पर्यावरण एवं पारिस्थितिकी समसामयिकी 1(4-May-2023)
ब्लैक टाइगर
(Black Tiger)

Posted on May 4th, 2023 | Create PDF File

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हाल ही में ओडिशा के सिमलीपाल टाइगर रिज़र्व में एक दुर्लभ ब्लैक टाइगर की मौत की सूचना मिली है।

 

सिमलीपाल टाइगर रिज़र्व में विश्व में ब्लैक टाइगर देखे जाने की दर सबसे ज़्यादा है।

 

इस प्रकार की मौत का बाघों की आबादी पर बड़ा प्रभाव पड़ सकता है। ब्लैक टाइगर की आबादी काफी सीमित है और नर बाघ की मौत से क्षेत्र में बाघों के प्रजनन पर असर पड़ेगा।

 

ब्लैक टाइगर :

 

ब्लैक टाइगर, बंगाल टाइगर की ही दुर्लभ रंग-रूप की प्रजाति है और यह कोई विशिष्ट प्रजाति या भौगोलिक उप-प्रजाति नहीं है।

 

ट्रांसमेम्ब्रेन एमिनोपेप्टिडेज़ क्यू (टैकपेप) जीन में एकल उत्परिवर्तन ऊपरी खाल के रंग और स्वरूप हेतु होता है जो जंगली बिल्लियों को उनका काला रंग प्रदान करता है।

 

स्यूडो मेलानिस्टिक : 

 

ऐसे बाघों के असामान्य रूप से गहरे या काले रंग को स्यूडो मेलानिस्टिक या छद्म रंग कहा जाता है।

 

मेलानिस्टिक से तात्पर्य वर्णक के सामान्य स्तर से अधिक होने के कारण त्वचा/बालों का बहुत गहरा होना है (पदार्थ जो त्वचा/बालों को रंजकता देता है उसे मेलेनिन कहा जाता है)।

 

इस बात की बहुत अधिक संभावना (लगभग 60%) है कि सिमलीपाल टाइगर रिज़र्व से यादृच्छिक रूप से चुने गए बाघ में उत्परिवर्तित जीन होगा।

 

काले रंग का कारण : 

 

सिमलीपाल टाइगर रिज़र्व के बाघ पूर्वी भारत में एक अलग आबादी है और उनके एवं अन्य बाघ आबादी के बीच जीन प्रवाह बहुत प्रतिबंधित है।

 

भौगोलिक अलगाव के कारण आनुवंशिक रूप से संबंधित प्रजातियाँ कई पीढ़ियों से एक दूसरे के साथ मिलन करते आ रहे हैं, जिससे अंतर्प्रजनन होता है।

 

बाघ संरक्षण में इसका महत्त्वपूर्ण प्रभाव है क्योंकि इस तरह की अलग-थलग और जन्मजात आबादी के कम समय में ही विलुप्त होने का खतरा है।

 

सिमलीपाल टाइगर रिज़र्व :

 

टाइगर रिज़र्व के लिये इसका चयन आधिकारिक रूप से वर्ष 1956 में किया गया था, जिसको वर्ष 1973 में प्रोजेक्ट टाइगर (Project Tiger) के अंतर्गत लाया गया। भारत सरकार ने जून 1994 में इसे एक जैवमंडल रिज़र्व (Biosphere Reserve) क्षेत्र घोषित किया।

 

यह बायोस्फीयर रिज़र्व वर्ष 2009 से यूनेस्को के विश्व नेटवर्क ऑफ बायोस्फीयर रिज़र्व (UNESCO World Network of Biosphere Reserve) का हिस्सा है।

 

यह सिमलीपाल-कुलडीहा-हदगढ़ हाथी रिज़र्व (Similipal-Kuldiha-Hadgarh Elephant Reserve) का हिस्सा है, जिसे मयूरभंज एलीफेंट रिज़र्व (Mayurbhanj Elephant Reserve) के नाम से जाना जाता है।

 

अवस्थिति : 

 

यह ओडिशा के मयूरभंज ज़िले के उत्तरी भाग में स्थित है जो भौगोलिक रूप से पूर्वी घाट के पूर्वी छोर पर स्थित है।

 

वन्यजीव : 

 

सिमलीपाल बाघों और हाथियों सहित जंगली जानवरों की एक विस्तृत शृंखला का घर है, इसके अतिरिक्त यहाँ पक्षियों की 304 प्रजातियाँ, उभयचरों की 20 प्रजातियाँ और सरीसृपों की 62 प्रजातियाँ हैं।

 

 

भारत में बाघ संरक्षण के प्रयास :

 

प्रोजेक्ट टाइगर (1973): प्रोजेक्ट टाइगर वर्ष 1973 में शुरू की गई पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय (MoEFCC) की एक केंद्र प्रायोजित योजना है। यह देश के राष्ट्रीय उद्यानों में बाघों को आश्रय प्रदान करती है।

 

राष्ट्रीय बाघ संरक्षण प्राधिकरण (NTCA): यह MoEFCC के तहत एक वैधानिक निकाय है और वर्ष 2005 में टाइगर टास्क फोर्स की सिफारिशों के बाद स्थापित किया गया था। NTCA का गठन वन्यजीव (संरक्षण) अधिनियम, 1972 की धारा 38 L (1) के तहत किया गया है।

 

संरक्षण का आश्वासन/बाघ मानक: CA/TS मापदंड का एक समूह है जो बाघ स्थलों को यह जाँचने की अनुमति देता है कि क्या उनके प्रबंधन से बाघ संरक्षण सफल होगा।