अर्थव्यवस्था समसामयिकी 1(16-Sept-2022)
वित्तीय स्थिरता और विकास परिषद
(Financial Stability and Development Council)

Posted on September 16th, 2022 | Create PDF File

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हाल ही में केंद्रीय वित्त और कॉर्पोरेट मामलों के मंत्री ने वित्तीय स्थिरता और विकास परिषद (Financial Stability and Development Council-FSDC) की 26वीं बैठक की अध्यक्षता की।

 

परिषद ने अर्थव्यवस्था के लिये प्रारंभिक चेतावनी संकेतकों और उनसे निपटने की तैयारी, मौजूदा वित्तीय एवं क्रेडिट सूचना प्रणाली की दक्षता में सुधार तथा व्यवस्थित रूप से महत्त्वपूर्ण वित्तीय संस्थानों में शासन और प्रबंधन के मुद्दों पर ज़ोर दिया।

 

यह नोट किया गया कि सरकार और नियामकों द्वारा वित्तीय क्षेत्र के जोखिमों, वित्तीय स्थितियों तथा बाज़ार के विकास की निरंतर आधार पर निगरानी करने की आवश्यकता है ताकि किसी भी भेद्यता को कम करने एवं वित्तीय स्थिरता को मज़बूत करने के लिये उचित और समय पर कार्रवाई की जा सके।

 

परिषद ने वर्ष 2023 में भारत की G20 अध्यक्षता के दौरान उठाए जाने वाले वित्तीय क्षेत्र के मुद्दों के संबंध में तैयारी पर ध्यान दिया।

 

वित्तीय स्थिरता और विकास परिषद (FSDC) :

 

स्थापना :

 

यह वित्त मंत्रालय के तहत एक गैर-सांविधिक शीर्ष परिषद है तथा इसकी स्थापना वर्ष 2010 में एक कार्यकारी आदेश द्वारा की गई थी।

 

FSDC की स्थापना का प्रस्ताव सबसे पहले वित्तीय क्षेत्र के सुधारों पर गठित रघुराम राजन समिति (2008) द्वारा किया गया था।

 

संरचना :

 

इसकी अध्यक्षता वित्त मंत्री द्वारा की जाती है तथा इसके सदस्यों में वित्तीय क्षेत्र के सभी नियामकों (RBI, SEBI, PFRDA और IRDA) के प्रमुख, वित्त सचिव, आर्थिक मामलों के विभाग (DEA) के सचिव, वित्तीय सेवा विभाग (DFS) के सचिव और मुख्य आर्थिक सलाहकार शामिल हैं।

 

वर्ष 2018 में सरकार ने आर्थिक मामलों के विभाग (DEA) के ज़िम्मेदार राज्य मंत्री, इलेक्ट्रॉनिक्स और सूचना प्रौद्योगिकी विभाग के सचिव, भारतीय दिवाला एवं दिवालियापन बोर्ड (IBBI) के अध्यक्ष तथा राजस्व सचिव को शामिल करने के उद्देश्य से FSDC का पुनर्गठन किया।

 

FSDC उप-समिति की अध्यक्षता RBI के गवर्नर द्वारा की जाती है।

 

आवश्यकता पड़ने पर यह परिषद विशेषज्ञों को भी अपनी बैठक में आमंत्रित कर सकती है।

 

कार्य :

 

वित्तीय स्थिरता बनाए रखने, अंतर-नियामक समन्वय बढ़ाने और वित्तीय क्षेत्र के विकास को बढ़ावा देने के लिये प्रक्रिया को मज़बूत एवं संस्थागत बनाना।

 

अर्थव्यवस्था के वृहद-विवेकपूर्ण पर्यवेक्षण की निगरानी करना।

 

यह बड़े वित्तीय समूहों के कामकाज का आकलन करती है।