आपदा प्रबंधन समसामियिकी 1 (8-Aug-2020)
आपदा प्रबंधन हेतु प्रधानमंत्री का 10-सूत्रीय एजेंडा और सेंडाई फ्रेमवर्क (Prime Minister's 10-Point Agenda and Sendai Framework for Disaster Management)

Posted on August 8th, 2020 | Create PDF File

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राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन संस्थान (एनआईडीएम) और भारत मौसम विज्ञान विभाग (आईएमडी) ने संयुक्त रूप से ‘जल-मौसम संबंधी खतरों के जोखिम को कम करना’ (Hydro-Meteorological Hazard Risk Reduction) विषय पर वेबिनार श्रृंखला का आयोजन किया। इस वेबिनार श्रृंखला में आपदा जोखिम को कम करने तथा प्रभावित समुदायों और परिवेश की सहनशीलता को बढ़ने के लिए प्रधान मंत्री के 10-सूत्रीय एजेंडा एवं सेनडाई आपदा जोखिम कमी फ्रेमवर्क को लागू किये जाने पर चर्चा हुई।


वेबिनार श्रृंखला में चार विषयों पर वेबिनार आयोजित किये गए – तूफ़ान और आकाशीय बिजली, बादल का फटना और बाढ़, चक्रवात और तूफ़ान का बढ़ना तथा जलवायु परिवर्तन और चरम मौसम घटनाएं।जल-मौसम संबंधी जोखिमों की बेहतर समझ और प्रभावी सहयोगात्मक कार्रवाइयों के सम्बन्ध में मानवीय क्षमता बढाने पर भी विचार-विमर्श हुआ।आपदा जोखिम को कम करने तथा प्रभावित समुदायों और परिवेश की सहनशीलता को बढ़ाने के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के 10-सूत्रीय एजेंडा एवं सेनडाई आपदा जोखिम कमी को लागू किये जाने पर चर्चा हुई।


आपदा जोखिम के न्यूनीकरण हेतु प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 2016 में 10-सूत्रीय एजेंडा दिया था । पीएम मोदी ने यह एजेंडा सन 2016 में नई दिल्ली में आपदा जोखिम के न्यूनीकरण विषय पर आयोजित ‘एशियाई मंत्रिस्तरीय सम्मेलन’ में सेंडाई फ्रेमवर्क को भारत में लागू करने के लिए दिया था , जो निम्नलिखित है-

* पहला, सभी विकास क्षेत्रों को आपदा जोखिम प्रबंधन के सिद्धांतों का पालन करना चाहिए।

* दूसरा, छोटे से छोटे स्तर से लेकर बडे स्तर तक आपदा जोखिम को कम करने हेतु बीमा की पहुंच बढ़ाना। इसके लिए गरीब परिवारों से लेकर छोटे और मध्यम उपक्रमों, बहुराष्ट्रीय निगमों और राष्ट्र राज्यों आदि सभी को जोखिम कवरेज हेतु काम करना चाहिए।

* तीसरा, आपदा जोखिम प्रबंधन में महिलाओं की अधिक भागीदारी और नेतृत्व को प्रोत्साहित करना चाहिए ; क्योंकि वे किसी आपदा में सबसे ज्यादा शिकार होती हैं तथा उनके पास अनूठी ताकत और अंतर्दृष्टि होती है। पुनर्निर्माण को समर्थन देने वाली महिला इंजीनियरों, राजमिस्त्रियों और भवन-निर्माण कारीगरों और आजीविका बहाली के लिए महिला स्व-सहायता समूहों की जरूरत है।

* चौथा, विश्व स्तर पर आपदा जोखिम मानचित्रण में निवेश होना चाहिए, यथा -भूकंप जैसी आपदा के खतरों का मानचित्रण किया जाए ।

* पाँचवाँ, आपदा के जोखिम में कमी की जलवायु परिवर्तन के अनुकूलन को बढ़ावा देने और सतत विकास में एक अहम भूमिका है।

* छठा, आपदा मुद्दों पर काम करने के लिए विश्वविद्यालयों का एक नेटवर्क विकसित करना चाहिए।

* सातवाँ, वैश्विक स्तर पर जोखिम आकलन, आपदा जोखिम प्रबंधन प्रयासों की प्रभाव-क्षमता बढ़ाने के लिए प्रौद्योगिकी के उपयोग और सोशल मीडिया तथा मोबाइल प्रौद्योगिकी से मिले अवसरों के उपयोग पर जोर दिया जाना चाहिए।

* आठवां, स्थानीय क्षमता और पहल पर निर्माण पर ज़ोर दिया जाना चाहिए ।

* नौवां, यह सुनिश्चित करने पर जोर दिया जाए कि एक आपदा से सीखने का अवसर बर्बाद नहीं होना चाहिए।

* दसवां , आपदाओं के लिए अंतरराष्ट्रीय प्रतिक्रिया में अधिक सामंजस्य लाया जाना चाहिए।

 


अब तक प्राकृतिक आपदाओं से निपटने के लिए वैश्विक स्तर पर प्रमुख रूप से तीन रणनीति या कार्ययोजना बनाई गई हैं । पहला 1994 में योकोहामा स्ट्रेटजी एंड प्लान ऑफ एक्शन जो कि एक सुरक्षित विश्व से संबंधित था । इसके बाद 2005 से 2015 के लिए ह्यूगो फ्रेमवर्क फॉर एक्शन का गठन किया गया । इसके बाद 18 मार्च , 2015 को 2015 से 2030 के लिए सेंडाई फ्रेमवर्क फॉर डिजास्टर रिस्क रिडक्शन को अपनाया गया । इस प्रकार यह 15 वर्षों के लिये स्वैच्छिक और गैर-बाध्यकारी समझौता है ।सेंडाई फ्रेमवर्क के अंतर्गत आपदा जोखिम को कम करने के लिये राज्य की भूमिका को प्राथमिक माना जाता है, लेकिन यह ज़िम्मेदारी अन्य हितधारकों समेत स्थानीय सरकार और निजी क्षेत्र के साथ साझा की जानी चाहिये।सेंडाई फ्रेमवर्क के तहत दुनिया में हर साल 13 अक्टूबर को अंतरराष्ट्रीय आपदा न्यूनीकरण दिवस (आइडीडीआर) मनाया जाता है।