में आरक्षण देने से पहले सरकार को उनके पिछड़ेपन और अपर्याप्त प्रतिनिधित्व के आँकड़े जुटाने होंगे।
हालिया दिनों में आये शीर्ष अदालत के शीर्ष फैसले-2 (पदोन्नति में आरक्षण-Reservation in Promotion)
हाल ही में सुप्रीम कोर्ट की पांच सदस्यीय संवैधानिक पीठ ने बुधवार को एक महत्वपूर्ण फ़ैसले में नागराज मामले (2006) में दिए अपने फैसले को सही बताते हुए उस फैसले पर फिर से विचार की जरूरत को खारिज कर दिया है। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि सरकारी नौकरियों में प्रमोशन में एससी/एसटी आरक्षण के लिए प्रदेश सरकारों को कोई डेटा जमा करने या संबंधित जानकरी जुटाने की भी कोई जरूरत नहीं है। सरकारी नौकरियों में अवसर में बराबरी देने वाले प्रावधानों के अनुसार प्रमोशन में भी आरक्षण दिया जा सकता है। हालांकि शीर्ष अदालत ने केंद्र सरकार की इस अर्ज़ी को ठुकरा दिया कि नौकरियों में प्रमोशन के कोटे के लिए एससी-एसटी की कुल आबादी को ध्यान में रखा जाए।
यहां यह बताना भी ज़रूरी है कि एम नागराज के फैसले के 12 साल बाद भी सरकार एससी-एसटी वर्ग के अपर्याप्त प्रतिनिधित्व से संबंधित सरकारी आंकड़े आज तक अदालत के सामने पेश नहीं कर पाई है। इस वजह से इन वर्गों की प्रमोशन में आरक्षण की प्रक्रिया पर अघोषित रोक सी लग गई थी। अदालत ने बुधवार को आंकड़े संबंधित इन दिशानिर्देशों को न सिर्फ़ ख़ारिज किया बल्कि यह भी कहा कि नागराज निर्णय में दिए गए दिशानिर्देश 1992 के ऐतिहासिक इंदिरा साहनी निर्णय के ख़िलाफ़ जाते हैं। 1992 के इंदिरा साहनी निर्णय को मंडल कमीशन केस के नाम भी जाना जाता है। इसमें सुप्रीम कोर्ट की नौ जजों की बेंच ने संविधान सभा में दिए गए डॉ. आंबेडकर के वक्तव्य के आधार पर सामाजिक बराबरी और अवसरों की समानता को सर्वोपरि बताया था।शीर्ष अदालत ने 2006 के अपने फैसले में तय की गई उन दो शर्तों पर टिप्पणी नहीं की जो प्रमोशन में एससी-एसटी के प्रतिनिधित्व की पर्याप्तता और प्रशासनिक दक्षता को नकारात्मक तौर पर प्रभावित नहीं करने से जुड़े थे।
सुप्रीम कोर्ट के प्रमुख न्यायाधीश दीपक मिश्रा, जस्टिस कुरियन जोसेफ, जस्टिस आरएफ नरीमन, जस्टिस संजय किशन कौल और जस्टिस इंदू मल्होत्रा की अध्यक्षता वाली संविधान पीठ ने फैसला सुनाते हुए ये भी कहा कि यह मामला 7 जजों की बेंच को नहीं भेजा जाएगा। प्रमोशन में आरक्षण मामले में सुप्रीम कोर्ट ने नागराज जजमेंट में दी व्यवस्था को बैड इन लॉ कहा जिसमें आरक्षण से पहले पिछड़ेपन का डेटा सरकार से एकत्र करने को कहा गया था।
दरअसल वर्ष 2006 में नागराज से संबंधित वाद में सुप्रीम कोर्ट की पांच जजों की बेंच ने एससी-एसटी को प्रोन्नति में आरक्षण देने के एम नागराज के फैसले में 2006 में पाँच जजों ने संशोधित संवैधानिक प्रावधान अनुच्छेद 16(4)(ए), 16(4)(बी) और 335 को तो सही ठहराया था लेकिन कोर्ट ने कहा था कि एससी-एसटी को प्रोन्नति में आरक्षण देने से पहले सरकार को उनके पिछड़ेपन और अपर्याप्त प्रतिनिधित्व के आँकड़े जुटाने होंगे।