भूगोल समसामियिकी 1 (25-Nov-2020)^विश्व मौसम विज्ञान संगठन - डब्लूएमओ^ (World Meteorological Organization - WMO)
Posted on November 25th, 2020
विश्व मौसम विज्ञान संगठन(World Meteorological Organization -WMO) के वार्षिक रिपोर्ट में कहा गया है कि कोविड-19 महामारी के कारण वैश्विक स्तर पर कार्बन डाईआक्साइड(CO2) के वायुमंडलीय सांद्रता में निरंतर वृद्धि पर बहुत कम प्रभाव पड़ा है। उपर्युक्त संदर्भ विवरण डब्ल्यूएमओ के वार्षिक ग्रीनहाउस गैस बुलेटिन में प्रकाशित किए गए हैं।
विश्व मौसम विज्ञान संगठन (डब्ल्यूएमओ) के द्वारा वार्षिक ग्रीनहाउस गैस बुलेटिन(WMO's annual greenhouse gas bulletin) में प्रकाशित किया जाता हैं। यह बुलेटिन वायुमंडल में ग्लोबल वार्मिंग गैसों की सांद्रता(concentrations of global warming gases) पर प्रकाश डालता है। इस वर्ष प्रकाशित हुई इस बुलेटिन की मुख्य बाते निम्न है-
कोविड-19 महामारी के कारण इस साल कार्बन उत्सर्जन(carbon emissions) में नाटकीय रूप से गिरावट आई है, क्योंकि परिवहन और उद्योग में भारी कटौती हुई है। हालाँकि विश्व मौसम विज्ञान संगठन (WMO) के वैज्ञानिकों का कहना है कि इससे वैश्विक स्तर पर कार्बन(या कार्बन डाईआक्साइड) के वायुमंडलीय सांद्रता में निरंतर वृद्धि पर बहुत कम प्रभाव पड़ा है।कार्बन डाईआक्साइड(CO2) का वायुमंडल में स्तर भाग-प्रति मिलियन (parts per million -ppm) में मापा जाता है। विश्व मौसम विज्ञान संगठन (डब्ल्यूएमओ) के अनुसार, 2019 में इसका वैश्विक औसत 410.5 पीपीएम था जोकि 2018 की तुलना में 2.6 पीपीएम ज्यादा है।यह 2017 से 2018 की वृद्धि की तुलना में अधिक था और पिछले एक दशक में औसत से भी अधिक था।वर्ष 2020 में कोविड-19 महामारी के कारण ज़्यादातर देशों ने अपने-अपने यहाँ लॉकडाउन लगाया था। इसलिए इस वर्ष की शुरुआत में कार्बन उत्सर्जन में लगभग 17% की कमी आयी थी।
ग्रीनहाउस प्रभाव और अन्य कारणों से संपूर्ण विश्व में देखी जा रही ताप-वृद्धि को वैश्विक तापमान (Global Warming) कहा जाता है।लगातार बढ़ती औद्योगिक गतिविधियाँ, शहरीकरण, आधुनिक रहन-सहन, धुँआ उगलती चिमनियाँ, निरंतर बढ़ते वाहनों एवं ग्रीनहाउस गैसों के प्रभाव से पृथ्वी के औसत तापमान में जो निरंतर वृद्धि हो रही है, उससे संपूर्ण विश्व प्रभावित हो रहा है।कार्बन डाइआक्साइड (CO2) एक प्राथमिक हरितगृह गैस है, जो मानवीय क्रियाकलापों द्वारा उत्सर्जित होती है। कार्बन डाइआक्साइड वातावरण में प्राकृतिक रूप से पृथ्वी के कार्बन चक्र के रूप में मौजूद रहती है, यह ताप को अधिक मात्र में अवशोषित करती है साथ ही इस गैस की वैश्विक तापन में लगभग 60% भागीदारी है।
