स्वास्थ्य समसामयिकी 1 (30-May-2021)
मोनोक्लोनल एंटीबॉडी थेरेपी
(Monoclonal antibody therapy)

Posted on May 30th, 2021 | Create PDF File

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दिल्ली के अपोलो अस्पताल द्वारा, हल्के लक्षण और सह-रुग्णताएं (comorbidities) वाले कोविड-19 रोगियों के लिए एक “एंटीबॉडी कॉकटेल उपचार” (antibody cocktail treatment) की शुरूआत की गई है। इस चिकित्सा प्रक्रिया में कोरोना वाइरस के प्रवेश को मानव शरीर में निषिद्ध करना शामिल है।

 

‘मोनोक्लोनल एंटीबॉडी’ :

मोनोक्लोनल एंटीबॉडी (Monoclonal antibodies- mAbs) कृत्रिम रूप से निर्मित एंटीबॉडी होती हैं, जिनका उद्देश्य शरीर की ‘प्राकृतिक प्रतिरक्षा प्रणाली’ की सहायता करना होता है।

 

ये एक विशेष एंटीजन को लक्षित करती हैं, जोकि प्रतिरक्षा प्रतिक्रिया प्रेरित करने वाले रोगाणु का ‘प्रोटीन’ होता है

 

‘मोनोक्लोनल एंटीबॉडी’ का निर्माण :

प्रयोगशाला में, श्वेत रक्त कोशिकाओं को एक विशेष एंटीजन के संपर्क में लाने पर ‘मोनोक्लोनल एंटीबॉडीज़’ का निर्माण किया जा सकता है।

 

‘एंटीबॉडीज़’ को अधिक मात्रा में निर्मित करने के लिए, एकल श्वेत रक्त कोशिका का प्रतिरूप (Clone) बनाया जाता है, जिसे एंटीबॉडी की समरूप प्रतियां तैयार करने में प्रयुक्त किया जाता है।

 

कोविड -19 के मामले में, ‘मोनोक्लोनल एंटीबॉडीज़’ तैयार करने के लिए वैज्ञानिक प्रायः SARS-CoV-2 वायरस के स्पाइक प्रोटीन का उपयोग करते है। यह ‘स्पाइक प्रोटीन’ मेजबान कोशिका में वायरस को प्रविष्ट कराने में सहायक होता है।

 

‘मोनोक्लोनल एंटीबॉडीज़’ की आवश्यकता:

एक स्वस्थ शरीर में, इसकी ‘प्रतिरक्षा प्रणाली’ (Immune System), एंटीबॉडीज़ अर्थात ‘रोग-प्रतिकारकों का निर्माण करने में सक्षम होती है।

 

ये एंटीबॉडीज़, हमारे रक्त में वाई-आकार (Y-shape) के सूक्ष्म प्रोटीन होते हैं, जो सूक्ष्मजीव रोगाणुओं की पहचान करके उन्हें जकड़ लेते हैं तथा प्रतिरक्षा प्रणाली को इन रोगाणुओं पर हमला करने का संकेत करते है।

 

यद्यपि, जिन लोगों की प्रतिरक्षा प्रणाली, इन एंटीबॉडीज़ को पर्याप्त मात्रा में निर्मित करने में असमर्थ होती हैं, उनकी सहायता के लिए वैज्ञानिकों द्वारा ‘मोनोक्लोनल एंटीबॉडीज़’ की खोज की गई है।

 

इतिहास:

किसी बीमारी के इलाज के लिए एंटीबॉडी दिए जाने का विचार 1900 के दशक प्रचलित हुआ था, जब  नोबेल पुरस्कार विजेता जर्मन प्रतिरक्षा विज्ञानी (Immunologist) ‘पॉल एर्लिच’ (Paul Ehrlich) द्वारा ‘जाबरक्युग्ल’ (Zauberkugel) अर्थात ‘मैजिक बुलेट’ का विचार प्रतिपादित किया गया था। ‘जाबरक्युग्ल’, चुनिंदा रूप से किसी रोगाणु को लक्षित करने वाला योगिक है।

 

तब से, मानवों में नैदानिक ​​उपयोग हेतु स्वीकृत होने वाली विश्व की पहली मोनोक्लोनल एंटीबॉडी, ‘म्युरोमोनाब-सीडी3’ (Muromonab-CD3) तैयार होने तक आठ दशकों का समय लगा।

 

‘म्युरोमोनाब-सीडी3’, एक प्रतिरक्षादमनकारी (Immunosuppressant) दवा है। इसे ‘अंग प्रत्यारोपण’ किए गए रोगियों में तीव्र अस्वीकृति (Acute Rejection) को कम करने के लिए दी जाती है।

 

अनुप्रयोग:

मोनोक्लोनल एंटीबॉडीज़ अब अपेक्षाकृत आम हो चुकी हैं। इनका उपयोग इबोला, एचआईवी, त्वचा-रोगों (psoriasis) आदि के इलाज में किया जाता है।