राष्ट्रीय समसामयिकी 1 (2-June-2021)
राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग (National Commission for Protection of Child Rights (NCPCR))

Posted on June 3rd, 2021 | Create PDF File

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सुप्रीम कोर्ट द्वारा स्वतः संज्ञान लेते हुए, महामारी के कारण अपने निकटस्थ लोगों को खोने वाले और सदमा झेलने वाले बच्चों को सुरक्षा प्रदान करने के तरीकों की जाँच की जा रही है।

 

इस संबंध में, 28 मई को, अदालत ने केंद्र सरकार को, महामारी की वजह से अनाथ होने वाले बच्चों के लिए कल्याणकारी उपाय करने का निर्देश दिया था।

 

राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग (NCPCR) और राज्यों को, तत्काल देखभाल की आवश्यकता वाले बच्चों को चिह्नित करते हुए संबंधित जानकारी को संकलित करने के लिए भी कहा गया था।

 

बाल स्वराज’ नामक एक ऑनलाइन ट्रैकिंग पोर्टल पर जुटाई गई जानकारी  के आधार पर, NCPCR ने निम्नलिखित प्रस्तुतियाँ दीं है:

 

देश में लगभग 10,000 बच्चों को तत्काल देखभाल और सुरक्षा की आवश्यकता है।

 

इनमें मार्च 2020 से कोविड-19 महामारी के दौरान, ‘शून्य’ से 17 वर्ष तक की आयु के अनाथ या परित्यक्त बच्चे शामिल हैं।

 

इन बच्चों के लिए तस्करी और देह व्यापार में धकेले जाने का खतरा काफी अधिक है।

 

विशेष ध्यान देने की जरूरत:

 

प्रलयकारी कोविड-19 महामारी ने समाज के कमजोर वर्गों को तबाह कर दिया है। ऐसे कई बच्चे हैं जो, या तो परिवार में कमाने वाले या अपने माता-पिता दोनों की मृत्यु हो जाने के कारण अनाथ हो गए हैं। इन बच्चों को अधिकारियों की ओर से तत्काल और विशेष ध्यान दिए जाने की आवश्यकता है।

 

NCPCR के बारे में:

 

राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग (National Commission for Protection of Child Rights- NCPCR) की स्थापना ‘बाल अधिकार संरक्षण अधिनियम’, 2005 के अंतर्गत मार्च 2007 में की गई थी।

 

यह महिला एवं बाल विकास मंत्रालय के प्रशासनिक नियंत्रण में कार्य करता है।

 

आयोग का कार्य, देश में बनायी गयी, समस्त विधियाँ, नीतियां, कार्यक्रम तथा प्रशासनिक तंत्र, भारत के संविधान तथा साथ ही संयुक्त राष्ट्र बाल अधिकार सम्मेलन में प्रतिपाादित बाल अधिकारों के संदर्श के अनुरूप होंने को सुनिश्चित करना है।

 

शिक्षा के अधिकार अधिनियम’ 2009 के संदर्भ में NCPCR की शक्तियाँ:

 

राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग (NCPCR):

 

कानून के उल्लंघन के संबंध में शिकायतों की जांच कर सकता है।

 

किसी व्यक्ति को पूछतांछ करने हेतु बुलाना तथा साक्ष्यों की मांग कर सकता है।

 

न्यायायिक जांच का आदेश दे सकता है।

 

हाईकोर्ट या सुप्रीम कोर्ट में रिट याचिका दायर कर सकता है।

 

अपराधी के खिलाफ मुकदमा चलाने के लिए सरकार से संपर्क कर सकता है।

 

प्रभावित लोगों को अंतरिम राहत देने की सिफारिश कर सकता है।

 

आयोग का गठन:

इस आयोग में एक अध्यक्ष और छह सदस्य होते हैं जिनमें से कम से कम दो महिलाएँ होना आवश्यक है।

 

सभी सदस्यों की नियुक्ति केंद्र सरकार द्वारा की जाती है, तथा इनका कार्यकाल तीन वर्ष का होता है।

 

आयोग के अध्यक्ष की अधिकतम आयु 65 वर्ष तथा सदस्यों की अधिकतम आयु 60 वर्ष होती है।