राज्य लोक सेवा आयोग की भूमिकाएं (Role of state public service commission)
Posted on May 27th, 2022
संविधान राज्य लोक सेवा आयोग को राज्य में मेरिट पद्धति के पहरी के रूप में देखता है। इसकी भूमिका राज्य सेवाओं के लिए भर्ती करना व प्रोन्नति या अनुशासनात्मक विषयों पर सरकार को सलाह देना है।
सेवाओं के वर्गीकरण, भुगतान व सेवाओं की स्थिति, कैडेट प्रबंधन,प्रशिक्षण आदि से इसका कोई सरोकार नहीं है। इस तरह के मामलों की कार्मिक विभाग या सामान्य प्रशासनिक विभाग देखता है। अतः राज्य लोक सेवा आयोग मात्र राज्य का केंद्रीय भर्ती अधिकरण जबकि कार्मिक विभाग या सामान्य प्रशासनिक विभाग राज्य का केंद्रीय कार्मिक अधिकरण है।
राज्य लोक सेवा आयोग की भूमिका न केवल सीमित है बल्कि उसके द्वारा दिए गए सुझाव भी सलाहकारी प्रवृत्ति के होते हैं, यानी यह सरकार के लिए बाध्य नहीं है। यह राज्य सरकार पर निर्भर है कि वह सुझावों पर अमल करे या खारिज करे। सरकार की एकमात्र जवाबदेही है कि वह विधानमंडल को आयोग के सुझावों से विचलन का कारण बताए। इसके अलावा सरकार ऐसे नियम बना सकती है जिससे राज्य लोक सेवा आयोग के सलाहकारी कार्य को नियंत्रित किया जा सके।
1964 में राज्य सर्तकता आयोग के गठन ने अनुशासनात्मक विषयों पर राज्य लोक सेवा आयोग के कार्यों को प्रभावित किया। ऐसा इसलिए क्योंकि किसी नौकरशाह पर अनुशासनात्मक कार्रवाई करने से पहले दोनों से संपर्क किया जाने लगा। समस्या तब खड़ी होती है। जब दोनों की सलाहों में मतभेद हो। चूंकि राज्य लोक सेवा आयोग एक स्वतंत्र संवैधानिक संस्था है इसलिए वह राज्य सर्तकता आयोग से अधिक प्रभावी है।
जिला न्यायाधीश के अलावा न्यायिक सेवा में भर्ती से संबंधित नियम बनाने के मसले पर राज्यपाल राज्य लोक सेवा आयोग से संपर्क करता है। इस मामले में संबंधित उच्च न्यायालय से भी संपर्क किया जाता है।
राज्य लोक सेवा आयोग की भूमिकाएं (Role of state public service commission)
संविधान राज्य लोक सेवा आयोग को राज्य में मेरिट पद्धति के पहरी के रूप में देखता है। इसकी भूमिका राज्य सेवाओं के लिए भर्ती करना व प्रोन्नति या अनुशासनात्मक विषयों पर सरकार को सलाह देना है।
सेवाओं के वर्गीकरण, भुगतान व सेवाओं की स्थिति, कैडेट प्रबंधन,प्रशिक्षण आदि से इसका कोई सरोकार नहीं है। इस तरह के मामलों की कार्मिक विभाग या सामान्य प्रशासनिक विभाग देखता है। अतः राज्य लोक सेवा आयोग मात्र राज्य का केंद्रीय भर्ती अधिकरण जबकि कार्मिक विभाग या सामान्य प्रशासनिक विभाग राज्य का केंद्रीय कार्मिक अधिकरण है।
राज्य लोक सेवा आयोग की भूमिका न केवल सीमित है बल्कि उसके द्वारा दिए गए सुझाव भी सलाहकारी प्रवृत्ति के होते हैं, यानी यह सरकार के लिए बाध्य नहीं है। यह राज्य सरकार पर निर्भर है कि वह सुझावों पर अमल करे या खारिज करे। सरकार की एकमात्र जवाबदेही है कि वह विधानमंडल को आयोग के सुझावों से विचलन का कारण बताए। इसके अलावा सरकार ऐसे नियम बना सकती है जिससे राज्य लोक सेवा आयोग के सलाहकारी कार्य को नियंत्रित किया जा सके।
1964 में राज्य सर्तकता आयोग के गठन ने अनुशासनात्मक विषयों पर राज्य लोक सेवा आयोग के कार्यों को प्रभावित किया। ऐसा इसलिए क्योंकि किसी नौकरशाह पर अनुशासनात्मक कार्रवाई करने से पहले दोनों से संपर्क किया जाने लगा। समस्या तब खड़ी होती है। जब दोनों की सलाहों में मतभेद हो। चूंकि राज्य लोक सेवा आयोग एक स्वतंत्र संवैधानिक संस्था है इसलिए वह राज्य सर्तकता आयोग से अधिक प्रभावी है।
जिला न्यायाधीश के अलावा न्यायिक सेवा में भर्ती से संबंधित नियम बनाने के मसले पर राज्यपाल राज्य लोक सेवा आयोग से संपर्क करता है। इस मामले में संबंधित उच्च न्यायालय से भी संपर्क किया जाता है।