राजव्यवस्था समसामियिकी 1 (29-Nov-2020)
दलबदल विरोधी कानून
(Anti-Defection Law)

Posted on November 29th, 2020 | Create PDF File

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लोक सभा में ‘अयोग्य’ घोषित होने वाले भारत के प्रथम संसद सदस्य को, अब मिज़ोरम में विधानसभा सदस्य के रूप में भी अयोग्य घोषित कर दिया गया है।हाल ही में, मिजोरम विधानसभा अध्यक्ष के द्वारा ज़ोरम पीपुल्स मूवमेंट (Zoram People’s Movement – ZPM) के विधायक ‘लालडूहोमा’ (Lalduhoma) को अयोग्य घोषित करते हुए सदन से बाहर कर दिया गया है।

 

श्री लालडूहोमा को विधायक के रूप में निरर्हता (Disqualification) का आधार, उनके द्वारा सेरछिप विधानसभा क्षेत्र से एक स्वतंत्र उम्मीदवार के रूप में चुने जाने के बावजूद स्वयं को ज़ोरम पीपुल्स मूवमेंट (ZPM) के प्रतिनिधि के रूप में घोषित करना था।विधानसभा अध्यक्ष के अनुसार, अपनी इस घोषणा के कारण उन्होंने एक स्वतंत्र विधायक का दर्जा खो दिया।

 

 

संविधान में, 52वें संविधान संशोधन अधिनियम, 1985 द्वारा एक नयी अनुसूची (दसवीं अनुसूची) जोड़ी गई थी।इसमें सदन के सदस्यों द्वारा एक राजनीतिक दल से दूसरे दल में सम्मिलित होने पर ‘दल-बदल’ के आधार पर निरर्हता (Disqualification) के बारे में प्रावधान किया गया है।दल-बदल कानून लागू करने के सभी अधिकार सदन के अध्यक्ष या सभापति को दिए गए हैं एवं उनका निर्णय अंतिम होता है।
यह कानून संसद और राज्य विधानसभाओं दोनों पर समान रूप से लागू होता है।

 

निरर्हता (Disqualification) के आधार:

 

1.यदि किसी राजनीतिक दल से संबंधित सदन का सदस्य:

* स्वेच्छा से अपनी राजनीतिक पार्टी की सदस्यता त्याग देता है, अथवा


* यदि वह सदन में अपने राजनीतिक दल के निर्देशों के विपरीत मत देता है अथवा मतदान में अनुपस्थित रहता है तथा अपने राजनीतिक दल से उसने पंद्रह दिनों के भीतर क्षमादान न पाया हो।


2.यदि चुनाव के बाद कोई निर्दलीय उम्मीदवार किसी राजनीतिक दल में शामिल हो जाता है।


3.यदि विधायिका का सदस्य बनने के छह महीने बाद कोई नामित सदस्य (Nominated Member) किसी पार्टी में शामिल होता है।



सदन के सदस्य कुछ परिस्थितियों में निरर्हता के जोखिम के बिना अपनी पार्टी बदल सकते सकते हैं।इस विधान में किसी दल के द्वारा किसी अन्य दल में विलय करने करने की अनुमति दी गयी है बशर्ते कि उसके कम से कम दो-तिहाई विधायक विलय के पक्ष में हों।ऐसे परिदृश्य में, अन्य दल में विलय का निर्णय लेने वाले सदस्यों तथा मूल दल में रहने वाले सदस्यों को अयोग्य नहीं ठहराया जा सकता है।

 

इस विधान के प्रारम्भ में कहा गया है कि पीठासीन अधिकारी का निर्णय न्यायिक समीक्षा के अधीन नहीं होगा। वर्ष 1992 में उच्चत्तम न्यायालय ने इस प्रावधान को खारिज कर दिया तथा इस सन्दर्भ में पीठासीन अधिकारी के निर्णय के विरूद्ध उच्च न्यायालय तथा उच्चतम न्यायालय में अपील की अनुमति प्रदान की।

 

चुनावी सुधारों पर दिनेश गोस्वामी समिति ने कहा कि निरर्हता उन मामलों तक सीमित होनी चाहिए जहाँ कोई सदस्य स्वेच्छा से अपनी राजनीतिक पार्टी की सदस्यता छोड़ देता है,कोई सदस्य मतदान से परहेज करता है, अथवा विश्वास प्रस्ताव या अविश्वास प्रस्ताव में पार्टी व्हिप के विपरीत वोट करता है। राजनीतिक दल तभी व्हिप केवल तभी जारी कर सकते है जब सरकार खतरे में हो।

 

विधि आयोग (170 वीं रिपोर्ट) के अनुसार- ऐसे प्रावधान, जो विभाजन और विलय को निरर्हता (Disqualification) से छूट प्रदान करते हैं, समाप्त किये जाने चाहिए।इसके अलावा राजनीतिक दलों को व्हिप जारी करने को केवल उन मामलों में सीमित करना चाहिए जब सरकार खतरे में हो।