व्यक्ति विशेष समसामियिकी 1 (17-Feb-2021)
रानी गाइदिनल्यू
(Rani Gaidinliu)

Posted on February 17th, 2021 | Create PDF File

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भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन में अपनी सक्रिय भूमिका निभाने के कारण रानी गाइदिनल्यू को ‘नागालैंड की रानी लक्ष्मीबाई’ भी कहा जाता है। इसके साथ ही रानी गाइदिनल्यू ने ईसाई मिशनरियों के द्वारा आदिवासियों के धर्म परिवर्तन का भी मुखर विरोध किया गया। 

 

‘नागालैंड की रानी लक्ष्मीबाई’ यानी रानी गाइदिन्ल्यू का जन्म 26 जनवरी 1915 को मणिपुर के तमेंगलोंग जिले के तौसेम उप-खंड के नुन्ग्काओ (लोंग्काओ) नामक गांव में हुआ था। इस महान क्रांतिकारी ने मात्र 13 वर्ष की उम्र में ही क्रांतिकारी आंदोलन में भाग लेना शुरू कर दिया एवं अपने चचेरे भाई जादोनांग के ‘हेराका’ आंदोलन से जुड़ गयी।

 

हेराका आंदोलन का लक्ष्य प्राचीन नागा धार्मिक मान्यताओं की बहाली और पुनर्जीवन प्रदान करना था। जादोनांग द्वारा चलाए गए इस आंदोलन का स्वरूप आरंभ में धार्मिक था किंतु धीरे-धीरे उसने राजनीतिक स्वरूप ग्रहण करते हुए अंग्रेजों के विरुद्ध मोर्चा खोल दिया। इस आंदोलन के दौरान मणिपुर और नागा क्षेत्रों से अंग्रेजों को बाहर खदेड़ना शुरू किया गया। धीरे-धीरे ‘हेराका’ आंदोलन में रानी गाइदिनल्यू को जनजाति क्षेत्र में विख्यात चेराचमदिनल्यू देवी का अवतार माना जाने लगा। जल्द ही जादोनांग को गिरफ्तार कर फांसी पर चढ़ा दिया गया। इसके उपरांत इस आंदोलन की बागडोर रानी गाइदिन्ल्यू पर आ गई एवं वह इस आंदोलन की आध्यात्मिक और राजनीतिक उत्तराधिकारी बन गई। रानी ने अपने समर्थकों और स्थानीय नागा नेताओं के साथ मिलकर अंग्रेजों का विरोध करना शुरू कर दिया। उन्होंने नागाओं की पैतृक परंपराओं को प्रोत्साहन दिया एवं नागाओं द्वारा ईसाई धर्म अपनाने का विरोध भी किया। ब्रिटिश सरकार के द्वारा रानी गाइदिन्ल्यू के सर पर इनाम की घोषणा कर दी गई।

 

जल्द ही रानी गाइदिन्ल्यू को उनके कई समर्थकों के साथ गिरफ्तार कर लिया गया। उन पर मुकदमा चलाया गया एवं उन्हें आजीवन कारावास की सजा दी गई। 1937 में पंडित जवाहरलाल नेहरू ने शिलांग जेल में उनसे मुलाकात की एवं उनकी रिहाई के लिए काफी प्रयास भी किया। आपको बता दें पंडित जवाहरलाल नेहरु ने ही रानी गाइदिन्ल्यू को ‘रानी’ की उपाधि प्रदान की। सन 1933 से लेकर सन 1947 तक रानी गाइदिनल्यू को विभिन्न जेलों में कैद रखा गया। 1946 में अंतरिम सरकार के गठन उपरांत प्रधानमंत्री नेहरु के निर्देश पर रानी गाइदिनल्यू को जेल से रिहा कर दिया गया। जेल से रिहा होने के बाद रानी गाइदिनल्यू ने अपने क्षेत्र के लोगों के विकास और उत्थान पर ध्यान दिया।

 

रानी गाइदिनल्यू नागा नेशनल कौंसिल (NNC) का मुखर विरोध करती थीं क्योंकि वे नागालैंड को भारत से अलग कर एक स्वतंत्र राष्ट्र की वकालत करते थे। जबकि रानी गाइदिनल्यू ज़ेलिआन्ग्रोन्ग समुदाय के लिए भारत के अन्दर ही स्वायत्त क्षेत्र की मांग करती थी। नागा दलों के आपसी प्रतिस्पर्धा के कारण रानी गाइदिनल्यू को भूमिगत भी होना पड़ा। 1966 में तात्कालिक प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री से मुलाकात के उपरांत एक पृथक ज़ेलिआन्ग्रोन्ग प्रशासनिक क्षेत्र की मांग की। इसके उपरांत उनके समर्थकों ने आत्मसमर्पण करते हुए भारतीय समाज की मुख्यधारा में शामिल हो गए।

 

भारत सरकार के द्वारा उन्हें ‘ताम्रपत्र स्वतंत्रता सेनानी पुरस्कार’, पद्म भूषण और ‘विवेकानंद सेवा पुरस्कार’ प्रदान किया गया।

 

अखंड भारत के अंदर नागा रीति-रिवाजों, आस्थाओं और परपंराओं के संरक्षण के लिए काम करने वाली रानी गाइदिनल्यू का निधन 17 फरवरी, 1993 को हो गया।