कला एवं संस्कृति समसामयिकी 1 (10-January-2022)जल्लीकट्टू(Jallikattu)
Posted on January 10th, 2022 | Create PDF File
कोविड-19 संक्रमण के मामलों में प्रतिदिन हो रही भारी वृद्धि को देखते हुए, तमिलनाडु के वेल्लोर, तिरुवन्नामलाई, रानीपेट और तिरुपत्तूर जिलों में प्रशासन ने सुरक्षा उपायों के तहत ‘पोंगल त्योहार’ से पहले ‘जल्लीकट्टू’ (Jallikattu) कार्यक्रमों के आयोजन पर प्रतिबंध लगा दिया है।
‘जल्लीकट्टू’ :
यह सांडों पर काबू पाने वाला एक पारंपरिक खेल है, जो मदुरै, तिरुचिरापल्ली, थेनी, पुदुक्कोट्टई और डिंडीगुल जिलों में लोकप्रिय है, इस क्षेत्र को जल्लीकट्टू पट्टिका अथवा जल्लीकट्टू बेल्ट भी कहा जाता है।
जल्लीकट्टू को जनवरी के दूसरे सप्ताह में, तमिलनाडु के फसली त्यौहार ‘पोंगल’ के दौरान मनाया जाता है।
जल्लीकट्टू एक 2,000 साल से अधिक पुरानी परंपरा और एक प्रतिस्पर्धी खेल है, साथ ही इसमें सांडो के मालिकों को भी सम्मानित किया जाता है। ये सांड गर्भाधान कराने के लिए पाले जाते हैं।
यह एक हिंसात्मक खेल है जिसमें प्रतियोगी पुरस्कार जीतने के लिए सांडों पर काबू पाने की कोशिश करते हैं; यदि वे इसमें असफल हो जाते है, तो सांड का मालिक विजयी घोषित किया जाता है।
तमिल संस्कृति में जल्लीकट्टू का महत्व :
जल्लीकट्टू के लिए, कृषक समुदाय द्वारा अपने शुद्ध नस्लों के सांडों को संरक्षित करने का एक पारंपरिक तरीका, समझा जाता है।
संरक्षणवादियों और किसानों का तर्क है, अक्सर कृत्रिम प्रक्रिया द्वारा पशु प्रजनन कराए जाने के ज़माने में, जल्लीकट्टू, इन नर पशुओं के संरक्षण का तक तरीका है, क्योंकि ये जानवर, यदि जुताई के काम नहीं आते हैं तो इनका उपयोग केवल मांस के लिए किया जाता है।
जल्लीकट्टू, कानूनी लड़ाई का विषय क्यों बन रहा है?
वर्ष 2007 में, भारतीय पशु कल्याण बोर्ड और पशु अधिकार समूह ‘पेटा’ (PETA) द्वारा ‘जल्लीकट्टू’ तथा ‘बैलगाड़ी दौड़’ के खिलाफ उच्चतम न्यायालय में याचिका दायर की गयी थी, इसी के साथ ‘जल्लीकट्टू’ पहली बार कानूनी जांच के दायरे में आया।
हालांकि, तमिलनाडु सरकार ने 2009 में एक कानून पारित करके इन खेलों पर लगाए गए प्रतिबंधो से बाहर निकलने का तरीका खोज निकला, इस कानून पर राज्यपाल द्वारा हस्ताक्षर किए गए।
वर्ष 2011 में, केंद्र में UPA शासन काल के दौरान सांडो को ‘प्रशिक्षण एवं प्रदर्शन’ निषिद्ध सूची के अंतर्गत आने वाले जानवरों में शामिल कर दिया गया।
मई 2014 में, सुप्रीम कोर्ट द्वारा याचिका पर निर्णय देने के दौरान, वर्ष 2011 की अधिसूचना का हवाला देते हुए, सांडो पर काबू पाने वाले (बुल-टैमिंग) खेल पर प्रतिबंध लगा दिया गया।
जल्लीकट्टू के संबंध में वर्तमान वैधानिक स्थिति :
जनवरी 2017 में, जल्लीकट्टू पर लगाए गए प्रतिबंध के खिलाफ पूरे तमिलनाडु में बड़े पैमाने पर विरोध प्रदर्शन हुए। इस दौरान चेन्नई शहर में 15 दिन का जल्लीकट्टू-विद्रोह भी हुआ।
उसी वर्ष, तमिलनाडु सरकार द्वारा केंद्रीय क़ानून में संशोधन करते हुए एक अध्यादेश जारी किया गया और राज्य में जल्लीकट्टू के लिए अनुमति दी गयी; बाद में इस अध्यादेश पर राष्ट्रपति द्वारा सहमति प्रदान कर दी गई।
‘पेटा’ द्वारा इस अध्यादेश को असंवैधानिक बताते हुए राज्य के इस फैसले को चुनौती दी गयी अनुच्छेद 29 (1)।
वर्ष 2018 में, सुप्रीम कोर्ट द्वारा जल्लीकट्टू मामले पर एक संविधान पीठ गठित की गयी, जहाँ यह मामला अभी लंबित है।