सामाजिक समसामियिकी 1 (10-Sept-2020)
भिक्षावृत्ति (Beggary)

Posted on September 10th, 2020 | Create PDF File

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रेलगाड़ियों/रेलवे स्टेशनों/रेलवे परिसरों पर भीख मांगना और धूम्रपान करना अपराध की श्रेणी से बाहर हो सकता है। इसके लिये रेलवे बोर्ड एक प्रस्ताव बना कर कैबिनेट से पास कराने की प्रक्रिया में है। रेलवे ने इस तरह का प्रस्ताव कैबिनेट सचिवालय के उस निर्देश के बाद तैयार किया है, जिसमें वैसे नियम-कानूनों को निरस्त करने को कहा गया है, जिसमें छोटी मोटी गलती के लिये भी जेल भेजा जाता है या जुर्माना वसूला जाता है।


रेलवे अधिनियम, 1989 के सेक्शन-144 के अनुसार, यदि कोई व्यक्ति रेलगाड़ी/रेलवे प्लेटफॉर्म/रेलवे परिसर में भीख मांगता पकड़ा जाता है तो उस पर 1,000 रुपए तक का ज़ुर्माना या एक वर्ष तक की कैद या फिर दोनों हो सकते हैं।वर्ष 2018 में राष्ट्रीय राजधानी में भिक्षावृत्ति को अपराध घोषित करने वाले एक कानून को रद्द करते हुए दिल्ली उच्च न्यायालय ने कहा था कि भीख मांगने को आपराधिक बनाना इस समस्या से निपटने के लिये एक गलत दृष्टिकोण है।


भिक्षावृत्ति को कानूनी रूप से अपराध घोषित करने के बावजूद भिक्षावृत्ति की समस्या में कमी नहीं हुई है। सामाजिक अधिकार कार्यकर्ता लंबे समय से एक ऐसे कानून की माँग करते आ रहे हैं जिसमें भिखारियों को अपराधी मानने की बजाय उनके पुनर्वास पर ज़ोर दिया जाए। इस निर्णय को रेल परिसर में भिक्षावृत्ति को बढ़ावा देने वाला नहीं समझा जाना चाहिये। यह केवल मानवीय आधार पर किया जा रहा है। रेलवे पुलिस फोर्स द्वारा पहले से ज्यादा निगरानी रखी जाएगी तथा रेलवे परिसर में भीख मांगने वालों को बाहर किया जाएगा।

 


भिक्षावृत्ति भारत में सबसे गंभीर सामाजिक मुद्दों में से एक है। अपनी तीव्र आर्थिक वृद्धि के बावजूद भारत में गरीबी रेखा से नीचे जीवन यापन करने वालों की अधिक संख्या देश में भिखारियों की संख्या में वृद्धि को प्रेरित करती है । शारीरिक असमर्थता के चलते गरीबी के कारण आजीविका कमाने के लिये कुछ लोग भीख मांगते हैं। कुछ मामलों में पूरा परिवार ही भीख मांगने में सम्मिलित होता है। भिक्षावृत्ति देश में एक बड़े रैकेट के रूप में संचालित है। वास्तव में बड़े शहरों एवं महानगरों में भीख मांगने वाले गिरोह हैं।

 



भारत में भिक्षावृत्ति की रोकथाम और नियंत्रण के लिये कोई संघीय कानून नहीं है। लगभग 22 राज्यों ने बॉम्बे प्रिवेंशन ऑफ बेगिंग एक्ट, 1959 को अपनाया था, जो भिखारी आश्रयगृहों में तीन से दस वर्ष तक की सजा का प्रावधान करता है।किशोर न्याय (बच्चों की देखभाल और संरक्षण) अधिनियम, 2000 की धारा 24 (1) के अनुसार, जो कोई व्यक्ति किशोर या बच्चे को भीख मांगने के लिये नियुक्त करता है या उसका उपयोग करता है या किसी किशोर द्वारा भीख मांगने का कारण बनता है, उसके लिये तीन वर्ष तक की कैद या जुर्माना या दोनों का प्रावधान है।भारतीय दंड संहिता (IPC) की धारा-363A एक ऐसे व्यक्ति के लिये दंड का प्रावधान करती है जो भीख मांगने के लिये नाबालिग का अपहरण करता है या उसके साथ छेड़छाड़ करता है।

 


सामाजिक-आर्थिक विश्लेषण के आधार पर एक केंद्रीय कानून बनाया जाना चाहिये। इस संदर्भ में 2016 में केंद्र सरकार ने पहला प्रयास ‘The Persons in Destitution (Protection, Care, Rehabilitation) Model Bill, 2016’ लाकर किया था। इस पर फिर से काम किये जाने की आवश्यकता है।गरीबी, भुखमरी, बेरोज़गारी जैसी समस्याओं से मज़बूर एवं गंभीर बिमारियों से ग्रसित लोगों तक मौलिक सुविधाओं की पहुँच सुनिश्चित की जानी चाहिये। साथ ही समाज की मुख्य धारा से जोड़ने के लिये कौशल प्रशिक्षण दिया जा सकता है। संगठित तौर पर चलने वाले भिक्षावृत्ति रैकेट्स को मानव तस्करी और अपहरण जैसे अपराधों के साथ जोड़ कर देखा जाना चाहिये। इससे निपटने के लिये राज्यों के बीच सूचनाएँ साझा करने हेतु एक तंत्र की भी आवश्यकता है।