यह मीठे पानी में पाई जाने वाली कछुओं की एक प्रजाति है।
अंतर्राष्ट्रीय प्रकृति संरक्षण संघ (IUCN) द्वारा वर्ष 2021 में इस प्रजाति को ‘गंभीर रूप से संकटग्रस्त’ के रूप में सूचीबद्ध किया था।
इसे भारतीय वन्यजीव (संरक्षण) अधिनियम 1972 के तहत कोई कानूनी संरक्षण प्राप्त नहीं है।
असम में ब्रह्मपुत्र नदी की जल वाहिकाओं में देखे जाने से पूर्व, ब्लैक सॉफ्टशेल कछुए को वन्य-रूप से विलुप्त’ माना जाता था, और यह केवल पूर्वोत्तर भारत और बांग्लादेश में मंदिरों के तालाबों में ही पाया जाता था।
हाल ही में, असम में हयग्रीव माधव मंदिर समिति ने हरित-क्षेत्र में काम करने वाले दो गैर-सरकारी संगठनों (NGO), असम राज्य चिड़ियाघर सह बॉटनिकल गार्डन तथा कामरूप जिला प्रशासन के साथ, मीठे पानी के दुर्लभ ब्लैक सॉफ्टशेल कछुए (Nilssonia nigricans) के दीर्घकालिक संरक्षण के लिए एक समझौता ज्ञापन पर हस्ताक्षर किए हैं।
यह मीठे पानी में पाई जाने वाली कछुओं की एक प्रजाति है।
अंतर्राष्ट्रीय प्रकृति संरक्षण संघ (IUCN) द्वारा वर्ष 2021 में इस प्रजाति को ‘गंभीर रूप से संकटग्रस्त’ के रूप में सूचीबद्ध किया था।
इसे भारतीय वन्यजीव (संरक्षण) अधिनियम 1972 के तहत कोई कानूनी संरक्षण प्राप्त नहीं है।
असम में ब्रह्मपुत्र नदी की जल वाहिकाओं में देखे जाने से पूर्व, ब्लैक सॉफ्टशेल कछुए को वन्य-रूप से विलुप्त’ माना जाता था, और यह केवल पूर्वोत्तर भारत और बांग्लादेश में मंदिरों के तालाबों में ही पाया जाता था।
हाल ही में, असम में हयग्रीव माधव मंदिर समिति ने हरित-क्षेत्र में काम करने वाले दो गैर-सरकारी संगठनों (NGO), असम राज्य चिड़ियाघर सह बॉटनिकल गार्डन तथा कामरूप जिला प्रशासन के साथ, मीठे पानी के दुर्लभ ब्लैक सॉफ्टशेल कछुए (Nilssonia nigricans) के दीर्घकालिक संरक्षण के लिए एक समझौता ज्ञापन पर हस्ताक्षर किए हैं।