राज्य समसामियिकी 1 (30-July-2020)
ज्योतिराव फुले (Jyotirao Phule)

Posted on July 30th, 2020 | Create PDF File

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हाल ही में महाराष्ट्र सरकार द्वारा ‘महात्मा ज्योतिराव फुले ऋण माफी योजना’ के तहत कुल पात्र किसानों में से 83% किसानों का ऋण माफ कर दिया है। इस योजना के तहत 17,646 करोड़ रु. का ऋण माफ़ किया गया है।

 

महाराष्ट्र सरकार द्वारा ‘महात्मा ज्योतिराव फुले ऋण माफी योजना’ की घोषणा दिसंबर 2019 में की गयी थी।इस योजना का उद्देश्य किसानों के 2 लाख रुपये तक के फसली ऋण को माफ़ करना था।

 

ऋण माफी की अवधि: इस ऋण के लिए 1 अप्रैल, 2015 से 31 मार्च, 2019 के मध्य लिया गया हो तथा जिसे 30 सितंबर, 2019 तक चुकाया नहीं गया है।

 


महात्मा ज्योतिराव फुले के बारे में:

 

इनका जन्म वर्ष 1827 में महाराष्ट्र के सतारा जिले हुआ था।फुले को महात्मा की उपाधि महाराष्ट्र के सामाजिक कार्यकर्ता विट्ठलराव कृष्णजी वांडेकर द्वारा 11 मई, 1888 को प्रदान की गयी थी।महात्मा ज्योतिराव फुले का कार्य मुख्य रूप से अस्पृश्यता और जाति व्यवस्था का उन्मूलन, महिलाओं की मुक्ति और सशक्तिकरण, हिंदू पारिवारिक जीवन में सुधार से संबंधित है।इन्हें अपनी पत्नी, सावित्रीबाई फुले के साथ, भारत में महिलाओं की शिक्षा का अग्र-दूत माना जाता है।यह दंपति पुणे, महाराष्ट्र में लड़कियों के लिए अगस्त 1848 में भारत का पहला स्वदेशी स्कूल खोलने वाले पहले भारतीय थे।इसके बाद फुले दंपति ने ‘महार और मंग’ जैसी अछूत जातियों के बच्चों के लिए स्कूल आरंभ किए।वर्ष 1863 में, ज्योतिबा फुले ने गर्भवती ब्राह्मण विधवाओं के लिए सुरक्षित प्रसव हेतु एक ‘गृह’ का आरंभ किया।उन्होंने शिशुहत्या से बचाव के लिए एक अनाथालय खोला। इस संबंध में, उन्हें दुर्भाग्यशाली बच्चों के लिए अनाथालय शुरू करने वाला पहला हिंदू माना जाता है।वर्ष 1868 में, ज्योतिराव ने अपने घर के बाहर एक सामूहिक स्नानागार का निर्माण करने का फैसला किया, जिससे उनका सभी मनुष्यों के प्रति अपनत्व की भावना प्रदर्शित होती है, इसके साथ ही सभी जातियों के सदस्यों के साथ भोजन करने की शुरुआत की।वर्ष 1873 में, फुले ने दलित वर्गों के अधिकारों हेतु, जाति व्यवस्था की निंदा करने तथा तर्कसंगत विचारधारा का प्रसार करने के लिए ‘सत्यशोधक समाज’ की स्थापना की।

 


उनकी प्रसिद्ध रचनाएँ:

 

तृतीय रत्न (1855), गुलामगिरि (1873), शेतकरायचा आसुद, या कल्टीवेटर व्हिपकॉर्ड (1881), सत्यशोधक समाजोत्कल मंगलाष्टक सर्व पूजा-विधि (1887)।