ग्लोबल वार्मिंग ने ग्लेशियरों को पिघलाकर पहाड़ों पर बर्फ के आवरण को कम किया है। इससे समुद्र के जल स्तर में वृद्धि और जल सुरक्षा जैसी चुनौतियां सामने आई हैं।ग्लोबल वार्मिंग के कारण बढ़ते तापमान का कृषि उत्पादन पर भी असर पड़ा है। जलवायु परिवर्तन के कारण फसल की पैदावार कम होने से खाद्यान्न समस्या उत्पन्न हो सकती है, साथ ही उर्वर भूमि निम्नीकरण जैसी समस्याएँ भी सामने आ सकती हैं।तापमान में वृद्धि के कारण वनस्पति पैटर्न में बदलाव ने कुछ पक्षी प्रजातियों को विलुप्त होने के लिये मजबूर कर दिया है। विशेषज्ञों के अनुसार, पृथ्वी की एक-चौथाई प्रजातियाँ वर्ष 2050 तक विलुप्त हो सकती हैं। वर्ष 2008 में ध्रुवीय भालू को उन जानवरों की सूची में जोड़ा गया था जो समुद्र के स्तर में वृद्धि के कारण विलुप्त हो सकते थे।ग्लोबल वार्मिंग न केवल तापमान में बदलाव, बल्कि मौसम के हर अन्य घटक जैसे वर्षा, आर्द्रता और हवा की गति शामिल है जिनके कारण विश्व स्तर पर कई चरम मौसमी घटनाएं हुई हैं, जैसे कि तूफान, हीट वेव या सूखा।वर्ष 2015-19 विश्व स्तर पर रिकॉर्ड सबसे गर्म वर्ष रहे हैं। उच्च तापमान ने 2019 में अमेजॅन की आग 2019-20 में ही ऑस्ट्रेलिया में लगी आग में योगदान दिया, जिससे भारी तबाही हुई।
विश्व मौसम विज्ञान संगठन(डबल्यूएमओ), एक अंतरसरकारी संगठन है।डब्ल्यूएमओ कन्वेंशन के अनुमोदन से मार्च 23, 1950 को स्थापित डब्लूएमओ, एक साल बाद मौसम विज्ञान (मौसम और जलवायु), जल विज्ञान और भू-भौतिकी विज्ञान के लिए संयुक्त राष्ट्र की विशेष एजेंसी बन गया।यह संगठन, पृथ्वी के वायुमंडल की परिस्थिति और व्यवहार, महासागरों के साथ इसके संबंध और मौसम के बारे में जानकारी देता है।विश्व मौसम विज्ञान संगठन(डबल्यूएमओ) का मुख्यालय जिनेवा, स्विट्ज़रलैंड में है।
भूगोल समसामियिकी 1 (25-Nov-2020)विश्व मौसम विज्ञान संगठन - डब्लूएमओ (World Meteorological Organization - WMO)
विश्व मौसम विज्ञान संगठन(World Meteorological Organization -WMO) के वार्षिक रिपोर्ट में कहा गया है कि कोविड-19 महामारी के कारण वैश्विक स्तर पर कार्बन डाईआक्साइड(CO2) के वायुमंडलीय सांद्रता में निरंतर वृद्धि पर बहुत कम प्रभाव पड़ा है। उपर्युक्त संदर्भ विवरण डब्ल्यूएमओ के वार्षिक ग्रीनहाउस गैस बुलेटिन में प्रकाशित किए गए हैं।
विश्व मौसम विज्ञान संगठन (डब्ल्यूएमओ) के द्वारा वार्षिक ग्रीनहाउस गैस बुलेटिन(WMO's annual greenhouse gas bulletin) में प्रकाशित किया जाता हैं। यह बुलेटिन वायुमंडल में ग्लोबल वार्मिंग गैसों की सांद्रता(concentrations of global warming gases) पर प्रकाश डालता है। इस वर्ष प्रकाशित हुई इस बुलेटिन की मुख्य बाते निम्न है-
कोविड-19 महामारी के कारण इस साल कार्बन उत्सर्जन(carbon emissions) में नाटकीय रूप से गिरावट आई है, क्योंकि परिवहन और उद्योग में भारी कटौती हुई है। हालाँकि विश्व मौसम विज्ञान संगठन (WMO) के वैज्ञानिकों का कहना है कि इससे वैश्विक स्तर पर कार्बन(या कार्बन डाईआक्साइड) के वायुमंडलीय सांद्रता में निरंतर वृद्धि पर बहुत कम प्रभाव पड़ा है।कार्बन डाईआक्साइड(CO2) का वायुमंडल में स्तर भाग-प्रति मिलियन (parts per million -ppm) में मापा जाता है। विश्व मौसम विज्ञान संगठन (डब्ल्यूएमओ) के अनुसार, 2019 में इसका वैश्विक औसत 410.5 पीपीएम था जोकि 2018 की तुलना में 2.6 पीपीएम ज्यादा है।यह 2017 से 2018 की वृद्धि की तुलना में अधिक था और पिछले एक दशक में औसत से भी अधिक था।वर्ष 2020 में कोविड-19 महामारी के कारण ज़्यादातर देशों ने अपने-अपने यहाँ लॉकडाउन लगाया था। इसलिए इस वर्ष की शुरुआत में कार्बन उत्सर्जन में लगभग 17% की कमी आयी थी।
