कला एवं संस्कृति समसामयिकी 1(6-Feb-2023)इरुला जनजाति(Irula Tribe)
Posted on February 7th, 2023 | Create PDF File
हाल ही में इरुला समुदाय के दो लोगों श्री वडिवेल गोपाल तथा श्री मासी सदाइयां को पद्मश्री पुरस्कार से सम्मानित किया गया, जिसने इरुला स्नेक कैचर्स औद्योगिक सहकारी समिति (Industrial Cooperative Society) पर ध्यान केंद्रित किया है।
यह औद्योगिक सहकारी समिति देश में प्रमुख साँप विष (एएसवी) उत्पादकों में से एक है।
विशेषज्ञ साँप पकड़ने वाले श्री गोपाल और श्री सदाइयां इस सहकारी समिति का हिस्सा रहे हैं।
इरुला विशेष रूप से कमज़ोर जनजातीय समूह (PVTG) हैं, जो भारत के सबसे पुराने स्वदेशी समुदायों में से एक है।
इरुला जनजाति तमिलनाडु के उत्तरी ज़िलों तिरुवलुर (बड़ी संख्या में), चेंगलपट्टू, कांचीपुरम, तिरुवान्नामलाई तथा केरल के वायनाड, इद्दुक्की, पलक्कड़ आदि ज़िलों में बड़ी संख्या में निवास करती है।
इस जनजातीय समूह की उत्पत्ति दक्षिण-पूर्वी एशिया और ऑस्ट्रेलिया के जातीय समूहों से हुई है।
ये इरुला भाषा बोलते हैं जो कन्नड़ और तमिल की तरह द्रविड़ भाषा से संबंधित है।
इरुला जनजाति के लोग पारंपरिक रूप से साँप और चूहे पकड़ते हैं लेकिन ये मज़दूरी भी करते हैं।
अनुभव एवं सहज ज्ञान से आदिवासी लोग यह जानते हैं कि साँप कहाँ छिपते हैं।
वे साँपों के निशान, गंध और मल के आधार पर भी उनका पता लगा सकते हैं।