राष्ट्रीय समसामयिकी 1(8-November-2023)
कानूनी साक्षरता और कानूनी जागरूकता कार्यक्रम
(Legal Literacy and Legal Awareness Program (LLLAP))

Posted on November 8th, 2023 | Create PDF File

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हाल के आँकड़ों के अनुसार, कानूनी साक्षरता और कानूनी जागरूकता कार्यक्रम (LLLAP) को न्याय तक समग्र पहुँच के लिये अभिनव समाधान तैयार करना (दिशा) योजना के तहत 14 कार्यान्वयन एजेंसियों के माध्यम से 6 लाख से अधिक लोगों तक पहुँचाया गया।

 

LLLAP भारत सरकार के विधि और न्याय मंत्रालय के न्याय विभाग की एक पहल है जिसका उद्देश्य जनता के बीच कानूनी साक्षरता एवं जागरूकता बढ़ाना है।

 

इस कार्यक्रम का उद्देश्य लोगों को उनके कानूनी अधिकारों, कर्त्तव्यों और अधिकारों के साथ-साथ शिकायतों के निवारण के लिये उपलब्ध विभिन्न कानूनी तंत्रों के बारे में शिक्षित करना है।

 

न्याय तक पहुँच के उद्देश्य को आगे बढ़ाने के लिये दिशा को पाँच वर्ष यानी 2021-2026 की अवधि के लिये लॉन्च किया गया है।

 

इसका उद्देश्य कानूनी सेवाओं की नागरिक-केंद्रित पहुँच के लिये विभिन्न पहलों को डिज़ाइन तथा समेकित करना है।

 

दिशा के तहत अखिल भारतीय स्तर पर कार्यान्वित किये जा रहे कार्यक्रम हैं- टेली-लॉ: रीचिंग द अनरीच्ड, न्याय बंधु (प्रो बोनो लीगल सर्विसेज़) और कानूनी साक्षरता तथा कानूनी जागरूकता कार्यक्रम।

 

आभासी न्यायालय (Virtual Court) :

 

आभासी न्यायालय या ई-न्यायालय एक अवधारणा है जिसका उद्देश्य न्यायालय में वादियों या वकीलों की उपस्थिति को समाप्त करना और मामले का ऑनलाइन निर्णय करना है।

 

इसके लिये एक ऑनलाइन वातावरण और एक सूचना और संचार प्रौद्योगिकी (ICT) सक्षम बुनियादी ढाँचे की आवश्यकता होती है।

 

वर्ष 2020 में कोरोनावायरस महामारी के मद्देनज़र, सर्वोच्च न्यायालय (SC) ने अनुच्छेद 142 के तहत अपनी पूर्ण शक्ति का प्रयोग करते हुए देश भर के सभी न्यायालयों को न्यायिक कार्यवाही के लिये वीडियो-कॉन्फ्रेंसिंग का व्यापक रूप से उपयोग करने का निर्देश दिया।

 

इससे पहले न्यायिक प्रणाली में CJI द्वारा एक आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (AI) आधारित पोर्टल 'SUPACE' लॉन्च किया गया था, जिसका उद्देश्य न्यायाधीशों को कानूनी अनुसंधान में सहायता करना था।

 

साथ ही SC ने न्यायालय की कार्यवाही की लाइव-स्ट्रीमिंग और रिकॉर्डिंग के लिये ड्राफ्ट मॉडल नियम जारी किये हैं।

 

-न्यायालय परियोजना :

 

ई-समिति द्वारा प्रस्तुत "भारतीय न्यायपालिका में सूचना और संचार प्रौद्योगिकी (ICT) के कार्यान्वयन के लिये राष्ट्रीय नीति एवं कार्ययोजना-2005" के आधार पर इसकी अवधारणा की गई थी। इसमें भारत के सर्वोच्च न्यायालय द्वारा भारतीय न्यायपालिका को ICT सक्षमता युक्त करने की परिकल्पना की गई थी ।

 

ई-न्यायालय मिशन मोड प्रोजेक्ट, एक अखिल भारतीय परियोजना है, जिसकी निगरानी और वित्तपोषण न्याय विभाग, कानून तथा न्याय मंत्रालय द्वारा देश भर के ज़िला न्यायालयों के लिये किया जाता है।

 

लाभ :

 

वहनीय न्याय :

 

ई-न्यायालय के विस्तार से समाज के सभी वर्गों के लिये न्यायालयों में न्याय तक सस्ती और आसान पहुँच सुनिश्चित होगी।

 

न्याय की तेज़ी से डिलीवरी :

 

ई-न्यायालय के प्रसार से न्याय निर्णयन प्रक्रिया तीव्र हो जाएगी तथा इसके लिये आवश्यक उपकरण प्रदान किये जाने चाहिये।

 

पारदर्शिता :

 

ई-न्यायालय चुनौतियों को दूर कर सेवा वितरण तंत्र को पारदर्शी और लागत प्रभावी बना सकते हैं।

 

सेवा वितरण के लिये बनाए गए विभिन्न चैनलों के माध्यम से वादी अपने मामले की स्थिति ऑनलाइन देख सकते हैं।

 

न्यायपालिका का एकीकरण :

 

विभिन्न न्यायालयों और विभिन्न विभागों के बीच डेटा साझा करना भी आसान हो जाएगा क्योंकि एकीकृत प्रणाली के तहत सब कुछ ऑनलाइन उपलब्ध होगा।

 

यह न्यायालयी प्रक्रियाओं में सुधार लाने और नागरिक केंद्रित सेवाएँ प्रदान करने में फायदेमंद होगा।

 

चुनौतियाँ :

 

संचालन संबंधी कठिनाइयाँ :

 

आभासी न्यायालय में खराब कनेक्टिविटी, प्रतिध्वनि और अन्य व्यवधानों के कारण सुनवाई के दौरान तकनीकी रुकावटें देखी गई हैं।

 

प्रक्रिया में वादी की निकटता न होने से विश्वास की कमी जैसे अन्य मुद्दें शामिल हैं।

 

हैकिंग और साइबर सुरक्षा :

 

प्रौद्योगिकी के स्तर पर साइबर सुरक्षा भी एक बड़ी चिंता होगी।

 

बुनियादी ढाँचा :

 

अधिकांश तालुका/गाँवों में अपर्याप्त बुनियादी ढाँचे और बिजली तथा इंटरनेट कनेक्टिविटी की अनुपलब्धता के कारण चुनौतियाँ उत्पन्न हो सकती हैं।

 

-न्यायालय रिकॉर्ड बनाए रखना :

 

परंपरागत स्टाफ दस्तावेज़ या रिकॉर्ड साक्ष्य को प्रभावी ढंग से संभालने के लिये अच्छी तरह से सुसज्जित और प्रशिक्षित नहीं है जो साक्ष्यों तथा विवरणों को वादी एवं परिषद के साथ-साथ न्यायालय तक आसानी से पहुँचा सकें।