ग्रीनहाउस प्रभाव और अन्य कारणों से संपूर्ण विश्व में देखी जा रही ताप-वृद्धि को वैश्विक तापमान (Global Warming) कहा जाता है।लगातार बढ़ती औद्योगिक गतिविधियाँ, शहरीकरण, आधुनिक रहन-सहन, धुँआ उगलती चिमनियाँ, निरंतर बढ़ते वाहनों एवं ग्रीनहाउस गैसों के प्रभाव से पृथ्वी के औसत तापमान में जो निरंतर वृद्धि हो रही है, उससे संपूर्ण विश्व प्रभावित हो रहा है।कार्बन डाइआक्साइड (CO2) एक प्राथमिक हरितगृह गैस है, जो मानवीय क्रियाकलापों द्वारा उत्सर्जित होती है। कार्बन डाइआक्साइड वातावरण में प्राकृतिक रूप से पृथ्वी के कार्बन चक्र के रूप में मौजूद रहती है, यह ताप को अधिक मात्र में अवशोषित करती है साथ ही इस गैस की वैश्विक तापन में लगभग 60% भागीदारी है।
ग्लोबल वार्मिंग ने ग्लेशियरों को पिघलाकर पहाड़ों पर बर्फ के आवरण को कम किया है। इससे समुद्र के जल स्तर में वृद्धि और जल सुरक्षा जैसी चुनौतियां सामने आई हैं।ग्लोबल वार्मिंग के कारण बढ़ते तापमान का कृषि उत्पादन पर भी असर पड़ा है। जलवायु परिवर्तन के कारण फसल की पैदावार कम होने से खाद्यान्न समस्या उत्पन्न हो सकती है, साथ ही उर्वर भूमि निम्नीकरण जैसी समस्याएँ भी सामने आ सकती हैं।तापमान में वृद्धि के कारण वनस्पति पैटर्न में बदलाव ने कुछ पक्षी प्रजातियों को विलुप्त होने के लिये मजबूर कर दिया है। विशेषज्ञों के अनुसार, पृथ्वी की एक-चौथाई प्रजातियाँ वर्ष 2050 तक विलुप्त हो सकती हैं। वर्ष 2008 में ध्रुवीय भालू को उन जानवरों की सूची में जोड़ा गया था जो समुद्र के स्तर में वृद्धि के कारण विलुप्त हो सकते थे।ग्लोबल वार्मिंग न केवल तापमान में बदलाव, बल्कि मौसम के हर अन्य घटक जैसे वर्षा, आर्द्रता और हवा की गति शामिल है जिनके कारण विश्व स्तर पर कई चरम मौसमी घटनाएं हुई हैं, जैसे कि तूफान, हीट वेव या सूखा।वर्ष 2015-19 विश्व स्तर पर रिकॉर्ड सबसे गर्म वर्ष रहे हैं। उच्च तापमान ने 2019 में अमेजॅन की आग 2019-20 में ही ऑस्ट्रेलिया में लगी आग में योगदान दिया, जिससे भारी तबाही हुई।
विश्व मौसम विज्ञान संगठन(डबल्यूएमओ), एक अंतरसरकारी संगठन है।डब्ल्यूएमओ कन्वेंशन के अनुमोदन से मार्च 23, 1950 को स्थापित डब्लूएमओ, एक साल बाद मौसम विज्ञान (मौसम और जलवायु), जल विज्ञान और भू-भौतिकी विज्ञान के लिए संयुक्त राष्ट्र की विशेष एजेंसी बन गया।यह संगठन, पृथ्वी के वायुमंडल की परिस्थिति और व्यवहार, महासागरों के साथ इसके संबंध और मौसम के बारे में जानकारी देता है।विश्व मौसम विज्ञान संगठन(डबल्यूएमओ) का मुख्यालय जिनेवा, स्विट्ज़रलैंड में है।