अंतर्राष्ट्रीय समसामयिकी 1(20-Sept-2022)
अब्राहम समझौते
(Abraham Accords)

Posted on September 20th, 2022 | Create PDF File

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‘अब्राहम समझौते’ (Abraham Accords) पर हस्ताक्षर एवं लागू होने को दो साल पूरे हो चुके हैं। इस समझौते ने न केवल सदस्य देशों की मदद की है बल्कि भारत को भी विभिन्न लाभ प्रदान किए हैं। 

 

मिस्र के एक विद्वान, मोहम्मद सोलिमन (Mohammed Soliman), “इंडो-अब्राहमिक समझौते” के विचार और भारत के पश्चिम में इसके अंतर-क्षेत्रीय निहितार्थों को प्रतिपादित करने वाले पहले व्यक्ति थे।

 

हाल ही में आयोजित भारत, इज़राइल, संयुक्त अरब अमीरात और संयुक्त राज्य अमेरिका के विदेश मंत्रियों के बीच पहली बैठक को व्यापक रूप से ‘अब्राहम समझौते’ की तर्ज पर ‘मध्य पूर्व का एक नया क्वाड’ (QUAD) कहा जा रहा है।

 

अब्राहम समझौता:

 

संयुक्त राज्य अमेरिका की मध्यस्थता में संपन्न हुआ ‘अब्राहम समझौता’ (Abraham Accord) औपचारिक राजनयिक संबंध स्थापित करने के लिए संयुक्त अरब अमीरात और इज़राइल के बीच एक ‘सामान्यीकरण समझौता’ है। बाद में, इस समझौते में बहरीन, सूडान और मोरक्को भी शामिल हो गए।

 

इस समझौते में इज़राइल अपने कब्जे वाले ‘वेस्ट बैंक’ के कुछ हिस्सों को हड़पने / अपने कब्जे में लेने की योजनाओं को स्थगित करने पर सहमत हुआ है।

 

‘अब्राहम समझौता’ के बाद संयुक्त अरब अमीरात, इजरायल के साथ राजनयिक और आर्थिक संबंध स्थापित करने वाला पहला खाड़ी देश बन गया।

 

संयुक्त अरब अमीरात, मिस्र (1979 में) और जॉर्डन (1994) के बाद इजरायल को मान्यता देने वाला तीसरा अरब राष्ट्र बन गया है।

 

भारत के लिए अब्राहम समझौते का महत्व :

 

आर्थिक सहयोग : पूर्वी भूमध्य सागर में नए हाइड्रोकार्बन संसाधनों की खोज ने तुर्की और ग्रीस के बीच क्षेत्रीय विवादों को फिर से ताज़ा कर दिया है, और क्षेत्रीय प्रभुत्व ज़माने के लिए तुर्की द्वारा किए जा रहे प्रयासों ने ग्रीस और संयुक्त अरब अमीरत को एक-दूसरे के करीब ला दिया है जिससे इस क्षेत्र में भारत की भागीदारी का मार्ग प्रशस्त हुआ है।

 

क्षेत्रीय संपर्क : अब्राहम समझौते ने सदस्य देशों के बीच क्षेत्रीय संपर्क में सुधार किया है। इस क्षेत्रीय संपर्क से भारतीयों को भी मदद मिली है। उदाहरण के लिए, खाड़ी में रहने वाले भारतीय प्रवासी अब सीधे संयुक्त अरब अमीरात से इजरायल, या इजरायल से बहरीन के लिए उड़ान भर सकते हैं।

 

प्रौद्योगिकी सहयोग : व्यापार के अलावा, संयुक्त अरब अमीरात और इज़राइल के लिए अंतरिक्ष से लेकर रक्षा प्रौद्योगिकी तक कई क्षेत्रों में भारत के साथ सहयोग करने की संभावना है।

 

इस क्षेत्र में एकमात्र भू-राजनीतिक इकाई : मध्य पूर्व में नया “क्वाड” इस क्षेत्र में भारत का एकमात्र नया गठबंधन होने की संभावना है। अरब-इजरायल दरार को पाटकर मध्य पूर्व के साथ एक गैर-वैचारिक संबंध स्थापित करने की संभावना भी है।

 

‘विस्तारित‘ पड़ोस : भारत के इस क्षेत्र के साथ यह संबंध, मिस्र जैसे अन्य क्षेत्रीय भागीदारों के साथ सहयोग बढ़ाने के लिए द्वार खोलेंगे, जिसका इस क्षेत्र में बहुत अधिक प्रभाव होगा।

 

पश्चिम एशिया में शांति और स्थिरता : समझौता पश्चिम एशिया में पारंपरिक विरोधियों-इजरायल और अरबों के बीच पहली बार व्यापक मेलजोल के द्वार खोलता है। इससे इस क्षेत्र में भारत की भागीदारी के नए द्वार खुलेंगे।

 

समूह गठन : इस समझौते ने I2U2 समूह के गठन में मदद की है। यह I2U2 समूह इज़राइल, भारत, संयुक्त अरब अमीरात और संयुक्त राज्य अमेरिका द्वारा स्थापित किया गया है।