राष्ट्रीय समसामियिकी 1 (20-Sept-2020)
पिछले 10 वर्ष में सीवर और सेप्टिक टैंकों की सफाई के दौरान 631 लोगों की मौत
(During the last 10 years, 631 people died during cleaning of sewer and septic tanks)

Posted on September 20th, 2020 | Create PDF File

hlhiuj

देश में पिछले 10 वर्षों में सीवर और सेप्टिक टैंकों की सफाई के दौरान 631 लोगों की जान गई है।

 

राष्ट्रीय सफाई कर्मचारी आयोग (एनसीएसके) ने सीवर और सेप्टिक टैकों की सफाई के दौरान 2010 से मार्च 2020 के बीच हुई मौतों के संबंध में सूचना का अधिकार (आरटीआई) अधिनियम के तहत मांगी गई सूचना के जवाब में यह जानकारी दी है।

 

आंकड़ों के अनुसार इस अवधि में 631 लोगों की मौत हुई। इनमें से सबसे ज्यादा 115 लोगों की मौत 2019 में हुई।

 

वहीं, पिछले 10 वर्षों में इस वजह से सबसे ज्यादा 122 लोगों की मौत तमिलनाडु में हुई। इसके बाद उत्तर प्रदेश में 85, दिल्ली और कर्नाटक में 63-63 तथा गुजरात में 61 लोगों की मौत हुई। हरियाणा में 50 लोगों की मौत हुई।

 

इस साल 31 मार्च तक सीवर और सेप्टिक टैंकों की सफाई के दौरान दो लोगों की मौत हुई है। 2018 में इस वजह से 73 तो 2017 में 93 लोगों की मौत हुई।

 

आंकड़ों के अनुसार 2016 में 55 लोगों की मौत हुई जबकि 2015 में 62 और 2014 में 52 लोगों की मौत हुई। इसके अलावा 2013 में 68 तथा 2012 में 47 और 2011 में 37 लोगों की मौत हुई। 2010 में 27 लोगों की मौत हुई थी।

 

एनसीएसके ने बताया कि आंकड़े विभिन्न स्रोतों से मिली जानकारी के आधार पर है और वास्तविक आंकड़े अलग हो सकते हैं।

 

आरटीआई आवेदन के तहत दी गई जानकारी में कहा गया कि अद्यतन होने पर ये आंकड़े बदलते रहते हैं।

 

इस संबंध में एक अधिकारी ने कहा कि सफाई राज्यों का विषय है और एनसीएसके के पास राज्यों तथा केंद्रशासित प्रदेशों से मिला आंकड़ा होता है।

 

हालांकि सफाईकर्मियों के अधिकारों के लिए काम करने वाले कार्यकर्ताओं का कहना है कि मैला ढोना रोजगार निषेध व पुनर्वास अधिनियम को सही से लागू नहीं करने की वजह से इससे जुड़ी मौतें हो रही हैं।

 

मैला ढोने की प्रथा को खत्म करने की दिशा में काम करनेवाले संगठन ‘सफाई कर्मचारी आंदोलन’ के राष्ट्रीय संयोजक बेजवाड़ा विल्सन ने कहा कि कानून सही तरीके से लागू नहीं होने से सफाई कर्मी दिक्कतों का सामना कर रहे हैं।

 

मैगसायसाय पुरस्कार से सम्मानित कार्यकर्ता ने कहा, ' मैला ढोना रोजगार निषेध व पुनर्वास अधिनियम के तहत किसी एक भी व्यक्ति को अब तक सजा नहीं मिली है। अधिनियम चुनावी घोषणा पत्र के वादों की तरह झूठे वादे नहीं होने चाहिए।'

 

दलित आदिवासी शक्ति अधिकार मंच के सचिव संजीव कुमार का कहना है कि कानून का क्रियान्वयन सबसे बड़ी चुनौती है।

 

उन्होंने कहा, 'सीवर या सेप्टिक टैंक के भीतर किसी व्यक्ति के प्रवेश पर पूरी तरह से रोक लगनी चाहिए और इस काम में मशीन को लगाया जाना चाहिए। वैसे भी मामले सामने आए हैं जब इन टैंकों के भीतर जहरीली गैस के सांस में जाने से सफाई कर्मचारियों को बाद में तकलीफों का सामना करना पड़ा है और वे अपनी ऊर्जा जुटाने में बाद में सक्षम नहीं हो पाते। जो लोग जिंदा बचते हैं, उन्हें काफी दर्द में जीवन गुजारना पड़ता है।'

 

कुमार ने कहा कि ज्यादातर मामलों में उन्हें न तो उचित प्रशिक्षण मिला होता है और न ही उनके पास उचित उपकरण होते हैं।

 

सामाजिक न्याय एवं सशक्तीकरण मंत्रालय द्वारा फरवरी में संसद में पेश किए गए आंकड़ों के अनुसार देश में 17 राज्यों में मैला ढोनेवाले 63,246 लोगों की पहचान की गई है जिनमें से 35,308 उत्तर प्रदेश में हैं।

 

छह दिसंबर, 2013 को रोजगार के रूप में मैला ढोने पर रोक एवं पुनर्वास अधिनियम, 2013 प्रभाव में आया था। यह अधिनियम स्पष्ट रूप से कहता है कि बिना रक्षात्मक उपकरणों के सीवर और सेप्टिक टैंकों की सफाई खतरनाक सफाई की श्रेणी में है और इसमें दंडात्मक कार्रवाई हो सकती है।