वित्त आयोग की सलाहकारी भूमिका (Advisory Role of finance commission)

Posted on May 30th, 2022 | Create PDF File

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यह स्पष्ट करना आवश्यक होगा कि वित्त आयोग की सिफारिशों की  प्रकृति सलाहकारी होती है और इनको मानने के लिए सरकार बाध्य नहीं  होती। यह केंद्र सरकार पर निर्भर करता है कि वह राज्य सरकारों को दी  जाने वाली सहायता के संबंध में आयोग की सिफारिशों को लागू करे।

 

इसे दूसरे शब्दों में भी व्यक्त किया जा सकता है कि, “संविधान में यह नहीं बताया गया है कि आयोग की सिफारिशों के प्रति भारत  सरकार बाध्य होगी और आयोग द्वारा की गई सिफारिश के आधार पर  राज्यों द्वारा प्राप्त धन को लाभकारी मामलों में लगाने का उसे विधिक अधिकार होगा।'

 

इस संबंध में डॉ. पी.वी. राजामन्ना चौथे वित्त आयोग के अध्यक्ष  ने ठीक ही कहा है कि, “चूंकि वित्त आयोग एक संवैधानिक निकाय है, जो अर्द्ध-न्यायिक कार्य करता है तथा इसकी सलाह को भारत सरकार तब तक मानने के लिये बाध्य नहीं है, जब तक कि कोई बाध्यकारी कारण न हो। "

 

भारत के संविधान में इस बात की परिकल्पना की गई है कि वित्त आयोग भारत में राजकोषीय संघवाद के संतुलन की भूमिका निभाएगा।

 

यद्यपि 2014 तक, पूर्ववती योजना आयोग, गैर-सांविधानिक और गैर-सांविधिक निकाय के प्रार्दुभाव के साथ केन्द्र-राज्य वित्तीय संबंधों में इसकी भूमिका में कमी आई है। चौथे वित्त आयोग के अध्यक्ष डॉ.पी.वी.राजमन्नार ने संघीय राजकोषीय अंतरणों में पूर्ववर्ती योजना आयोग  एवं वित्त आयोग के बीच कार्यों एवं उत्तरदायित्वों की अतिव्याप्ति को बताया है। 2015 में योजना आयोग के स्थान पर एक नई संस्था बनाई गई- नीति आयोग (National Institute of Transforming India-NITI)।