सामाजिक समसामियिकी 1 (26-Nov-2020)
विलवणीकरण संयंत्र
(Desalination Plant)

Posted on November 26th, 2020 | Create PDF File

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महाराष्ट्र ने मुंबई में एक विलवणीकरण संयंत्र (Desalination Plants) स्थापित करने की घोषणा की है।विलवणीकरण संयंत्र प्रतिदिन 200 मिलियन लीटर पानी (MLD) को संसाधित करेगा और मई और जून के महीनों में मुंबई में होने वाली पानी की कमी को दूर करने में मदद करेगा।

 

विलवणीकरण संयंत्र खारे पानी को पीने योग्य पानी में परिवर्तित कर देता है।पानी को लवणमुक्त करने की प्रक्रिया विलवणीकरण कहलाती है जो विभिन्न मानव उपयोगों की गुणवत्ता (लवणता) की आवश्यकताओं को पूरा करने वाले पानी का उत्पादन करता है।

 

इस प्रक्रिया में सबसे अधिक उपयोग रिवर्स ऑस्मोसिस (Reverse Osmosis-RO) तकनीक का किया जाता है।अर्द्ध-पारगम्य झिल्ली के माध्यम से उच्च-विलेय सांद्रता के क्षेत्र से कम-विलेय सांद्रता वाले क्षेत्र में परिवर्तित करने के लिये बाह्य दाब लगाया जाता है।झिल्ली में मौजूद सूक्ष्म छिद्र जल के अणुओं को अंदर जाने की अनुमति देते हैं, लेकिन दूसरी तरफ से साफ जल छोड़ते हुए नमक और अधिकांश अन्य अशुद्धियों को पीछे छोड़ देते हैं।

 

ये संयंत्र अधिकतर उन क्षेत्रों में स्थापित किये जाते हैं जिनकी पहुँच समुद्र के पानी तक है।यह उन क्षेत्रों में पीने का पानी उपलब्ध करा सकता है जहाँ पीने योग्य पानी की कोई प्राकृतिक आपूर्ति नहीं है।चूँकि यह आमतौर पर जल गुणवत्ता के सभी मानकों को पूरा करता है या इसकी गुणवत्ता निर्धारित मानकों से अधिक होती है इसलिये विलवणीकरण संयंत्र अतिशोषित जल संसाधन वाले क्षेत्रों से प्राप्त किये जाने वाले मृदु जल की आपूर्ति पर पड़ने वाले दबाव को कम भी कर सकते हैं, जिनका संरक्षण आवश्यक है।

 


विलवणीकरण संयंत्रों के निर्माण और संचालन पर काफी अधिक खर्च आता है क्योंकि संयंत्रों से समुद्री पानी को स्वच्छ बनाने की प्रक्रिया में ऊर्जा की अधिक खपत होती है।विलवणीकरण में पानी के उत्पादन की कुल लागत का एक-तिहाई ऊर्जा खर्च होती है।क्योंकि ऊर्जा कुल लागत का एक बड़ा हिस्सा है इसलिये ऊर्जा की कीमत में बदलाव से लागत भी बहुत प्रभावित होती है।पर्यावरणीय प्रभाव जल विलवणीकरण संयंत्रों के लिये एक और नुकसान है। पानी से हटाए गए नमक का निपटान एक प्रमुख मुद्दा है।खारे पानी के रूप में जाना जाने वाला यह निर्वहन लवणता में परिवर्तन कर सकता है और निपटान स्थल पर पानी में ऑक्सीजन (हाइपोक्सिया) की मात्रा को कम कर सकता है।इसके अलावा अलवणीकरण प्रक्रिया क्लोरीन, कार्बन डाइऑक्साइड, हाइड्रोक्लोरिक एसिड और एंटी-स्केलेंट्स सहित कई रसायनों का उपयोग या उत्पादन करती है जो उच्च सांद्रता में हानिकारक हो सकते हैं।

 


पर्यावरणीय समस्या को आर्थिक अवसर में परिवर्तित किया जा सकता है:खारे पानी में यूरेनियम, स्ट्रोंटियम के साथ-साथ सोडियम और मैग्नीशियम जैसे बहुमूल्य तत्त्व भी हो सकते हैं जिनका खनन किया जा सकता है।

यह काफी हद तक मध्य पूर्व के देशों तक सीमित है और हाल ही में संयुक्त राज्य अमेरिका और ऑस्ट्रेलिया के कुछ हिस्सों में इसका उपयोग किया जाने लगा है।भारत में तमिलनाडु इस तकनीक का उपयोग करने में अग्रणी रहा है, वर्ष 2010 में चेन्नई के मिंजूर और वर्ष 2013 में दक्षिण चेन्नई के निम्मेली में समुद्र किनारे दो विलवणीकरण संयंत्र लगाए गए।गुजरात और आंध्र प्रदेश राज्य ने इन संयंत्रों का प्रस्ताव दिया है।


विलवणीकरण तकनीकों को और अधिक किफायती बनाने की आवश्यकता है, अर्थात् सतत् विकास लक्ष्य-6 (सभी के लिये स्वच्छता और पानी के सतत् प्रबंधन की उपलब्धता सुनिश्चित करना) को संबोधित करने के लिये विलवणीकरण की व्यवहार्यता में वृद्धि करना।विलवणीकरण योजनाओं की स्थिरता का समर्थन करने के लिये नवीन वित्तीय तंत्रों के साथ कम पर्यावरणीय प्रभावों और आर्थिक लागतों के लिये तकनीकी शोधन की आवश्यकता होगी।