संघ लोक सेवा आयोग की भूमिकाएं (Role of union public service commission)

Posted on May 25th, 2022 | Create PDF File

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संविधान आशा करता है कि संघ लोक सेवा आयोग भारत में 'मेरिट पद्धति का प्रहरी' हो। इससे तात्पर्य है कि यह प्रोन्नति या अनुशासनात्मक विषयों पर संपर्क करने पर अखिल भारतीय सेवाओं व केंद्रीय सेवाओं (ग्रुप 'ए' व ग्रुप 'बी') में भर्ती व सरकार को सलाह देने से संबंधित है। सेवाओं में वर्गीकरण, वेतन या सेवाओं की स्थिति, कैडर प्रबंधन, प्रशिक्षण आदि से इसका कोई संबंध नहीं है। इस तरह के मुद्दे को कार्मिक व प्रशिक्षण विभाग (कार्मिक, जन-लोक शिकायत व पेंशन मंत्रालय' के तीन विभागों में से एक) देखता है। जहां यूपीएससी भारत में मात्र केंद्रीय भर्ती अधिकरण (ऐजेंसी) है, वहीं कार्मिक व प्रशिक्षण विभाग भारत का केंद्रीय कार्मिक अभिकरण है।

 

संघ लोक सेवा आयोग की भूमिका न केवल सीमित है बल्कि उसके द्वारा दिए गए सुझाव भी सलाहकारी प्रवृत्ति के होते हैं। यह केंद्र सरकार पर निर्भर है कि वह सुझावों पर अमल करे या खारिज करे। सरकार की एकमात्र जवाबदेही है कि वह संसद को आयोग के सुझावों से विचलन का कारण बताए। इसके अलावा सरकार ऐसे नियम बना सकती है, जिससे संघ लोक सेवा आयोग के सलाहकारी कार्य को नियंत्रित किया जा सकता है।"

 

1964 में केंद्रीय सतर्कता आयोग के गठन ने अनुशासनात्मक विषयों पर संघ लोक सेवा आयोग के कार्यों को प्रभावित किया। ऐसा इसलिए क्योंकि सरकार द्वारा किसी नौकरशाह पर अनुशासनात्मक कार्यवाही करने से पहले दोनों से संपर्क किया जाने लगा। समस्या तब खड़ी होती है, जब दोनों की सलाहों में मतभेद हो। चूंकि संघ लोक सेवा आयोग एक स्वतंत्र संवैधानिक संस्था है, इसलिए वह केंद्रीय सतर्कता आयोग (सीवीसी) से अधिक प्रभावी है। केंद्रीय सतर्कता आयोग का गठन भारत सरकार द्वारा कार्यकारी प्रस्ताव द्वारा किया गया है और अक्तूबर 2003 में इसे सांविधिक दर्जा मिला।