विज्ञान एवं प्रोद्योगिकी समसामयिकी 1(4-November-2023)
चीनी अंटार्कटिक बेड़ा नए अनुसंधान केंद्र के निर्माण के लिये रवाना
(Chinese Antarctic fleet leaves for construction of new research center)

Posted on November 5th, 2023 | Create PDF File

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दो चीनी आइसब्रेकर अनुसंधान जहाज़ और एक मालवाहक जहाज़ अंटार्कटिका के लिये रवाना हो गए हैं।

 

इस मिशन का प्राथमिक उद्देश्य अंटार्कटिक में रॉस सागर के पास इनएक्सप्रेसिबल द्वीप पर स्थित चीन के पाँचवे रिसर्च स्टेशन का निर्माण पूरा करना है।

 

रॉस सागर अंटार्कटिका के तट पर स्थित है। यह विश्व के अंतिम अक्षुण्ण समुद्री पारिस्थितिक तंत्रों में से एक है।

 

अंटार्कटिका में चीन के चार अनुसंधान केंद्र स्थित हैं जिनमें ग्रेट वॉल (1985), झोंगशान (1989), कुनलुन (2009) और ताइशान (2014) शामिल हैं।

 

आइसब्रेकर एक जहाज़ है जिसे विशेष रूप से बर्फ से ढके समुद्री जल मार्ग में नेविगेट करने के लिये डिज़ाइन किया गया है, जो अन्य जहाज़ों के लिये एक सुरक्षित जलमार्ग निर्धारित करता है।

 

अंटार्कटिका में भारत के दो सक्रिय अनुसंधान केंद्र हैं जिनके नाम 'मैत्री' और 'भारती' हैं।

 

अंटार्कटिक संधि (Antarctic Treaty) :

 

अंटार्कटिक महाद्वीप को केवल वैज्ञानिक अनुसंधान के लिये संरक्षित करने एवं असैन्यीकृत क्षेत्र बनाने के लिये 1 दिसंबर, 1959 को वाशिंगटन में 12 देशों के बीच अंटार्कटिक संधि पर हस्ताक्षर किये गए थे।

 

12 मूल हस्ताक्षरकर्त्ता अर्जेंटीना, ऑस्ट्रेलिया, बेल्जियम, चिली, फ्राँस, जापान, न्यूज़ीलैंड, नॉर्वे, दक्षिण अफ्रीका, सोवियत संघ, यूके और यूएस हैं।

 

यह संधि वर्ष 1961 में लागू हुई, तत्पश्चात इसे कई अन्य देशों ने स्वीकार किया है।

 

अंटार्कटिका को 60 °S अक्षांश के दक्षिण में स्थित बर्फ से आच्छादित भूमि के रूप में परिभाषित किया गया है।

 

सदस्य:

 

वर्तमान में इसमें 54 पक्षकार हैं। वर्ष 1983 में भारत इस संधि का सदस्य बना।

 

मुख्यालय:

 

ब्यूनस आयर्स, अर्जेंटीना।

 

प्रमुख प्रावधान :

 

वैज्ञानिक अनुसंधान की स्वतंत्रता को बढ़ावा देना।

 

देश महाद्वीप का उपयोग केवल शांतिपूर्ण उद्देश्यों के लिये कर सकते हैं।

 

सैन्य गतिविधियों, परमाणु परीक्षणों और रेडियोधर्मी कचरे के निपटान का निषेध।

 

क्षेत्रीय संप्रभुता को निष्प्रभावी करना अर्थात् किसी देश द्वारा इस पर कोई नया दावा करने या मौजूदा दावे का विस्तार नहीं किया जाएगा।

 

इस संधि द्वारा किसी देश की इस महाद्वीप पर दावेदारी संबंधी किसी भी विवाद पर रोक लगा दी गई।

 

विवाद और समाधान :

 

इसे लेकर समय-समय पर तनाव की स्थिति बनी रहती है। उदाहरणस्वरूप महाद्वीप क्षेत्र को लेकर अर्जेंटीना और यूके के अपने अतिव्यापी दावे हैं।

 

हालाँकि संधि की सक्रियता का एक प्रमुख कारण कई अतिरिक्त सम्मेलनों और अन्य कानूनी प्रोटोकॉल के माध्यम से अर्जित क्षमता है।

 

ये सम्मेलन और अन्य कानूनी प्रोटोकॉल समुद्री जीव संसाधनों के संरक्षण, खनन पर प्रतिबंध तथा व्यापक पर्यावरण संरक्षण तंत्र को अपनाने से संबंधित हैं।

 

विदित है कि इस पर वर्षों से विवाद उत्पन्न होते रहे हैं लेकिन इन समझौतों के साथ संधि ढाँचे के विस्तार के माध्यम से कई विवादों को हल किया गया है। इस संपूर्ण  ढाँचे को अब अंटार्कटिक संधि प्रणाली के रूप में जाना जाता है।